Posted on 30 Jul, 2016 03:49 PM भले ही 07 जुलाई 2016 को ‘मिशन फॉर क्लिन गंगा’ कार्य योजना का उद्घाटन केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती, केन्द्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी हरिद्वार पहुँचकर कर गए हों मगर गंगा की अविरलता और सांस्कृतिक, आध्यात्मिक के सवाल आज भी खड़े हैं। मोदी सरकार की ‘गंगा मिशन’ कार्य योजना कब परवान चढ़ेगी यह तो समय ही बता पाएगा परन्तु वर्तमान का ‘विकास मॉडल’ गंगा की स्वच्छता और अविरलता को लेक
Posted on 23 Jul, 2016 11:20 AM हिमालय के मध्य क्षेत्र उत्तराखण्ड में बरसात के मौसम में अक्सर बादल फटना, अतिवृष्टि, निरंतर बारिश होना आम बात हो गई है। आखिर क्यों हो रहा है यह बदलाव, सोचने को विषय है? पहाड़ों का सीना चीरकर सीमेंट-कंक्रीट का बोझ लादकर उनके प्राकृतिक स्वरूप को बिगाड़कर हम अपने आप को शाबाशी तो दे रहे हैं, किन्तु उससे होने वाले दुष्प्रभावों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
Posted on 23 Jul, 2016 11:12 AM हिमालय पर्वत पूर्व में म्यांमार से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक फैला है। हिमालय दुनिया के नवीनतम पर्वतों में से एक है। हिमालय में अन्दरूनी एवं बाहरी बदलाव की प्रक्रिया जारी है। प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक बीएस कोटलिया के अनुसार “हिमालय की रचना लगभग 50 हजार वर्ष पूर्व हुई है तथा विभिन्न प्लेटों/सतह से बने हुए पहाड़ के अंदर वर्तमान में भी परिवर्तन हो रहा है।”
Posted on 22 Jul, 2016 12:19 PM इस साल ही नहीं हर साल ही यह देखने को मिलता है कि फायर सीजन शुरू होते ही वन विभाग इंद्र भगवान की स्तुति करना शुरू कर देता है। इंद्र भगवान जितने देर तक रूष्ठ रहेंगे वन विभाग उतना ही परेशान और सभी की नजरों में घिरा रहता है। लेकिन जैसे ही इंद्र भगवान मेहरबान हुए वैसे ही वन विभाग भी चैन की साँस लेता है और फिर लाखों का खर्चा दिखाता है फायर लाइन के संरक्षण व सफाई में।
Posted on 15 Jul, 2016 05:03 PM “तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिलेे आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में हिम रहने और गंगा जमुना में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो...” - पहाड़ के लोक पर्व हरेेला पर जब सयानी और अन्य महिलाएँ घर-परिवार के सदस्यों को हरेला शिरोधार्य कराती हैं तो उनके मुख से आशीष की यह पंक्तियाँ बरबस उमड़ पड़ती हैं।
घर परिवार के सदस्य से लेकर गाँव समाज के खुशहाली के निमित्त की गई इस मंगल कामना में हमें जहाँ एक ओर ‘जीवेद् शरद शतंम्’ की अवधारणा प्राप्त होती है वहीं दूसरी ओर इस कामना में प्रकृति व मानव के सह अस्तित्व और प्रकृति संरक्षण की दिशा में उन्मुख एक समृद्ध विचारधारा भी साफ तौर पर परिलक्षित होती दिखाई देती है।