प्रयागराज जिला

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को कहि सकहिं, प्रयाग प्रभाऊं...
Posted on 17 Jan, 2013 02:48 PM कुंभ महज प्रदेश का पर्व या राष्ट्रीय जमावड़ा नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का सबब भी है। दुनिया भर की निगाह कुंभ में जुटे करोड़ों लोगों के साथ इस आयोजन के बंदोबस्त को लेकर की गई व्यवस्था पर भी होती है।

प्रयागराज में महाकुंभ को लेकर साधु-संतों का आगमन बढ़ने लगा है। इसी क्रम में श्री शंभू पंचाग्नि अखाड़े की शोभायात्रा शाही अंदाज में निकाली गई। अखाड़ों की परंपरा से अलग हटकर पहली बार अग्नि अखाड़े ने अपने महामंडलेश्वरों की अलग से शोभायात्रा निकाली है। इस यात्रा को दर्जनों डीजे व हाथी-घोड़ों के साथ कड़ी सुरक्षा के बीच निकाला गया। शोभा यात्रा में शामिल महामंडलेश्वरों के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहा। यह शोभा यात्रा भारी सजावट के साथ हाथी, घोड़ों व चार पहिया वाहन को साथ लेकर हिंदी साहित्य सम्मेलन से निकली। को कहि सकहिं, प्रयाग प्रभाऊं...। इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार मानस की इन लाइनों को साकार करने में शिद्दत से जुटी है। इसकी वजह भी साफ है कि जब तक प्रयाग के प्रभाव का जिक्र नहीं होगा तब तक कुंभ की सफलता को लेकर पीठ नहीं थपथपाई जा सकेगी क्योंकि कुंभ महज प्रदेश का पर्व नहीं है, राष्ट्रीय जमावड़ा नहीं बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय आकर्षण का सबब है। दुनिया भर की निगाह कुंभ में जुटे करोड़ों लोगों के साथ ही साथ इस आयोजन के बंदोबस्त को लेकर की गई व्यवस्था पर भी होती है। एक तरफ जहां कुंभ देश के धार्मिक समागम की अभिव्यक्ति होता है, वहीं साधु-संतों, नागाओं-हठयोगियों की परंपरा का ऐसा वाहक होता है जो न केवल हमें विस्मित करता है बल्कि हमारी संपन्न धार्मिक विरासत से भी हमें रू-ब-रू कराता है। साधना और प्रार्थना के साधनों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध भारत के हठयोगी कुंभ में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन बैठे हैं।
महाकुंभ की पवित्र छाया में
Posted on 16 Jan, 2013 10:10 AM मैं कुंभ की पवित्रता का अनुभव कर सकता हूं और उनके दिलों की धड़कन स
कुंभ: साझी समझ से बासी आडंबर तक
Posted on 15 Jan, 2013 04:14 PM

पौराणिक संदर्भ प्रमाण हैं कि कभी नदियों की समृद्धि के काम में राजा-प्रजा-ऋषि...

mahakumbh
कुंभ: सिद्धांत और व्यवहार
Posted on 15 Jan, 2013 03:52 PM

कुंभ का सिद्धांत

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कुंभ : आस्था और विज्ञान
Posted on 15 Jan, 2013 03:27 PM

कुंभ की आस्था

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क्यों जानना जरूरी है कुंभ परिचय
Posted on 15 Jan, 2013 03:00 PM भारत का पांरपरिक ज्ञान भले ही कितना गहरा व व्यावहारिक हो, लेकिन स
Kumbh introduction
कुंभ निवेदन
Posted on 15 Jan, 2013 02:36 PM

ए नये भारत के दिन बता!
ए नदिया जी के कुंभ बता!
उजरे-कारे सब मन बता!!
क्या गंगदीप जलाना याद तुम्हें
या कुंभ जगाना भूल गये ?
या भूल गये कि कुंभ सिर्फ नहान नहीं,
गंगा यूं ही है महान नहीं।
नदी सभ्यतायें तो कई जनी,
पर संस्कृति गंग ही परवान चढ़ी।
“नदियों में गंगधार हूं मैं’’
क्या श्रीकृष्ण वाक्य तुम भूल गये?

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कुंभ से अमृत छलकाने की तैयारी
Posted on 12 Jan, 2013 10:37 AM

इलाहाबाद में संगम पर आस्था का सैलाब उमड़ने को तैयार है। सरकार भी जी-जान से तैयारियों में जुटी है। दंडी स्वामियों के साधना-स्थल पर कार्य गतिशील है। अखाड़ों के विशालकाय प्रवेश-द्वार वाले बैनर टंग चुके हैं। बांस की सीमा-रेखा बनाकर, टिन से घेर कर तंबुओं की परिधि बनाने में संन्यासी जुटे दिखने लगे हैं। अखाड़ों की धर्मध्वजा ईशान कोण में फहरा रही हैं। कई प्रख्यात धर्माचार्यों के पंडाल और प्रवेश-द्वार चकाचौंध पैदा कर रहे हैं। लैपटॉप और मोबाइल लिए साधु अपने निर्माण कार्य की निगरानी करते तथा परंपरा और आधुनिकता की संस्कृति में रचे-बसे दिख रहे हैं। सारा वातावरण किसी विशाल यज्ञ की तैयारियों में जुटा जान पड़ता है।

भारतीय जनमानस की अंतश्चेतना में आधुनिकता के मोहपाश के बावजूद धर्म और अध्यात्म के प्रति आस्था की जड़ें कितनी मजबूत हैं, इसका साक्षात्कार रेत पर बसे आस्था के शहर से गुजरते हुए आसानी से हो सकता है। कुंभ के लिए बसाए गए इस शहर में-
‘चंवर जमुन अरु गंग तरंगा।
देखि होहिं दुख दारिद भंगा’।।


की पवित्र भावना से लोक-परलोक सुधारने के लिए जुटे श्रद्धालुओं, संतों-महात्माओं, नागाओं और धर्मभीरुओं की आस्थाएं न डगमगाएं इसलिए सरकार ने भी खासी मेहनत-मशक्कत कर रखी है। लंबी तैयारी है। लेकिन स्नान से पहले इन तैयारियों की परीक्षा संभव नहीं है।
कुंभ में होता है आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार
Posted on 08 Jan, 2013 03:07 PM विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां कुंभ और सिंहस्थ जैसे महापर्व मानए जाते हैं। देश के चार तीर्थ स्थलों उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग के तट पर ये महापर्व मनाए जाते हैं। प्रयाग में 14 जनवरी से कुंभ शुरू होगा।
गंगा संसद का आयोजन
Posted on 02 Jan, 2013 10:35 AM तरुण भारत संघ, जल बिरादरी सहित कई संगठन गंगा संसद का आयोजन कर रहे हैं। यह आयोजन इस बार के इलाहाबाद महाकुंभ के दौरान 21-23 जनवरी के बीच होगा।

स्थान : इलाहाबाद
तिथि : 21-23 जनवरी 2013

आप जानते हैं, नदियों की पवित्रता और समाज की संस्कृति के संरक्षण व प्रबंधन और पुनर्जीवन हेतु राज, समाज और संत मिलकर कुंभ आयोजित करते थे। कुंभ सिर्फ स्नान और उत्सव नहीं था बल्कि गहन विचारों का गहरा मंथन और चिंतन था। समुद्र मंथन जैसा गहन विचारों का निचोड़ निकालकर समाज को सदैव सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ाने की कोशिश होती थी। कुंभ की कोशिश कुरीति और सुरीति को पहचानने तथा गंदगी और सफाई को अलग-अलग रखने को ही समुद्र के खारे जल में से अमृत का कलश निकालना हमारे विचार मंथन का सार है। इसी का अब रूप विकृत होता जा रहा है।
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