योगेश मिश्र और रतन दीक्षित

योगेश मिश्र और रतन दीक्षित
कभी साधु तो कभी सैनिक
Posted on 19 Jan, 2013 02:58 PM
एक जीवन पद्धति से दूसरे में जाने-आने के मामले में नागा संन्यासी त
कुंभ से अमृत छलकाने की तैयारी
Posted on 12 Jan, 2013 10:37 AM

इलाहाबाद में संगम पर आस्था का सैलाब उमड़ने को तैयार है। सरकार भी जी-जान से तैयारियों में जुटी है। दंडी स्वामियों के साधना-स्थल पर कार्य गतिशील है। अखाड़ों के विशालकाय प्रवेश-द्वार वाले बैनर टंग चुके हैं। बांस की सीमा-रेखा बनाकर, टिन से घेर कर तंबुओं की परिधि बनाने में संन्यासी जुटे दिखने लगे हैं। अखाड़ों की धर्मध्वजा ईशान कोण में फहरा रही हैं। कई प्रख्यात धर्माचार्यों के पंडाल और प्रवेश-द्वार चकाचौंध पैदा कर रहे हैं। लैपटॉप और मोबाइल लिए साधु अपने निर्माण कार्य की निगरानी करते तथा परंपरा और आधुनिकता की संस्कृति में रचे-बसे दिख रहे हैं। सारा वातावरण किसी विशाल यज्ञ की तैयारियों में जुटा जान पड़ता है।

भारतीय जनमानस की अंतश्चेतना में आधुनिकता के मोहपाश के बावजूद धर्म और अध्यात्म के प्रति आस्था की जड़ें कितनी मजबूत हैं, इसका साक्षात्कार रेत पर बसे आस्था के शहर से गुजरते हुए आसानी से हो सकता है। कुंभ के लिए बसाए गए इस शहर में-
‘चंवर जमुन अरु गंग तरंगा।
देखि होहिं दुख दारिद भंगा’।।


की पवित्र भावना से लोक-परलोक सुधारने के लिए जुटे श्रद्धालुओं, संतों-महात्माओं, नागाओं और धर्मभीरुओं की आस्थाएं न डगमगाएं इसलिए सरकार ने भी खासी मेहनत-मशक्कत कर रखी है। लंबी तैयारी है। लेकिन स्नान से पहले इन तैयारियों की परीक्षा संभव नहीं है।
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