झाबुआ जिला

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मध्य प्रदेश के आदिवासियों को खा रही है सिलिकोसिस
Posted on 07 Aug, 2015 01:32 PM सिलिकोसिस पीड़ित संघ के 2012 के 102 गाँवों पर किये गए एक सर्वेक्षण
तिल–तिल कर मरने को मजबूर हैं सैकड़ों आदिवासी
Posted on 31 Jul, 2015 09:43 AM

मध्यप्रदेश में अलीराजपुर जिले की ऊँची–नीची पहाड़ियों से होते हुए हम पहुँचे आदिवासियों के फलिए (गाँव) में। सुबह के निकले शाम हो गई यहाँ तक पहुँचने में। यहाँ एक परिवार से हमारी मुलाकात हुई, जिसका जवान बेटा अब मौत की घड़ियाँ गिनने को मजबूर है। महज 30 साल का इडला बहादुर पिछले तीन साल से हर पल मंडराती मौत के खौफ में जी रहा है। उसके हाथ में सरकार से मिला सिलिकोसिस पीड़ित होने का कार्ड जो है। इडला के ती

Adivasi
सिलकोसिस: गुजरात का अमानवीय चेहरा
Posted on 28 Jul, 2015 12:51 PM स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जिससे हर व्यक्ति सरोकार है। स्वास्थ्य पर
pollution
कम्पनियों के हवाले बीमार स्वास्थ्य सेवा
Posted on 28 Jul, 2015 11:38 AM सस्ती दवाएँ बनने के बाद भारत को ‘गरीब देशों की दवा की दुकान’ कहा ज
Drinking water
स्वास्थ्य सेवा : कहीं जय जयकार तो कहीं हाहाकार
Posted on 28 Jul, 2015 11:23 AM

नदियों के किनारे हमारी सभ्यता और संस्कृति विकसित हुई। आदमी की मूल जरूरत थी खेती और इसके लिये वहाँ जल आसानी

clean water
भूजल के दोहन से अमृत बना जहर
Posted on 24 Jul, 2015 04:46 PM आज देश में जल गुणवत्ता के सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण गुणवत्ता का सवाल है। जगह—जगह आरओ या फिल्टर लग चुके हैं। इंडियन काउंसिल आॅफ रिसर्च का आकलन है कि आने वाले दिनों में पानी पीने योग्य नहीं रह जाएगा। ग्रेटर नोएडा के आसपास के 60 से ज्यादा गाँवों में लोग कैंसर के शिकार हैं। दरअसल अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण के कारण सुरक्षित भूजल पूरी तरह से दूषित हो गया है। आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट जैसे जहरीले तत्व पाए गए हैं। विकास संवाद की ओर से मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में 'मीडिया और स्वास्थ्य' के तीन दिवसीय राष्ट्रीय पत्रकार समागम का दूसरा दिन कई मायने में महत्त्वपूर्ण रहा। इसके दूसरे सत्र में जहाँ फ्लोराइड नॉलेज एंड एक्शन नेटवर्क और हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल की ओर से प्रकाशित पुस्तक 'अमृत बनता जहर' का लोकार्पण किया गया, वहीं दूसरी पुस्तक 'कुपोषण और हम' का लोकार्पण हुआ। दोनों पुस्तकें स्वास्थ्य के मौलिक जानकारी के लिये समसामयिक हैं।

'अमृत बनता जहर' में हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल से मीनाक्षी अरोड़ा और केसर ने प्रस्तावना में ही स्पष्ट कर दिया कि भूजल के अत्यधिक दोहन का नतीजा ही 'अमृत बनता जहर' है। फ्लोराइड का ख़ामियाज़ा देश के 19 राज्यों के 243 जिलों में लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
फ्लोरिसिस की चपेट में आदिवासी
Posted on 09 Jul, 2015 05:03 PM झाबुआ मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित 3782 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। पहाड़ी ढलानों पर बसे इस आदिवासी बहुल जिले में प्राकृतिक संसाधनों का विपुल भण्डार है। जिले के पूरब में राज्य के सीमाई जिले बड़वानी, धार व रतलाम हैं तो पश्चिमी सीमा गुजरात राज्य तथा पश्चिम-उत्तरी सीमा राजस्थान राज्य से लगती है। यह जिला मध्यम वर्षा मण्डल के तहत आता है।

जिले के उत्तरी भाग में हथिनी नदी व दक्षिणी भाग में अनास नदी बहती है। यहाँ पर सागोन, खेर, महुआ, ताड़ी व बाँस के पेड़ बहुतायत में हैं। लाइम स्टोन, डोलामाइट, केल्साइट आदि यहाँ की प्रमुख खनिज सम्पदा हैं। मेघनगर जिले का मुख्य औद्योगिक क्षेत्र है।
कहानी तीन नटखट बच्चों की
Posted on 06 Jul, 2015 04:33 PM यह कहानी झाबुआ जिले के जाने माने गाँव जशोदा खुमजी की है। इस गाँव ने पिछले तीन सालों में अपनी एक खास पहचान बना ली है। उन्होंने यह पहचान फ्लोरोसिस के खिलाफ अपने अभियान की वजह से बनाई है। यह एक छोटा सा गाँव है, यहाँ के सभी लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं और एक दूसरे के सुख-दुख में हमेशा साथ देते हैं।
विकास संवाद द्वारा नौवाँ नेशनल मीडिया कॉन्क्लेव
Posted on 14 Jun, 2015 12:38 PM तारीख : 17 से 19 जुलाई 2015
स्थान : झाबुआ,


गरीबी की स्थितियों ने यहाँ पर पलायन को विकराल रूप में पेश किया है। पलायन ने यहाँ पर सिलिकोसिस को जानलेवा बना दिया है। बच्चे बीमार हैं, कुपोषण भयानक हैं और इसके चलते बच्चे बड़ी संख्या में हर साल मरते हैं। पीने के पानी का संकट यहाँ पर फ्लोरोसिस पैदा करता है। खेती भी अब वैसी नहीं बची, इससे इलाके की पोषण सुरक्षा लगातार घटी है और उसके चलते सबसे ज्यादा जो स्थितियाँ दिखाई देती हैं वह किसी-न-किसी तरह की बीमारी के रूप में सामने आती हैं। पिछले आठ सालों से हम हर साल राष्ट्रीय मीडिया संवाद का आयोजन कर रहे हैं। इसका मकसद है जनसरोकारों के मुद्दों पर पत्रकारों के बीच एक गहन संवाद स्थापित करना है। पचमढ़ी से शुरू होकर संवाद का यह सिलसिला बांधवगढ़, चित्रकूट, महेश्वर, छतरपुर, पचमढ़ी, सुखतवा, चन्देरी तक का सफर तय कर चुका है।

इन ऐतिहासिक जगहों पर आयोजित सम्मेलनों में हमने, पत्रकारिता, कृषि, आदिवासी आदि विषयों पर बातचीत की है। इन सम्मेलनों में कई ​वरिष्ठ पत्रकार साथियों ने भागीदारी की है।

शुरुआती सालों में हमने इस संवाद को किसी एक विषय से बाँधकर नहीं रखा, लेकिन आप सभी साथियों के सुझाव पर महेश्वर से हमने इस संवाद को विषय केन्द्रित रखने की शुरुआत की। इस बार हम इस संवाद को स्वास्थ्य के विषय पर बातचीत के लिये प्रस्तावित कर रहे हैं।
जंगलों में खत्म हो गया पानी
Posted on 13 Jun, 2015 10:37 AM

प्रकृति की अनमोल देन पानी को मनुष्य ने मनमाने तरीके से दोहन किया। आज चारों तरफ से जल संकट का हाहाकार सुनाई देने लगा है। इससे हम तो जूझ ही रहे हैं, इसका खामियाजा अब जंगलों में रहने वाले बेजुबानों को भी भुगतना पड़ रहा है। भले ही इनमें इनकी कोई गलती न हो। हालात इतने बुरे हैं कि वन्यप्राणियों को अब अपने पीने के पानी की तलाश में लम्बी–लम्बी दूरियाँ तय करना पड़ रही है। इतना ही नहीं कई बार ये पानी की त

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