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मध्य प्रदेश
बहुत जल्दी पकने वाली विपुल उत्पादक धान की किस्में
Posted on 16 Sep, 2018 12:33 PMअनुकूल देशी धान की किस्में जो कि 100 दिन अथवा उससे कम समय में पकती है। उस वातावरण में जहाँ पर इनकी कास्त की जाती हैं तथा 20 बोरे प्रति एकड़ एवं अधिक (3705 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा अधिक) उत्पादन देती है, जिनका विवरण दिया गया है। इन किस्मों से चुनाव की गई किस्मों का न्यूक्लियस बीज अनुकूलता धान अनुसंधान केन्द्र पर उपलब्ध है। जिनका विभागीय बीज उत्पादक प्रक्षेत्रों पर प्रगुणन कर पर्याप्त मात्रा
मध्य प्रदेश में बोई जाने वाली देशी विपुल उत्पादक धान की किस्में व उनकी पहचान के लक्षण
Posted on 14 Sep, 2018 04:56 PMमांडू का जल प्रबन्ध
Posted on 13 Sep, 2018 05:29 PMमध्य प्रदेश के धार जिले में विन्ध्याचल पर्वत के पठार पर मांडू का विश्व प्रसिद्ध किला स्थित है। यह किला लगभग 77.25 वर्ग किलोमीटर (48 वर्गमील) क्षेत्र में फैला है। यह किला अपने गंगा-जमुनी संस्कृति, रानी रुपमति और बाज बहादुर की प्रेम कहानी तथा अद्भुत जल प्रबन्ध के
मध्य प्रदेश की जल्दी पकने वाली स्थानीय किस्में व उनकी पहचान
Posted on 11 Sep, 2018 02:34 PMअभी तक एकत्रित कुल 5368 देशी धान किस्मों में से 423 किस्में जल्दी पकने वाली पाई गई हैं, जो अपने क्षेत्र विशेष के वातावरण में 55 से 100 दिन के अंदर पकती हैं, ये किस्में लगभग 7.88 प्रतिशत पाई गई हैं। उनमें से अधिकांश किस्में 2 से 6 बालों के रूप में प्राप्त हुई थी जिनमें कुछ भिन्नता भी संभव है, उनकी विभिन्न विशेषताओं के लिये अध्ययन किया जा रहा है। इनमें स
गंगई निरोधक धान की जातियाँ
Posted on 10 Sep, 2018 12:53 PM
गंगई निरोधक के संबंध में एकीकृत धान किस्मों (Isolating rice Varieties) ने जो प्रगति की है, उनका नवंबर 1973 में प्रकाशित अनुकूलता धान अनुसंधान नोट क्रमांक-2 में उल्लेख किया गया है।
गंगई स्थानिक मारी क्षेत्र (An endemic area for gall midge) बंगोली ग्राम में इसका कार्य सम्पन्न किया जा रहा है।
हमारी धान सम्पदा
Posted on 10 Sep, 2018 12:49 PM धान के पौधे की सबसे बड़ी एक विशेषता उसकी विविधता है, जो करोड़ों लोगों के लिये अन्न का स्रोत है। संसार में 12000 धान की किस्में उगाई जाती है। उनमें से पाँच हजार से भी अधिक किस्में मध्य प्रदेश में होती है।
आदिवासियों ने सहेजे माता नु वन
Posted on 03 Sep, 2018 02:32 PMमध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में अपढ़ समझे जाने वाले आदिवासी समाज ने अपने जंगल को सहेजकर पढ़े-लिखे समाज को एक बड़ा सन्देश दिया है। जिले के 110 गाँवों में खुद आदिवासियों ने अपने बूते आसपास के जंगलों को न सिर्फ सहेजा, बल्कि वहाँ 41 हजार नए पौधों को रोपकर घना जंगल खड़ा करने के लिये भी जतन शुरू कर दिया है।
इजराइली तरीके से बारिश का पानी तिजोरी में
Posted on 07 Aug, 2018 04:14 PMआपने शायद ही कभी सुना होगा कि बारिश के पानी को तिजोरी में रखा जाता हो, लेकिन मालवा के किसान अपने खेतों पर इसे साकार कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिये बाकायदा जमीन पर लाखों की लागत से पॉलिथीन बिछाकर बारिश से पहले ही इस पानी को इजराइली तरीके से अपनी तिजोरी में स्टोर करने की पूरी तैयारी कर रखी थी। इस बारिश का करोड़ों लीटर पानी अब इसमें संग्रहित हो चुका है, जो गर्मियों में भी फसल लहलहाएगा। मालवा के कई
भारत के परम्परागत समाज की नजर में नदी
Posted on 04 Aug, 2018 12:36 PMभारतीय समाज, नदियों के प्रति आदर भाव रखने वाला परम्परागत समाज है। वह नदी की पूजा करता है। उन्हें माता कहता है। पूरी श्रद्धा से पवित्र नदियों में सिक्के अर्पित करता है। उन्हें पूरी श्रद्धा से प्रणाम करता है। उन्हें भारतीय संस्कृति के उद्भव और विकास का आधार मानता है। नद