भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी मुहाने में 2400 किमी क्षेत्र में फैली हिमालय पर्वत श्रृंखला क्षेत्र संसार की एक सक्रिय भूकम्पीय पट्टी के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र में भारतीय प्लेट के एशियन प्लेट के टकराने से बनी पर्वत श्रृंखला में लगातार तनाव उत्पन्न हो रहा है जो अनेक आकार के भूकम्पों के रूप में विसर्जित हो रहा है। हिमालय पर्वत श्रृंखला में 1897 से 1950 तक यानि 53 सालों में चार बड़े आकार (M>8.0) के भूकम्प आए हैं (चित्र 1)। परंतु 1950 से आज तक यानि कि गत 61 सालों में एक भी बड़ा भूकम्प नहीं आया है। केवल दो मध्यम आकार (6.0
इस पूरे क्षेत्र में बल संग्रहित होने का मुख्य कारण भारतीय प्लेट का उत्तर की तरफ गतिमान होना तथा एशियन प्लेट से टकराना है। अब मुख्य प्रश्न यह है कि 53 सालों में यह बल चार बड़े भूकम्पों के रूप में उत्सर्जित हुआ है तो उसके बाद 1950 से 2011 तक 61 सालों में ही अनुमानित बल लगभग इसी अनुपात में संग्रहित एवं उत्सर्जित होना चाहिए था। परंतु ऐसा नहीं हुआ है। इसे बहुत से वैज्ञानिकों ने जैसे प्रोफेसर के.एन. खत्री ने सिसमिक गैप रूप में देखा और वर्णित किया है दूसरे वैज्ञानिकों ने इसे कूइसेंस के रूप में परिभाषित किया है। अब यदि हम इसे एक दूसरे नजरिए से देखें कि क्या हिमालय पर्वत श्रृंखला में संग्रहित यह बल किसी दूसरे रूप में मुक्त हो रहा है और यह भी बड़े भूकम्पों के इतने समय से न आने का कारण हो सकता है क्या यह लगातार संग्रहित हो रही ऊर्जा धीमे भूकम्पों के रूप में रूपातांतरित या परिवर्तित हो रही हैं? इस तर्क को समझने के लिये हमें समझना होगा कि धीमे भूकम्प क्या है?
यह भूकम्प सामान्य भूकम्प जैसे ही होते हैं, परंतु इनमें ऊर्जा का उत्सर्जन लंबे समय में होता है, धीमे भूकम्प भी सामान्य भूकम्प की तरह ही होते हैं। सामान्य भूकम्पों में ऊर्जा का उत्सर्जन सेकेण्डों में और मिनटों में होता है जबकि धीमे भूकम्पों में ऊर्जा घंटो एवं महीनों में उत्सर्जित होती है। यह इनका बहुत ही प्रारूपिक लक्षण है। इस असामान्य भूकम्पीय घटना में गहरे ऐपीसोडिक भूकम्प, निम्न आवृत्ति वाले भूकम्प, बहुत निम्न आवृत्ति वाले भूकम्प एवं धीमी स्लिप वाले भूकम्प सम्मिलित हैं (चित्र 2)। इनमें से प्रत्येक भूकम्प यह दर्शाता है कि धीमे भूकम्प सामान्य भूकम्पों की तरह ही अवरूपणी स्लिप से उत्पन्न होते हैं परंतु यह लंबी अवधि के लक्षण वाले एवं बहुत ही कम भूकम्पीय ऊर्जा को उत्सर्जित करने वाले होते हैं।
धीमे भूकम्पों में संग्रहित ऊर्जा लंबे समय में उत्सर्जित होती है धीमें भूकम्प इतने शक्तिशाली नहीं होते कि भूकम्पीय तरंगें उत्पन्न कर सकें। परंतु यह भ्रंश लाइन के नीचे बल को समेट देते हैं। यह एकत्रित बल के वितरण को प्रभावित करते हैं। आजकल वैज्ञानिकों ने धीमे भूकम्पों का अन्वेषण करना प्रारंभ कर दिया है ताकि बड़े भूकम्पों को उत्सर्जित करने वाले बल के अनुमान के बारे में सही-सही आकलन हो सके। धीमे भूकम्पों की जानकारी से प्लेट के धँसने के प्रक्रम में संग्रहित बल तथा बड़े भूकम्पों के रूप में उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा को लंबे समय में मुक्त होने के प्रक्रम को समझने में धीमे भूकम्प सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
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सुशील कुमार
वा. हि. भू. सं., देहरादून
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