भूस्खलन की समस्या ढालों की स्थिरता की समस्या है। इस समस्या के कारण बहुमुखी हैं, जैसे कि हम एक सतत गतिशील धरती में रहते हैं जिसमें पृथ्वी के घूर्णन के अलावा बाहरी परत में ऊपर नीचे गतिशीलता भी रहती है। धरती की भीतरी परतें तो द्रव समान हैं ही। पृथ्वी की बाहरी सतह की गतिशीलता में एक जटिल गतिकीय सिस्टम कार्य करता है जिसमें कई अन्योन्याश्रित परिस्थितियाँ भूभाग की दर्शनीय स्थिति को मन्थर गति से परिवर्तित करती हैं एवं दबावों के अनुरूप ढालती रहती हैं। ढलानों की अस्थिरता सम्पूर्ण विश्व में प्राकृतिक आपदाओं का कारण बनकर गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न करती रहती हैं। भूआकृतिक शब्दों में कहा जाय तो अस्थिरता भू-आकृति निर्धारण की वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार ढालों में पड़ी हुई सामग्री स्वयं के अस्तित्व को ढाल के कोण, ऊँचाई, जल तत्व, भू-आकृति एवं जीव पादप परिस्थितियों के अनुसार पुनः ढालती है। किसी क्षेत्र की ढलान की स्थिरता का आकलन- जोखिम की पहचान, भू-उपयोग की योजना तथा अभियांत्रिक परिकल्प के लिये बहुत जरूरी है।
भूस्खलन की क्रिया प्रणाली में धरती की सतह की सामग्री का शियर स्ट्रेस के कारण दरक जाना प्रमुख कारण है। इसमें शियर स्ट्रेस पदार्थ की गतिशीलता का कारण बनता है जबकि शियर स्ट्रेन्थ पदार्थ के फिसलन में बाधक है। जब तक फिसलन की सतह पर कुल शियर स्ट्रेस कुल शियर स्ट्रेन्थ से ज्यादा नहीं हो जाता पदार्थ की परतें संतुलन में रहती हैं। जब भी औसत शियर स्टेस आपेक्षिक शियर स्ट्रेन्थ से बढ़ जाता है, ढाल पर पड़ा पदार्थ गतिशील हो जाता है।
वे कारण जो ज्यादा शियर स्ट्रेस की वजह बनते हैं निम्नानुसार हैं।
1. अस्थिर क्षेत्र के किनारे के अवलम्बन को हटा देना, इसका कारण प्रकृति एवं मनुष्य दोनों हो सकते हैं। प्रकृति जैसे नदियाँ, ग्लेशियर, लहरें, ज्वार भाटे ये सब अपने सामने आने वाले अवरोधों को दूर करते हुए कई बार पर्वत की जड़ एवं भूस्खलन सम्भावित क्षेत्र के किनारों की सामग्री को खोदकर दूर ले जाते हैं। मनुष्य कई बार सडकें इत्यादि काटने के लिये, खदानों के लिये, गढढे खादे ने के लिये भूस्खलन सम्भावित क्षेत्र की जड़ के अवलम्बन को हटा देता है इससे साधारण परिस्थितियों में भी अत्यधिक स्ट्रेस पैदा हो सकता है।
2. कभी-कभी प्राकृतिक स्रोतों से, वर्षा अथवा मानव निर्मित नालियों का पानी, बर्फ इत्यादि भूस्खलन क्षेत्र के पदार्थ के भार में वृद्धि कर देती हैं। कभी ऊँचाइयों से गिरे अवसाद भार में वृद्धि का कारण बनते हैं। मनुष्य द्वारा भरान करके चौड़े किये गये ढाल, इमारतों अथवा अन्य संरचनाओं का भार इत्यादि मिलकर पदार्थों के शियर स्ट्रेस को बढ़ा देते हैं।
वे कारण जो पदार्थों की शियर स्ट्रेंथ को कम कर देते हैं निम्नानुसार हैं।
1. प्राकृतिक रूप से कमजोर पदार्थ जैसे नई चट्टानें, मिट्टी, बजरी इत्यादि अथवा जल इत्यादि से अपक्षरित पदार्थ।
2. पदार्थों में मौजूद कणों/खण्डों के बीच प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित कमजोर सीमेन्ट या मेट्रिक्स होना या कणों/खण्डों में ज्यादा गोलाई होना।
3. चू रही पाइप लाईन, कच्ची नालियों, सीवर, नहरों, जलाशयों के पानी का भार सम्भावित क्षेत्र के पदार्थ के भार में मिल जाना।
4. धरती के डोलने जैसे भूचाल, भारी वाहनों की आवाजाही अथवा ब्लास्टिंग।
5. पहाड़ी के ढाल का लगातार बढ़ना सम्भवतः नियो टेक्टॉनिक कारणों से अथवा ढाल का उल्टा हो जाना जैसे कि प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक कारणों से नीचे की शैल संहिता का गायब हो जाना।
6. कभी- कभी जोड़ों, गुफाओं के अन्दर पानी जम जाता है। जमे पानी का आयतन बढ़ जाने से यह चट्टानों पर दबाव डालता है तथा किनारे के पदार्थों को गिरा सकता है। कभी यही पानी चिकनी मिट्टी के कणों को फुलाकर शैल परत का आयतन बढ़ा देता है।
7. जोड़, भ्रंश, विभंग इत्यादि अथवा कमजोर शैल पदार्थों के ऊपर सघन तल शैल, चट्टानों के मुख्य जोड़ों का घाटी की ओर खुलना या झुकना अथवा पारगम्य व अपारगम्य शैल तलों की जुगलबन्दी।
8. अपरदन एवं अपरूपण की वजहों से, भूजल स्तर के उतार-चढ़ाव के दबाव स्वरूप, कच्ची चट्टानों में दरार आ जाने से।
उक्त में से एक या अधिक कारणों के मिल जाने से भूस्खलन हो सकता सकता है जबकि अंतिम कारण केवल एक बिंदु होता है जो पदार्थ को गतिमान कर देता है, जैसे पहाड़ों में वर्षा अक्सर भूस्खलन का अंतिम कारण बनती है।
अतएव, भूस्खलन से बचाव के लिये, ढलानों की स्थिरता हेतु उपचारों में मुख्य शियर स्ट्रेस को कम करना एवं शियर स्ट्रेंथ को बढ़ाना है। शियर स्ट्रेस को कम करने के लिये भूस्खलन क्षेत्र में ऊपरी भाग का भारत कम करना मुख्य है। इसके अतिरिक्त ढलानों को बेंच देकर कम ढलवा करना तथा अस्थिर सामग्री को हटाना भी है। शियर स्ट्रेंथ बढ़ाने के लिये यदि कच्ची मिट्टी के बने ढाल हों तो जिओटेक्स्टाइल/ जियोजूट/जियोग्रिड बिछाई जा सकती है। भूस्खलन क्षेत्र में आई दरारों को भरा जाना चाहिए। रॉक बोल्ट, एंकर, व केवल एंकर से चट्टानों को आपस में बाँधा जाना चाहिए। उचित जल निकासी हेतु नालियाँ बनायी जानी चाहिए। ढलानों का भूतकनीकी दृष्टि से उपचार करके बायो तकनीकी पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिए।
ढालों के स्थातित्व की निम्नानुसार पहचान एवं मूल्यांकन किया जा सकता है।
1. बारम्बारता अर्थात ढाल किस गति से खिसक रहा है या दुबारा भूस्खलित होने की निरंतरता क्या हो सकती है।
2. कितना बड़ा क्षेत्र भूस्खलन की चपेट में आ रहा है या आ सकता है।
3. भूस्खलन के समय पदार्थों के चलन की गति क्या रहने की संभावना है। चट्टानें सबसे अधिक गति से गिरती हैं। चट्टानें खिसकने की गति काफी तेज से काफी धीमी तक हो सकती है। चट्टानों के टुकड़े, रौखड़, उपरिभार काफी तेजी से गिर सकता है जबकि मिट्टी या चट्टानों का धँसना काफी तेजी से अत्यधिक धीमी गति तक हो सकता है।
समाजिक आर्थिक एवं तकनीकी परिस्थितियों के आधार पर उक्त बिंदुओं से द्वितीयक बिंदु ज्ञात किये जा सकते हैं जैसे –
1. ढलान के स्थायित्व के लिये योग्य कदम ज्ञात होने चाहिए।
2. स्थायित्व में लगने वाले धन का सही अनुमान होना चाहिए।
3. यदि उपचार न किया जाये तो भूस्खलन का महत्व, आकार, प्रकार एवं हो सकने वाले नुकसान की कीमत का पता होना चाहिए।
4. यदि उपचार किया जाता है तो उपचारित ढलान को कैसे प्रयोग में लाया जाय कि उपचार का खर्च निकल आये यह ज्ञात होना चाहिए।
भूस्खलन की सम्भावना ज्ञात करने के लिये निम्न बिन्दु ध्यान देने योग्य होते हैं-
1. पेड़ों का टेड़ा होना।
2. जमीन में दरार उत्पन्न हो जाना तथा सड़क, दीवार, दरवाजों की चौखट की दरारों का चौड़ा हो जाना।
3. किसी क्षेत्र में नीचे अथवा घाटी के नजदीक की जमीन का अचानक ऊपर उठ जाना, चेक बाँधों, सुरक्षा दीवारों, खेतों या फिर नदी तल का ऊपर उठ जाना।
4. झरनों का गायब हो जाना या उनके पानी का रंग मटमैला हो जाना।
5. चूना पत्थर क्षेत्र में, रौखड़ में या ढाल निक्षेपयुक्त क्षेत्र में जमीन के खोखले होने की आवाजें आना।
6. पहाड़ का अचानक दरक कर स्कार फेसेज बनाना।
7. उल्टे ढाल बनना, पहाड़ों का आगे बढ़ जाना या चट्टानों का गिरना।
8. नदी द्वारा सम्भावित भूस्खलन क्षेत्र की जड़ की मिटटी को बहा ले जाना या जड़ के पास के भूभाग को परिवर्तित कर देना।
9. आयु के हिसाब से क्षेत्र में वनस्पति के मेल न खाने वाले अलग-अलग हिस्से होना अथवा ढलान पर वनस्पति होना एवं शीर्ष का पादपहीन होना।
10. पेड़ों में हाकी की लकड़ी की भांति के मोड़ होना।
11. अपेक्षाकृत बंजर भूमि एवं चट्टानों पर उगने वाले लम्बे पेड़ों की जड़ें दरारों को और बढ़ा देते हैं।
12. पहाड़ों से टूटने की आवाजें आना।
13. गन पाउडर ब्लास्ट या टनल बोरिंग मशीन की वजह से भूस्खलन हो सकते हैं।
14. मुख्य भ्रंशों या विभंगों के क्षेत्र के पास की भूमि
15. कच्ची नहरें, नालियों इत्यादि के पास की जगहें।
16. भूस्खलन वाली जगहें बहुधा बंजर होती है ऐसी जगहों पर नाइट्रोजन फिक्स करने वाले पौधे जैसे उतीस (एलनस नेपालेनसिस), रूबिनिया श्यूडोअकेशिया एवं कूर्जू आदि लगाये जाने चाहिए। ये पौधे वातावरण की नाइट्रोजन को अवशोषित कर जमीन को उपजाऊ बनाते हैं जिससे दूसरे पौधे भी वहाँ उग सकते हैं। उतीस एक छायादार वृक्ष का कार्य करता है इसकी छाया में बड़ी इलाइची उगाकर आर्थिकी मजबूत की जा सकती है। पौधे वर्षा के पानी की बौछार कम करके तथा गहरी जड़ों वाले पौधे मिट्टी को जकड़ कर मिट्टी का अपक्षरण कम कर देते हैं।
सम्पर्क
कौमुदी जोशी एवं सुरेश चन्द्र जोशी
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, देहरादून, जी. बी. पी. आई. एच. डी., श्रीनगर
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