मनरेगा ने बदली पोंगरी गाँव की तकदीर

पोंगरी गाँव के किसानों के खेतों में लहलहाती फसलें, बारहमासी जलापूर्ति की व्यवस्था, ग्रामीण सम्पर्क हेतु निर्मित सड़कें, मार्ग में छायादार एवं फलदार वृक्षों की लम्बी कतारें मनरेगा की सफलता की कहानी कह रहे हैं। मनरेगा से गाँव में खुशहाली आई है। किसानों को कपिलधारा, भूमि शिल्प, नन्दन फलोत्सव आदि उप-योजनाओं का लाभ मिलने से न केवल खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा है बल्कि किसानों की आमदनी भी खूब बढ़ी है। यही नहीं अब गाँव के बेरोजगार रोजगार की तलाश में शहरों की ओर नहीं भागते। गाँव के ही आसपास रोजगार मिलने से वे अब अपने पारिवारिक दायित्वों को भी बखूबी निभा रहे हैं। हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति की महत्वाकांक्षा हर आँख से हर आंसू पोंछने की रही है। यह शायद हमारे लिए कर पाना मुश्किल हो, परन्तु जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरु का उक्त कथन ‘‘नरेगा’’ जिसे 2 अक्टूबर 2009 से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) नाम दिया गया है, की सार्थकता एवं सफलता को स्वयंसिद्ध कर रहा है। महात्मा गाँधी के सपनों का भारत बनाने में मनरेगा जैसी योजनाओं की ही आवश्यकता है।

2 फरवरी, 2006 को आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले से प्रारम्भ केन्द्र सरकार द्वारा प्रायोजित मनरेगा अब तक की सबसे बड़ी गरीबों, किसानों एवं बेरोजगारों को प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित करने वाली योजना है। एक अप्रैल, 2008 से देश के सभी 614 जिलों में लागू इस अभूतपूर्व योजना से 100 दिन के न्यूनतम रोजगार की गारण्टी मिलने से ग्रामीणों के जीवन में आए महत्वपूर्ण बदलाव को स्पष्टतः देखा जा सकता है। बेरोजगारों की आँखों में उत्साह की चमक, किसानों के हँसते-मुस्कुराते चेहरे, महिलाओं में जाग्रत स्वाभिमान, विश्वास एवं गौरव की भावना, जीवन-स्तर में वृद्धि, आवागमन हेतु ग्रामीण सड़कों का निर्माण, बच्चों में घटती कुपोषण की दर आदि मनरेगा ने ही संभव कर दिखाया है।

मनरेगा ने बदली पोंगारी गांव की तकदीर महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना पहले से संचालित कई अन्य योजनाओं से इस मायने में बिल्कुल अलग है क्योंकि इससे पहले ग्रामीण बेरोजगारों एवं किसानों की दशा सुधारने के लिए इतनी बड़ी राशि खर्च नहीं की गई, जितनी कि मनरेगा में खर्च की जा रही है। इस योजना हेतु 2010-11 के बजट में रु. 40,100 करोड़ का प्रावधान है जबकि पिछले बजट वर्ष 2009-10 में यह रु. 39,100 करोड़ था। इससे इस योजना की प्रासंगिकता परिलक्षित होती है।

देश में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या एवं बेरोजगारी की स्थिति में रोजगार मुहैया कराने के लिए मनरेगा जैसी योजनाएं ही औचित्यपूर्ण एवं सफल हो सकती हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहाँ 60 प्रतिशत आबादी खेती से जीवनयापन करती हो, कृषि मानसून का जुआ हो, लगभग 32 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जीवनयापन कर रहे हो, श्रम शक्ति का एक बड़ा भाग अकुशल एवं असंगठित हो, ऐसे में बेरोजगारी को दूर करना तथा सामाजिक असमानता में कमी लाने का प्रयास करना सरकार की पहली प्राथमिकता हो जाती है।

महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजनान्तर्गत विभिन्न उप-योजनाओं जैसे शैलपर्ण, रेशम, भूमि शिल्प, वन्या, कपिलधारा, नन्दन फलोद्यान, निर्मल वाटिका, निर्मल नीर, मीनाक्षी, सहस्त्रधारा, श्रृंखलाबद्ध जल संरचनाएं, शान्तिधाम, क्रीड़ांगन आदि के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगारों, किसानों एवं निर्धन परिवारों के विकास एवं कल्याण हेतु कार्य कराए जाते हैं। इससे न सिर्फ ग्रामीणों की आय का स्तर बढ़ा है बल्कि रोजगार हेतु शहरों की ओर पलायन में भी कमी आई है। वास्तव में देखा जाए तो केन्द्र प्रायोजित इस योजना से ग्रामीण बेरोजगारी एवं गरीबी को दूर करने के साथ ही ग्रामीणों के आत्मविश्वास में वृद्धि हुई है। आय में वृद्धि से उनके उपभोग व्यय में वृद्धि तथा आरामदायक वस्तुओं के लिए क्रय-शक्ति बढ़ी है।

भारत के सभी राज्यों में संचालित मनरेगा मध्य प्रदेश में सफलता के सोपान पर है जिसकी सराहना भारतीय योजना आयोग ने भी की है। 14 जून, 2008 को मध्य प्रदेश का नवगठित शहडोल संभाग एक आदिवासी बहुल सम्भाग है। शहडोल जिले के जनपद पंचायत सोहागपुर की 77 ग्राम पंचायतों में से एक ग्राम पंचायत पोंगरी आज मनरेगा से विकास के मार्ग पर अग्रसर है।

शहडोल जिला मुख्यालय से 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित पोंगरी गाँव के किसानों के खेतों में लहलहाती फसलें, बारहमासी जलापूर्ति की व्यवस्था, ग्रामीण सम्पर्क हेतु निर्मित सड़कें, मार्ग में छायादार एवं फलदार वृक्षों की लम्बी कतारें मनरेगा की सफलता की कहानी कह रहे हैं। मनरेगा ने ग्राम पोंगरी के ग्रामीण परिवारों में आशा एवं उत्साह का संचार करने में मुख्य भूमिका निभाई है।

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री डिजरायली ने कहा था ‘‘आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनैतिक स्वतंत्रता अधूरी है।’’ आशा की जानी चाहिए कि मनरेगा ग्रामीण भारत के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बनकर उभरेगा।पोंगरी के पूर्व सरपंच एवं किसान मोहन सिंह कहते हैं कि पहले आसमान की ओर टकटकी लगाए देखते थे कि इन्द्र देवता कब मेहरबान होंगे, परन्तु अब ऐसा नहीं है। मनरेगा से गाँव में तालाब एवं स्टॉप डेम बन जाने से जल की समस्या नहीं रही। मेरे खेत में कपिलधारा योजना के तहत कूप निर्माण करवाया गया है जिससे कृषि उत्पादन पहले से दो गुना हो गया है। अब वर्ष में खरीफ और रबी की फसलों के साथ सब्जियां भी उगाते हैं जो पहले सम्भव नहीं था। मनरेगा से हमारी आर्थिक दशा में काफी सुधार आया है।

पोंगरी गाँव की नवनिर्वाचित सरपंच श्रीमती मुन्नी बाई गोंड़ कहती हैं कि मनरेगा से गाँव में खुशहाली आ गई है। किसानों को कपिलधारा, भूमि शिल्प, नन्दन फलोद्यान आदि उप-योजनाओं का लाभ मिल रहा है। इससे न सिर्फ खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा है बल्कि किसानों की आमदनी में भी खूब वृद्धि हो रही है। कपिलधारा से अब तक 14 हितग्राही, भूमि शिल्प से 25 हितग्राही, नन्दन फलोद्यान से 10 हितग्राहियों को अब तक लाभ मिल चुका है। रतन जोत (जेट्रोफा) के एक लाख पौधों की नर्सरी लगाई गई है जिसे आगामी समय में लाभ मिलेगा। वर्ष 2008-09 में तालाब निर्माण पूर्ण हुआ जो किसानों एवं ग्रामीणों के लिए वरदान सिद्ध हो रहा है। पोंगरी ग्राम पंचायत में सम्मिलित गाँव मैका में एक तालाब निर्माणाधीन है। यहां लगभग 150 मजदूर कार्य कर रहे हैं। शेष कार्य प्रगति पर है। ग्रामसभा की होने वाली बैठकों में प्राथमिकता के आधार पर कार्यों का चयन कर उनको पूर्ण कराया जाता है।

पोंगरी ग्राम पंचायत के सचिव हेमराज महोबिया बताते हैं कि मनरेगा से गाँव के बेरोजगारों, किसानों एवं निर्धन परिवारों का जीवन-स्तर पहले की तुलना में अच्छा हो गया है। 100 दिन के न्यूनतम रोजगार की गारण्टी, रोजगार न मिलने पर बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान, महिला कामगारों को 33 प्रतिशत रोजगार उपलब्ध कराने की अनिवार्यता, मजदूरी का भुगतान बैंकों/डाकघरों के माध्यम से होना, गाँव के आसपास ही 5 कि.मी. की दूरी पर रोजगार की उपलब्धता आदि प्रावधानों के कारण ग्रामीणों के बुनियादी ढाँचे में आमूलचूल परिवर्तन आ गया है। मनरेगा ग्रामीण निर्धन परिवारों की आवश्यकताओं को पूरा करने में अपनी मुख्य भूमिका निभा रहा है।

नंदन फलोद्यान से लाभान्वित हितग्राही मुन्नालाल, रामप्रसाद, अकाली कहते हैं कि उनके खेतों में योजना के तहत आम, अमरूद, जामुन, पपीता, सीताफल, केला, बेर आदि के पौधे रोपित किए गए हैं जो उनकी आमदनी के स्रोत बनेंगे। गाँव के ही दानी बैगा, मदन बैगा, भमनू बैगा के अनुसार बरसात होने पर गाँव में सड़क का अभाव होने से घुटनों तक कीचड़ रहता था परन्तु 2008-09 में एक कि.मी. दूरी का भिड़गा-खितौली पहुँच मार्ग बन जाने से आवागमन सुगम हो गया है। डगनिहा टोला की बस्ती में सी.सी. रोड का निर्माण हो गया है। करैम बैगा कहते हैं कि लगभग पाँच हजार की आबादी वाली पोंगरी ग्राम पंचायत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी बैगा एवं गोंड़ जनजाति की है। ऐसे में समाज की मुख्यधारा से दूर निर्धन, पिछड़े जनजाति एवं निर्धन ग्रामीण परिवारों के बेरोजगारों के लिए मनरेगा एक रामबाण की तरह है। ज्ञातव्य है कि बैगा जनजाति मध्यप्रदेश की एक विशेष पिछड़ी जनजाति की श्रेणी में शामिल है।

ग्राम पंचायत पोंगरी के ग्रामीण बेरोजगार अब रोजगार की तलाश में शहरों की ओर नहीं भागते, बल्कि कई तो शहरों से वापस गाँव में आकर मनरेगा के तहत मजदूरी करने लगे। इस तरह शहरों की ओर पलायन में कमी आई है। गाँव के आसपास ही रोजगार मिलने से वे अब अपने पारिवारिक दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। वर्ष 2009-10 में छिंदहा नाला, फरदिहा नाला एवं गाड़ाघाट में स्टॉप डेम बनने से लगभग 120 एकड़ भूमि में खेती सिंचित होती है। निःसंदेह इससे खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि एवं किसानों की आय में आशातीत वृद्धि हुई है। स्टॉप डेम एवं तालाब बन जाने से गाँव में हरियाली आ गई है और जानवरों को भी चारा-पानी पर्याप्त मात्रा में मिलने लगा है।

ग्राम पंचायत पोंगरी में बड़ी मात्रा में पथ वृक्षारोपण का कार्य किया गया है। सचिव हेमराज महोबिया के अनुसार पोंगरी एवं मैका गाँव में पथ वृक्षारोपण के द्वारा आम, नीम, आँवला, करंज, जामुन, इमली आदि का वृक्षारोपण कराया गया है। ग्राम पंचायत पोंगरी के 276 बीपीएल परिवारों में से 40 हितग्राहियों को इन्दिरा आवास योजना का लाभ दिलाया गया है। इसी तरह 2008-09 एवं 2009-10 में समग्र स्वच्छता अभियान के अन्तर्गत 228 हितग्राही लीचिंग पिट्स प्लाण्टेशन (शुष्क शौचालय) का लाभ उठा रहे है जिनमें से 80 शौचालय पूर्ण एवं 148 निर्माणाधीन है।

प्रसिद्ध मार्क्सवादी नेता लेनिन का कथन है कि मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसे मजदूरी मिल जानी चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाए तो मनरेगा के द्वारा किए गए कार्यों का भुगतान यथासंभव शीघ्र करने का प्रयास किया जाता है। मजदूरी का भुगतान समय पर हो जाने से ग्रामीणों को आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता। पोंगरी की कलावतिया बाई कहती है कि मनरेगा के द्वारा रोजगार मिलने से अब उनके परिवार का भरण-पोषण ठीक तरह से हो पा रहा है। मनरेगा से प्राप्त मजदूरी का भुगतान बैंक/डाकघर से होने के कारण भ्रष्टाचार पर काफी अंकुश लगा है। बैंक से मजदूरी भुगतान होने पर ग्रामीणों में बचत की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है।

संक्षेप में कहा जाए तो मनरेगा ने ग्रामीण परिवारों को कई तरह से लाभान्वित किया है-

1. ग्रामीण परिवारों को रोजगार की गारण्टी मिली।
2. ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि होने से उनके उपभोग व्यय में वृद्धि एवं जीवन-स्तर में सुधार आया।
3. शहरों की ओर पलायन में कमी आई।
4. जलसंरक्षण एवं सम्भरण को बढ़ावा मिला।
5. मजदूरी का भुगतान बैंकों/डाकघरों के माध्यम से होने पर बचत प्रवृत्ति बढ़ी है।
6. खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ा है।
7. महिला सशक्तिकरण एवं स्वावलम्बन में वृद्धि हुई है।
8. पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिला है, आदि।

सरपंच मुन्नी बाई कहती है कि मनरेगा ने गाँव की किस्मत बदल दी है। 100 दिन के न्यूनतम रोजगार की जगह यदि सरकार 200 दिन के रोजगार की गारण्टी का प्रावधान कर दे तो गाँवों का कायाकल्प हो जाएगा। सब आर्थिक रूप से सक्षम हो जाएं, ऐसा ही तो हम चाहते हैं।

ब्रिटिश प्रधानमन्त्री डिजरायली ने कहा था ‘‘आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनैतिक स्वतंत्रता अधूरी है।’’ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र ही 21वीं सदी की माँग है। आशा की जानी चाहिए कि मनरेगा ग्रामीण भारत के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बनकर उभरेगा।

(लेखक अर्थशास्त्र विभाग पं. शम्भूनाथ शुक्ल शास. स्व. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, शहडोल, म.प्र. में शोध छात्र हैं)
ई-मेल : mahobiaumr@gmail.com

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