महाराष्ट्र

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नका जाउ बाहेर शौचाला
Posted on 03 Dec, 2012 02:15 PM सेवाग्राम वर्धा। नवविवाहिता प्रियांश श्री लोहकरे ने ससुराल में आकर खुले में शौच जाने से मना कर दिया। इससे पूरे घर में कोहराम मचा है। परिवार के सारे सदस्य सुबह से मुँह फुलाए बैठे हैं। कोई किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा है। इधर लोहकरे ने दुबारा इस बात को पंचायत के सामने उठाने की धामकी दे दी। इस बात से घर का माहौल और खराब हो गया। लेकिन वह अपने जिद पर अड़ी रही। उसके भीतर गुस्सा भरा है और पीड़ा भी।
कमलनाथ के क्षेत्र में बिना मंजूरी के बन रहा है बांध, किसान आंदोलन पर
Posted on 05 Nov, 2012 11:08 AM 1984 में जब पर्यावरण मंत्रालय नहीं था तब एक सादे कागज पर मंजूरी दी
कलम-कूची वाले हाथ में प्लंबिंग का पाना!
Posted on 10 Oct, 2012 11:53 AM मुंबई शहर में पानी की इतनी किल्लत है पर घरों में अक्सर नलों से एक-एक बूंद पानी टपका करता है। इस एक-एक बूंद से रात भर में बाल्टी भर जाती है और फिर पानी मोरी में बहता रहता है। ज्यादातर घरों के नल ठीक से बंद नहीं होते और इस काम के लिए कोई प्लम्बर को नहीं बुलाता। सो आबिद भाई ने अपने मीरा रोड के इलाके में यह फ्री सर्विस शुरू की कि हर घर में मुफ्त में नल चेक किया जाएगा और नल की मरम्मत की जाएगी।
किसानों का पानी बिजलीघरों में
Posted on 06 Oct, 2012 12:18 PM विदर्भ में किसानों का पानी बिजलीघरों को देने की तैयारी में है। किसानों को खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है। विदर्भ की नदियों का पानी ताप बिजलीघरों के लिए आरक्षित किया जा रहा है। स्थानीय किसानों और लोगों के स्वास्थ्य पर इन ताप बिजलीघरों का क्या प्रभाव होगा इस पर कोई बात नहीं करना चाहता। सरकार को किसानों और विदर्भ के खेतों की तनिक भी परवाह नहीं है जो विदर्भ के कृषि संकट को और गंभीर बना स
स्वच्छ पर्यावरण के लिए स्वच्छ जीवनशैली
Posted on 28 Sep, 2012 10:06 AM

स्वच्छता एवं पर्यावरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन

जंगल बचाने के लिए पेड़ पर डाला डेरा
Posted on 22 Sep, 2012 02:59 PM ग्रीनपीस इंडिया के अभियानकर्ता ब्रिकेश सिंह इन दिनों महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में एक पेड़ पर डेरा डाले बैठे हैं। ब्रिकेश ने मध्य भारत के जंगलों में कोयला खनन के विरोध का यह अनूठा तरीका निकाला है। इस महीने की पहली तारीख (1st सितंबर) को इस पेड़ पर चढ़ने के बाद ब्रिकेश पूरा एक महीना यहीं पेड़ पर रहकर बिताएंगे।
जंगलिस्तान बचाने का अनूठा प्रयोग
एचएमटी धान को विकसित करने वाला किसान गुमनामी में
Posted on 17 Aug, 2012 04:55 PM

महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले के नांदेड़ गांव में करीब डेढ़ एकड़ वाले किसान दादाजी रामाजी खोब्रागड़े ने खेती करते

dadaji ramaji khobragade
सरदार सरोवर बांध और नर्मदा में बाढ़ : खेती की बर्बादी
Posted on 13 Aug, 2012 01:33 PM

नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और राज्य शासन के रिपोर्टों की पोल खुली


डूब और नुकसानों को अवैध साबित करते हुए, भादल पिछौड़ी, छोटा बड़दा आदि गाँवों के किसानों, मछवारों और आदिवासियों ने बताया कि केवल पिछोड़ी के 15 परिवारों को सुप्रीम कोर्ट में केस चलते हुए जो खेत जमीन के पत्र आंवटित हुए, वह भी सन 2000 से डूब आते हुए, 2012 में उस जमीन का भी कब्जा मूल मालिक जमीन छोड़ने तैयार न होने से, शासन उन्हें नहीं दे पायी है। महाराष्ट्र और म.प्र. के पहाड़ी आदिवासी गाँवों में 1994 से सैकड़ों की जमीन और घर डूब में गया है, ऐसं भी सैकड़ों परिवारों का कानूनन पुर्नवास बाकी है।

सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में पिछले तीन दिनों से, खेंतों में और कुछ घरो में भी पानी घुसने से, बर्बादी का सिलसिला चला है। उपर के तीन बड़े बांधों (ओंकारेश्वर, इंदिरा सागर और महेश्वर) से पानी सरदार सरोवर के जलाशय में एकत्रित होकर, डूब की भयावह स्थिति सामने आया।
सूखे के छह कारण
Posted on 23 Jul, 2012 10:54 AM

महाराष्ट्र अकेला ऐसा राज्य है जो कृषि के मुकाबले उद्योगों को पानी उपलब्ध कराने को ज्यादा प्राथमिकता देता है। इसलिए सिंचाई योजनाएं बनती हैं तो उनका पानी शहरों में उद्योगों की जरूरतों पर खर्च कर दिया जाता है। अमरावती जिले में ही, जो सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त इलाका है, प्रधानमंत्री राहत योजना के तहत अपर वर्धा सिंचाई प्रोजेक्ट बनाया गया, लेकिन जब यह बनकर तैयार हुआ तो राज्य सरकार ने निर्णय लिया कि इसका पानी सोफिया थर्मल पावर प्रोजेक्ट को दे दिया जाए।

फिर से एक बार सूखे के दिन हैं। इसमें नया कुछ भी नहीं है। हर साल दिसंबर और जून के महीनों में हम सूखे से जूझते हैं फिर कुछ महीने बाढ़ से। यह हर साल का क्रमिक चक्र बन चुका है। लेकिन इसका कारण प्रकृति नहीं है जिसके लिए हम उसे दोष दें। ये सूखा और बाढ़ हम मनुष्यों के ही कर्मों का नतीजा है। हमारी लापरवाहियों का, जिनके कारण हम पानी और जमीन की सही देखभाल नहीं करते। हमारी लापरवाही के कारण ही ये प्राकृतिक आपदाएं पिछले कुछ सालों में विकराल रूप लेती रही हैं। इस सालों में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा सूखे की चपेट में आया है जिसके कारण बड़े पैमाने पर किसानों की फसलें चौपट हुई हैं और वे आत्महत्या के लिए विवश हुए हैं। किसानों की मदद के नाम पर मुख्यमंत्री और पैसा चाहते हैं और विपक्ष इस पर अपनी सियासत करता है।
वन के लाभ ग्रामीणों को
Posted on 30 Jun, 2012 10:10 AM

हालांकि सन् 1992 के सरकारी प्रस्ताव की धारा 9 इस बात को अनुचित मानती है। इसमें साफ लिखा है कि संयुक्त वन प्रबंधन

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