गंगा रक्षा हेतु ललकार

परम श्रद्धेय चार शंकराचार्य पीठों को भेजा गया आमंत्रण (प्रतिलिपि)
विषय- धर्म की आन व शान तथा गंगा जी का मान


आदरणीय शंकराचार्य जी महराज आप आध्यात्मिक जगत के महाराज हैं, हम सब लोग आपकी सेना हैं। आज समय की पुकार हैं, गंगा रक्षा के लिए आप युद्ध क्षेत्र में उतरें। हम आपसे नम्र निवेदन करते हैं कि हमारे प्राणों की आहुति में आप साक्षी हो व आपके दिशा निर्देश तथा इस युद्ध क्षेत्र में आपके सानिध्य में गंगा रक्षा ललकार में इस देश के संत महात्माओं को अपने प्राणों को न्यौछावर करना चाहिए।

अति संवेदनशील समय की पुकार है, एक-एक व्यक्ति यदि अनशन करके अपने प्राणों की आहुति दे देगा तो संभवतः गंगा रक्षा की पूर्णाहुति संभव नहीं हो पायेगी। हम आह्वान करते हैं व आपसे आशा भी रखते हैं कि वर्तमान में वास्तविक रूप में गंगा रक्षा का अभियान चलाना है तो इस यज्ञ की पूर्णाहुति तक का नेतृत्व समस्त शंकराचार्यों को विशेषतः उत्तर-भारत के शंकराचार्यों को इस आध्यात्मिक सेना का रण क्षेत्र में नेतृत्व कर प्रत्येक सैनिक के बलिदान का साक्षी बनकर इस अभियान को प्रेरणा देनी होगी अन्यथा यह आंदोलन उपहास का विषय बन जायेगा।

हम सभी भारतवर्ष में निवास करने वाले संत-महात्मा, आखाड़ों में निवास करने वाले पदाधिकारी जैसे महाकुम्भ में एकत्रित होकर अपनी आध्यात्मिक शक्ति की ऊर्जा को राष्ट्र हित में समर्पित करते हैं उसी प्रकार ‘गंगा रक्षा हेतु ललकार’ की वेदी पर सिसकती हुई मां गंगा के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति देने को प्रत्येक धर्मावलंबी भारतवासी को तैयार होना चाहिए, विशेष रूप से संत-महात्माओं को इसमें पहले अग्रसर होना चाहिए।

हमे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि सारे कार्यक्रमों को निरस्त करके अति संवेदनशील समय में गंगा जी की आन-बान-शान रक्षा के इस यज्ञ में अग्रिम कार्यवाही हेतु मंत्रणा के निमित्त आप सादर आमंत्रित हैं,

‘राष्ट्रीय नदी’ मां गंगा व इसके उद्गम हिमालय के संरक्षणार्थ आवश्यक कार्यवाही हेतु आमंत्रण


आत्मीय जन,
भारतीय संस्कृति व सभ्यता की जीवंत प्रतीक गंगा हमारी दिव्य आध्यात्मिक धरोहर भी है, गंगा एवं इसके जल के विशिष्ट वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक गुण से हम सभी परिचित हैं। ज्ञात हो कि गंगा पर इसके हिमालयी उद्गम भाग में ही निर्माणाधीन व प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं के कारण गंगा का समस्त प्रवाह सुरंगों, झीलों व नहरों में कैद होने जा रहा है, जिसके चलते गंगा का नैसर्गिक प्रवाह पथ पूर्ण रूप से क्षत-विक्षत किये जाने की तैयारी है। इस अति महत्वपूर्ण विषय का गंभीर संज्ञान लेते हुए विगत काल में भी संतों सहित समाज के अन्य बुद्धिजीवी वर्ग की चिंता व प्रयास से हम सभी अवगत हैं, यहां तक कि शीतकालीन संसद सत्र में भी दिनांक 19.12.2011 को नियम 193 के अंतर्गत यह विषय भारत की संसद में रखा गया जिसमें हिमालय में गंगा की सहयोगी धाराओं पर निर्माणाधीन व प्रस्तावित सुरंग, झील व बैराज आधारित विद्युत परियोजनाओं पर तत्काल रोक की बात एक सुर में सदन के कई गणमान्य जनों द्वारा उठायी गयी। किन्तु लगभग 4 घंटे चली इस चर्चा में आदरणीय मंत्री महोदया द्वारा इस पर ठोस कार्यवाही हेतु सदन को संतुष्ट न कर पाने के कारण सम्बंधित सासंदों को सदन से बहिष्कार भी करना पड़ा, और कोई परिणाम नजर नहीं आया।

दुर्भाग्यपूर्ण रूप से सरकारों व सरकारी जनों की संवेदनहीनता के चलते गंगा प्राधिकरण की आड़ में मां गंगा के साथ यह निर्मम व्यापारिक खिलवाड़ न केवल बेतहाशा जारी है वरन बढ़ता ही जा रहा है। महोदय, केंद्र व उत्तराखंड राज्य सरकार के इतने गंभीर विषय की पूर्णतः उपेक्षा के चलते इसी मुद्दे पर गंगा की अविरलता व निर्मलता हेतु स्वामी ज्ञानस्वरूप ‘सानंद’ (पूर्व में डॉ. जी. डी. अग्रवाल, पूर्व सदस्य सचिव-केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं प्रोफेसर आई.आई.टी. कानपुर) को दिनांक 08.02.2012 से हरिद्वार मातृ-सदन में अन्न व फल त्याग हेतु बाध्य होना पड़ रहा है। वे अभी केवल जल ही ग्रहण कर रहे हैं तथा समुचित कार्यवाही न होने पर 08.03.2012 से जल-त्याग कर अपने प्राणों को भी त्याग देने के लिए संकल्पित हैं।

यह विषय राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर संज्ञान व कार्यवाही हेतु शीघ्र अग्रसरित हो इसकी अति-आवश्यकता आन पड़ी है। मां गंगा इस पुनीत यज्ञ कार्य के लिए आज हम सबका आह्वान कर रही है, आज एक बार पुनः हम सभी का मां गंगा व इसके उद्गम देवात्मा हिमालय के संरक्षण हेतु एकजुट होने का समय है।

समय व तिथि – 04 मार्च 2012, रविवार प्रातः 11 बजे से,
शुभेच्छु
स्वामी अच्युतानन्दतीर्थ
स्थान – भूमानिकेतन भूपतवाला हरिद्वार (उत्तराखंड
कार्यक्रम संपर्क
09711216415
09837094933


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