उत्तराखंड

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सरदार सरोवर जलाशय में गाद का प्रबंधन
Posted on 16 Feb, 2012 12:59 PM नर्मदा नदी पर निर्माणाधीन सरदार सरोवर बांध भारत के बड़े बाधों में से एक है। इस बांध का निर्माण, नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण वर्ष 1979 के उस निर्णय के उपरान्त शुरू हुआ जिसके द्वारा नर्मदा जल का बंटवारा किया गय है। वर्ष 1980 में परियोजना की रूपांकन संबधी घटकों को अंतिम रूप दिय गया। अब उसके बाद की अवधि के निस्सारण/गाद (सिल्ट) के आंकड़े भी उपलब्ध हैं। कुछ आलोचकों ने आशंका व्यक्त की है कि जलाशय में गाद
कुसुम की बढ़वार, उपज एवं जलोपभोग पर बुवाई के समय तथा नाइट्रोजन एवं सिंचाई के विभिन्न स्तरों का प्रभाव
Posted on 16 Feb, 2012 12:58 PM कुसुम की फसल की बढ़ोत्तरी, उपज तथा जोलपभोग पर बुवाई के समय तथा नाइट्रोजन सिंचाई जल के विभिन्न स्तरों का अध्ययन करने के लिए राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थिति मटियार दोमट भूमि वाले कृषि अनुसंधान केंद्र, राजस्थान कृषि विश्विद्यालय, बांसवाड़ा पर लगातार दो वर्षों तक परीक्षण किया गया। स्पलीट प्लॉट डिजाईन पर किए गए इस परीक्षण में 4 बुवाई की तिथियों (15, 30 अक्टूबर एव 15, 30 नवम्बर) एवं 3 नाइट्रोजन के स्
जलविज्ञानीय विश्लेषणों हेतु स्वलेखी तापमापक की प्रेक्षण त्रुटियां : प्रतिफल एवं समाधान
Posted on 16 Feb, 2012 12:56 PM हमारी पृथ्वी पर जलवायु तथा मौसम परिवर्तन एवं जलचक्र के नियमित, अनवरत क्रियान्वित रहने की पृष्ठभूमि में वायुताप का विशेष महत्व है। वायुगति एवं वायुमंडलीय अनेकानेक प्रकार की हलचलों तथा पारिस्थितिक परिवर्तनों के पीछे भी इसका बहुत ही गहरा संबंध है। यह कहना कठिन है कि इसका मापन किसके लिए कितना सार्थक एवं कितना उपयोगी है, परन्तु इस विषय पर आम धारणा यह है कि इसकी उपयोगिता सभी के लिए है चाहे वह मौसम विज्ञ
संतुलित जल सिंचित धान : उत्पादन संवृद्धि
Posted on 16 Feb, 2012 12:54 PM धान की फसल के लिए दूसरी अन्य धान्य फसलों की तुलना में अधिक जल की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक रूप से मध्यम जलीय होने के बावजूद धान अदक्षतापूर्वक जल का उपयोग करता है और जल की अधिकता एवं कमी से बुरी तरह प्रभावित होता है। बारानी दशाओं में वर्षा कभी-कभी समय पर अथवा पर्याप्त नहीं होती जिससे कि धान की फसल की जल की आवश्यकता पूरी हो सके, अतएव जल प्रबंधन पद्धति की आवश्यकता अपरिहार्य हो जाती है। बारानी दशाओं
बारानी खेती में बूंद बूंद पानी का उपयोग एवं मौसम आधारित जल प्रबंध
Posted on 16 Feb, 2012 12:52 PM भारत की सिंचन क्षमता गत 40 वर्षों में लगभग चार गुनी हो जाने के बावजूद लगभग 70 प्रतिशत (100 मिलियन हेक्टेयर) क्षेत्र में वर्षाधीन खेती की जाती है। वर्षा के वितरण एवं मात्रा में स्थान एवं महीनों में भारी अन्तर होने तथा अनिश्चितता के कारण कृषि उत्पादन में स्थिरता नहीं रह पाती। इसी कारण सिंचित क्षेत्रं में पानी की सुनिश्चतता के कारण जहां हरित क्रांति का आविर्भाव संभव हो सका वहीं असिंचित क्षेतरों में क
दलहन-आधारित फसल-चक्रों की उपज, आय एवं जलोपभोग पर विभिन्न सिंचाई जल-स्तरों का प्रभाव
Posted on 16 Feb, 2012 12:48 PM दलहन-आधारित फसल-चक्रों की उपज, आय तथा जलोपभोग-क्षमता एवं दक्षता पर विभिन्न सिंचाई जल-स्तरों के प्रभाव का आंकलन करने हेतु, राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी नहर-सिंचित क्षेत्र के कृषि अनुसंधान केंद्र (राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय) श्रीगंगानगर पर वर्ष 1986-87 से 1989-90 (चार वर्षों तक) एक प्रक्षेत्र के एक ही निश्चित स्थान पर परीक्षण किए गए। “स्पलीट प्लाट डिजाईन” पर बोये गए इस परीक्षण में 3 दलहन-आधारित फसल-चक
सुदूर संवेदन आंकड़ों द्वारा तवा जलाशय की क्षमता का मूल्यांकन
Posted on 15 Feb, 2012 11:22 AM देश की भौगोलिक स्थिति एवं उपलब्ध जल संसाधन में विषमताओं को ध्यान में रखकर विभिन्न नदियों पर जल संरक्षण के लिए जलाशयों का निर्माण किया गया। सुदूर संवेदन तकनीकी का प्रयोग जल संसाधन के क्षेत्रों में भी बढ़ रहा है। यह तकनीकी जलाशयों के उचित प्रबंध एवं आयोजन में अति लाभप्रद है।
भूगोलीय सूचना तंत्र तथा जल-विज्ञान में उसकी उपयोगिता
Posted on 15 Feb, 2012 11:18 AM “भूगोलीय सूचना तंत्र” संगणक आधारित औजारों एवं विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किए गए आकाशीय आंकड़ों के समाकलन हेतु उपयोग की गई विधियों का ऐसा संयोजन है जिससे इन आंकड़ों का विश्लेषण, प्रतिरूपण एवं प्रदर्शन किया जा सकता है। विभिन्न डाईवर्स स्रोतों जैसेः जनगणना, सरकारी विभाग, भू-आकृतीय मानचित्रों एवं वायव फोटो से प्राप्त आंकड़ों को भूगोलीय सूचना तंत्र में उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ-साथ बड़े पैमाने पर
गढ़वाल हिमालय स्थित डोकरियानी हिमनद पर जलविज्ञानीय अध्ययन
Posted on 15 Feb, 2012 11:14 AM गढ़वाल हिमालय क्षेत्र के डोकरियानी हिमनद की गलित जलधारा पर स्थापित जलविज्ञान मापन स्थल से राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान द्वारा 1992, 1994 एवं 1995 में निस्सरण, निलम्बित अवसाद, वायु तापमान तथा जल तापमान के आंकड़े एकत्र किये गये हैं। भिन्न-भिन्न महीनों में जलालब्धि का निर्धारण किया गया है। इनके विश्लेषणों से देखा गया है कि गलित जल जुलाई के महीने में अधिकतम पाया जाता है। इस क्षेत्र में प्रायः रोज वर्षा
जल प्रबंधन-धारणा एवं नीति
Posted on 15 Feb, 2012 11:11 AM प्रकृति प्रदत्त दुर्लभ साधनों के कुशल उपयोग करके विकास प्रक्रिया को सतत् गति देने के परिप्रेक्ष्य कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिये जल स्रोत प्रबंध एक अपरिहार्य दशा बन चुकी है, विशेषकर भारत जैसी विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था में जहां वर्षा अनियंत्रित, असामयिक व अनिश्चित हो। वर्षा की इस प्रकृति के कारण होने वाली अर्थव्यवस्था की अस्थिरता से कारगर ढंग से निपटने के लिये उपलब्ध जल स्रोतों के प्रबंध पर वृद्धि
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