उत्तराखंड

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भूस्खलन
Posted on 10 Oct, 2016 03:37 PM
भूस्खलन की समस्या ढालों की स्थिरता की समस्या है। इस समस्या के कारण बहुमुखी हैं, जैसे कि हम एक सतत गतिशील धरती में रहते हैं जिसमें पृथ्वी के घूर्णन के अलावा बाहरी परत में ऊपर नीचे गतिशीलता भी रहती है। धरती की भीतरी परतें तो द्रव समान हैं ही। पृथ्वी की बाहरी सतह की गतिशीलता में एक जटिल गतिकीय सिस्टम कार्य करता है जिसमें कई अन्योन्याश्रित परिस्थितियाँ भूभाग की दर्शनीय स्थिति को मन्थर गति से परि
भू-विज्ञान और भारत
Posted on 10 Oct, 2016 03:24 PM
गत वर्ष 11 मार्च को जापान में आई सुनामी और भूकम्प जैसी भौमिकीय घटनाओं के बाद मीडिया के विभिन्न माध्यमों में इनके स्वरूप, कारणों आदि पर विविध प्रकार की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। इसने आम लोगों को भी अपने प्रति और परिवेश के संबंध में नए सिरे से विचार करने को प्रेरित किया है। और इसी परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी तथा इसके परिवेश को सर्वाधिक निकटता से अध्ययन करने वाले विषय भू-विज्ञान की उपयोगिता सामने आती
जलवायु परिवर्तन पर महागोष्ठी
Posted on 10 Oct, 2016 11:56 AM
शाम को भोजन के समय परिवार की तीन पीढ़ियों की एकत्रित मंडली में दादी जी द्वारा सुनाई जा रही पुरानी कहानियाँ उनकी पोती को मनोरंजक तो लगी परन्तु कुछ अंश तर्कपूर्ण नहीं लगे। भोजन मंच पर छोटे बच्चों के चुप रहने की खानदानी परम्परा का उल्लंघन करते हुए पोती ने प्रस्ताव रखा, दादी जी!
उत्तर पश्चिम हिमालय का एक अल्प प्रयोग में लाया जाने वाला फल का पेड़ : भारतीय जैतून (आलिया फैरूजीनियाँ रॉयल)
Posted on 10 Oct, 2016 11:43 AM

बहुत सारे अध्ययनों से पता चला है कि जैतून के फल व पत्तियों में अत्यधिक मात्रा में पॉलिफिन

इन्डोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के भूकम्प एवं भारत
Posted on 10 Oct, 2016 11:35 AM
11 अप्रैल, 2012 को इन्डोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में आये दो तीव्र भूकम्पों (M > 8.0) से दक्षिण भारत, श्रीलंका, मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर तथा आस्ट्रेलिया तक भूकम्प के कम्पन महसूस किये गये। इन भूकम्पों का आकार 8.6 तथा 8.2 था। यह भूकम्प वाडिया भूविज्ञान संस्थान की सभी भूकम्प वेधशालाओं में अंकित किये गये। सुमात्रा में तीव्र भूकम्प 1833 से इतिहास में अंकित है। इसके बाद 2004, 2005, 2007, 2009
लेजर तकनीकी का भूविज्ञान में उपयोग
Posted on 09 Oct, 2016 09:34 AM
लेजर तकनीकी का उपयोग भूविज्ञान में बहुत आवश्यक है। लेजर रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं कान फोकल लेजर स्कैनिक माइक्रोस्कोपी (चित्र 1) का उपयोग भूविज्ञान में अभी नया है एवं भविष्य में इसकी बहुत उपयोगिता है। पृथ्वी में जीवन की उत्पत्ति एवं प्रारंभिक अवस्थाओं का अध्ययन अब लेजर रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी एवं कान फोकल लेजर माइक्रोस्कोपी के बिना अधूरा है। एल. आर. एस. एवं सी. एल. एस. एम.
न स्वैप, ना स्वजल, सिर्फ ग्राम जल
Posted on 08 Oct, 2016 12:35 PM
उन्हें क्या मालूम था कि वे एक लम्बे समय तक पानी के संकट से जूझते रहेंगे। वे तो मोटर मार्ग के स्वार्थवश अपने गाँव की मूल थाती छोड़कर इसलिये चूरेड़धार पर आ बसे कि उन्हें भी यातायात का लाभ मिलेगा। यातायात का लाभ उन्हें जो भी मिला हो, पर वे उससे कई गुना अधिक पानी के संकट से जूझते रहे।

यह कोई नई कहानी नहीं यह तो हकीकत की पड़ताल करती हुई टिहरी जनपद के अन्तर्गत चूरेड़धार गाँव की तस्वीर का चरित्र-चित्रण है। बता दें कि 1952 से पूर्व चूरेड़धार गाँव गाड़नामे तोक पर था, जिसे तब गाड़नामे गाँव से ही जाना जाता था। हुआ यूँ कि 1953 में जब धनोल्टी-चम्बा मोटर मार्ग बना तो ग्रामीण मूल गाँव से स्वःविस्थापित होकर सड़क की सुविधा बावत चूरेड़धार जगह पर आ बसे।
गाड़नामे तोक गाँव में जलस्रोत
गंगा का भविष्य : मुक्तिदायिनी गंगा का संरक्षण व संवर्धन राष्ट्रहित में
Posted on 08 Oct, 2016 12:32 PM
माँ गंगा का जन्म भगवान विष्णु के श्री चरणों से हुआ और विष्णुपदी नाम पाया। जिस गंगा जी को श्री ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल में रखकर अपने को धन्य माना हो, जिस गंगा जी को शंकर जी ने अपने मस्तक पर शोभायमान कर अपने को गर्वित किया हो, जिस गंगा की पवित्रता को हमारे धर्मशास्त्रों ने गाया हो और विश्व कल्याण की बात की हो, जिस गंगा के तट पर हमारे ऋषि-मुनि तपस्या करके परम गति को प्राप्त हुये हों और जिस गं
क्या भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी मुहाने पर ऊर्जा धीमे भूकम्पों के रूप में विसर्जित हो रही है
Posted on 08 Oct, 2016 12:20 PM
भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी मुहाने में 2400 किमी क्षेत्र में फैली हिमालय पर्वत श्रृंखला क्षेत्र संसार की एक सक्रिय भूकम्पीय पट्टी के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में भारतीय प्लेट के एशियन प्लेट के टकराने से बनी पर्वत श्रृंखला में लगातार तनाव उत्पन्न हो रहा है जो अनेक आकार के भूकम्पों के रूप में विसर्जित हो रहा है। हिमालय पर्वत श्रृंखला में 1897 से 1950 तक यानि 53 सालों में चार बड़े आकार (
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