उत्तर पश्चिम हिमालय का एक अल्प प्रयोग में लाया जाने वाला फल का पेड़ : भारतीय जैतून (आलिया फैरूजीनियाँ रॉयल)


बहुत सारे अध्ययनों से पता चला है कि जैतून के फल व पत्तियों में अत्यधिक मात्रा में पॉलिफिनाल व एण्टी आक्सीडेन्ट्स होते हैं जिनसे बहुत से स्वास्थ्य वर्धक फायदे हैं। हाल ही में फैरूजीनियाँ के क्लोरोफार्म रस से अति महत्त्वपूर्ण आलीनोलिक एसिड प्राप्त किया गया है। यूँ तो सभी पौधे वातावरण में ऑक्सीजन संचार करने के कारण जीव जाति के लिये अति महत्त्वपूर्ण हैं। पर कुछ पौधे मनुष्य जाति के लिये विशेष उपयोगी होने के कारण एक विशिष्ट स्थान के भागी हैं।

आलिया फैरूजीनियाँ रॉयल जिसे साधारण भाषा में भारतीय जैतून कहते हैं, कश्मीर से कुमायुँ तक हिमालय में 2400 मी. की ऊँचाई तक पैदा होता है। यह एक बहुपयोगी कचरा शून्य सदाबहार पेड़ प्रजाति है। इससे बहुत सारे काम की चीजें पैदा होती है जैसे- अच्छे किस्म का चारा, ईंधन की लकड़ी एवं खाने योग्य फल। इस वृक्ष की पत्तियाँ, छाल, जड़, फल एवं बीज विभिन्न बीमारियों के इलाज में काम आते हैं। फलों से तेल भी निकलता है। हालाँकि उपलब्ध ज्ञान के आधार पर प्रतीत होता है कि अभी तक फैरूजीनियाँ के बीजों से प्राप्त तेल की मात्रा एवं गुणवत्ता तथा फैटी एसिड की बनावट का मुख्यतः अध्ययन नहीं किया गया था, इसलिए हिमाचल प्रदेश में चार जगहों (कोलीवेटर, सिऊन्द तथा काइस कुल्लू जनपद एवं थलौरा मन्डी जनपद) से आलिया फैरूजीनियाँ के फल एवं बीज तेल के स्रोत के रूप में छाँटे गये।

छाँटी गई जगहें भौगोलिक गुणों के आधार पर अलग-अलग हैं। जैतून का तेल बीज से ज्यादा फलों में पाया गया। यह फलों में 20.67% से 27.40% तक तथा सबसे ज्यादा थलौस में था। बीजों में जैतून का तेल 7.5% से 12.5% तक था तथा सिऊन्द के फलों में सबसे कम तेल था। इन सभी क्षेत्रों के तेल में मोनो अनसेचुरेटेड ओलिक एसिड मुख्य था। जोकि 61.6% से 66.9% फल के तेल में तथा 64.4% से 67.2% बीज के तेल में था। फैटी एसिड के संघटन में भी फल एवं बीज का अन्तर स्पष्ट था। अध्ययन से ज्ञात होता है कि ओ फैरूजीनियाँ जैतून के तेल का समर्थ स्रोत हो सकता है। अतः इस समर्थ वृक्ष को सामाजिक व आर्थिक उन्नति हेतु सहनीय उपयोग में तथा जिस क्षेत्र में यह उगता है उसके वातावरण के संरक्षण हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।

आलिया फैरूजीनियां रॉयल (समानार्थी ओ कस्पिडाटा वॉल एक्स जी डान) साधारण रूप से भारतीय जैतून के नाम से जाना जाता है तथा आलिया की छः प्रजातियाँ, जोकि हिमालय में कश्मीर से कुमाऊँ तक 2400 मी. की ऊँचाई पर पायी जाती हैं, में से एक है। यह प्रजाति अफग़ानिस्तान, नेपाल व पाकिस्तान में भी पायी जाती है। यह उपांत तथा बंजर भूमि में मिलती है जहाँ की भूमि अन्य पौधों के लिये उपयोगी नहीं होती। इसी कारण से ओ फैरूजीनियाँ को एक तने के रूप में ओ यूरोपिया की कलम रोपने हेतु उपयोग में लाया गया। इस बहुपयोगी, कचराशून्य सदाबहार वृक्ष प्रजाति जिसके वृक्ष के विभिन्न भाग विभिन्न कार्य में लाये जाते हैं, जैसे गुणवत्ता युक्त चारा, जलावन की लकड़ी, खाने योग्य फल। इन भागों से ही बहुत सी बीमारियों की चिकित्सा भी की जाती है।

इसके पत्ते एवं छाल बुखार तथा निर्बलता में कालिक ज्वररोधी की तरह प्रयोग होता है। इसकी पत्तियाँ दाँत दर्द में, संकोचक की तरह मुँह के छालों में, सुजाक में, गले की सूजन में, आवाज के भारीपन में तथा मादक चाय पेय के रूप में, हल्के पाचक पदार्थ, पूतिरोधी व कृमिनाशक के रूप में प्रयोग होती हैं। लकड़ी भारी होती है तथा खेती सम्बन्धी यंत्र बनाने के काम आती है।

इसके फल खाने में, अचार में, भूख बढ़ाने के लिये, आर्तवजनक मधुमेहनाशी के रूप में व ओलिक अम्ल से भरपूर तेल के स्रोत हैं तथा आन्त्र ज्वर पीलिया, खाज, आँखों की जलन, दाँत दर्द तथा दाँतों के गड्ढे में प्रयोग आते हैं। तेल खाना पकाने, गठिया जोड़ों के दर्द, मलेरिया, सूजाक त्वचा सम्बन्धी बीमारियों में एवं प्रसाधन की तरह प्रयोग होता है। जड़ दमा, बिच्छू के डंक की दवा, गठिया तथा सरदर्द की दवा की तरह प्रयोग होती है।

बहुत सारे अध्ययनों से पता चला है कि जैतून के फल व पत्तियों में अत्यधिक मात्रा में पॉलिफिनाल व एण्टी आक्सीडेन्ट्स होते हैं जिनसे बहुत से स्वास्थ्य वर्धक फायदे हैं। हाल ही में फैरूजीनियाँ के क्लोरोफार्म रस से अति महत्त्वपूर्ण आलीनोलिक एसिड प्राप्त किया गया है। यूँ तो सभी पौधे वातावरण में ऑक्सीजन संचार करने के कारण जीव जाति के लिये अति महत्त्वपूर्ण हैं। पर कुछ पौधे मनुष्य जाति के लिये विशेष उपयोगी होने के कारण एक विशिष्ट स्थान के भागी हैं। इनमें से एक है पहाड़ की बंजर भूमि का राजा- भारतीय जैतून।

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सुरेश चन्द्र जोशी
जी. बी. पी. आई. एच. डी., श्रीनगर


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