झाबुआ जिला

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खुले में शौच के खिलाफ ग्रामीण महिलाओं ने जीती जंग
Posted on 30 Apr, 2013 03:37 PM भगोर पंचायत की ग्राम सभा में महिलाओं ने उठाई सामूहिक आवाज़, प्रशासन ने मंज़ूर किए 386 शौचालय

ग्राम पंचायत भगोर। इसमें दो गांव भगोर व केसरिया। 2900 आबादी जिसमें 1500 पुरुष और महिलाएं 1400। नौ पंच व सरपंच भी महिला। सभी ने खुले में शौच के खिलाफ उठाई ज़ोरदार आवाज़। लगातार शासन-प्रशासन से लड़ाई लड़ी। नतीजा, प्रशासन ने पूरे गांव के लिए 386 शौचालय मंज़ूर कर दिए हैं।
खेतों पर रसायनों की बारिश
Posted on 05 Feb, 2011 01:41 PM

खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक के बेतहाशा बढ़ते उपयोग से पैदा हो रहे खतरों पर खूब सीटी बजती रही है, पर व्यवहार नही बदले। मध्यप्रदेश के झाबुआ का पेटलावद ब्लाक तो यह बता रहा है कि वहां खेत, फसल और किसान पूरी तरह से घातक रसायनों में ही डूब चुके हैं। यहां एक हेक्टेयर खेत में 600 से 800 किलोग्राम रासायनिक उर्वरक और 5 से 10 लीटर रासायनिक कीटनाशक छिड़के जा रहे है।

तथ्य और सत्य में अंतर था
Posted on 16 Jul, 2010 01:13 PM
प्रख्यात चिंतक धर्मपाल जी कहा करते थे कि देश को चलाने का औजार गांव और गांव के आस-पास का चरित्र है। उनके निर्देशन में हमने एक जिले को समझने का प्रयास किया था। दक्षिण का एक जिला है चिंगलपेट। वहां अंग्रेजों ने 18वीं शताब्दी में एक सर्वेक्षण किया था। वे हर गांव में गये थे। गांव का घर कैसा है, घर के सामने की गली कितनी चौड़ी है, गांव के लोग कैसे हैं, खेत मे सिंचाई कैसे होती है, उत्पादन कैसे होत
रुक जाओ, रेगिस्तान!
Posted on 15 Feb, 2010 09:10 AM


झाबुआ 23 किमी.
इन्दौर-अहमदाबाद मार्ग।

desert
झाबुआ की तस्वीर बदल रही है
Posted on 03 May, 2019 12:32 PM

जल पांच तत्वों में से एक तत्व, जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। जहां भी पानी हो, वहां जीवन अपने आप ही पल्लवित हो उठता है। वास्तव में यही हमारी भारत भूमि की परंपरा रही है। हमें इसलिए स्थान विशेष में जल संरक्षण हेतु तमाम पद्धतियां, प्रक्रियाएं और परिणाम स्वरूप जल-संरचनाएं मिलती हैं। आज भी ऐसे कुछ स्थान, कुछ समाज ऐसे बचे हैं, जिन्होंने जल के प्रति भारत भूमि की भावना को संजोए रखा है और

हाथिपावा पहाड़ी जो झाबुआ की तस्वीर बदल रही
अनूठा पर्यावरण प्रेमी
Posted on 29 Oct, 2018 08:11 PM

दावा है कि कभी आपने ऐसा पुलिस अफसर नहीं देखा होगा, आज तक आपने जितने भी पुलिस अफसर देखे होंगे, अपराधों पर सख्ती से अंकुश लगाने या नरम-गरम छवि की वजह से पहचाने जाते रहे हैं। आमतौर पर खाकी वर्दी और रौब झाड़ना ही पुलिस की पहचान होती है लेकिन एक आईपीएस अफसर ने इस धारणा को पूरी तरह से बदल दिया।

जंगल का रूप लेते हाथीपावा के पौधे
आदिवासियों ने सहेजे माता नु वन
Posted on 03 Sep, 2018 02:32 PM

मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में अपढ़ समझे जाने वाले आदिवासी समाज ने अपने जंगल को सहेजकर पढ़े-लिखे समाज को एक बड़ा सन्देश दिया है। जिले के 110 गाँवों में खुद आदिवासियों ने अपने बूते आसपास के जंगलों को न सिर्फ सहेजा, बल्कि वहाँ 41 हजार नए पौधों को रोपकर घना जंगल खड़ा करने के लिये भी जतन शुरू कर दिया है।

आदिवासियों के प्रयास से हरा-भरा हुआ जंगल
सूखा क्यों
Posted on 15 Jul, 2016 03:43 PM
झाबुआ, 1980 के दशक का उत्तरार्द्ध। मध्य प्रदेश के इस आदिवासी, पहाड़ी जिले की सतह चंद्रमा जैसी चट्टानी और बंजर नजर आती थी। मेरे चारों तरफ सिर्फ भूरे रंग की पहाड़ियाँ ही थीं। दूर-दूर तक पानी का कोई नामो-निशान नहीं था। किसी के पास कोई काम नहीं था। हर तरफ सिर्फ निराशा का वातावरण था। मुझे अभी तक धूल भरे सड़कों के किनारे, दुबक कर बैठे, पत्थर तोड़ते लोगों के दृश्य याद हैं।

चिलचिलाती धूप में हर साल क्षतिग्रस्त होने वाली सड़कों की मरम्मत का काम। पेड़ों के लिये ऐसे गड्ढों की खुदाई, जो कभी बचते नहीं थे। दीवारों का निर्माण जिनके ओर-छोर का कुछ पता नहीं था। यही थी सूखा राहत की असलियत। ये सब अनुत्पादक काम थे, लेकिन ऐसे संकट के समय में लोगों को जिंदा रहने के लिये यही सब करना पड़ता था।
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