अरुण कुमार त्रिपाठी
मध्य प्रदेश के आदिवासियों को खा रही है सिलिकोसिस
Posted on 07 Aug, 2015 01:32 PMसिलिकोसिस पीड़ित संघ के 2012 के 102 गाँवों पर किये गए एक सर्वेक्षणकर्नाटक की सिंचाई योजनाओं में छेद ही छेद
Posted on 25 Jun, 2015 12:03 PMपिछले बीस सालों में सरकारी कर्मचारियों और विशेषकर राजस्व विभाग के कर्मचारियों की संख्या में आई
किसे चाहिए प्लास्टिक
Posted on 23 Jun, 2015 12:09 PMव्यवहार में हमने प्लास्टिक को जीवनदायी दवाओं से लेकर खाने पीने की हजब जागीं महिलाएँ तो जागा कानून
Posted on 23 Jun, 2015 10:28 AMआदिवासियों को उनका हक दिलाने का यह अभियान महिलाओं की अगुआई में चला इसलिये इसका दोहरा लाभ हुआ। ए
जलवायु के बैरोमीटर हैं ग्लेशियर
Posted on 22 Jun, 2015 04:00 PMहिमालय के ग्लेशियरों में हो रहे यह परिवर्तन न सिर्फ जलवायु परिवर्तनउम्मीदों के जलाशय
Posted on 29 May, 2015 12:13 PMमानसून का बढ़ती अनिश्चितता के साथ ही जल संग्रह का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। इसका अहसास केन्द्र क
पुरी में प्रदूषणः ऑक्सीजन की बहस
Posted on 29 May, 2015 09:39 AMसवाल अहम है कि एनजीटी के इस आदेश से निकला सन्देश क्या दूर तलक जाएगा? क्या बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी और डीओ के बहाने छिड़ी बहस किसी अच्छे नतीजे पर पहुँचेगी? क्या हम जल जीवों के लिए ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाकर उनकी ऑक्सीजन की माँग कम कर पाएँगे? या हम होटलों और व्यावसायियों की लॉबी के दबाव में दब कर तमाम मानक बदल देंगे? क्या हरिद्वार और उड़ीसा के प्रदूषण फैलाने वाले होटलों को सबक सिखाने का यह कदम पूरे देश पर असर डालेगा? निश्चित तौर पर पर्यावरण संरक्षण विरोधी इस माहौल में एनजीटी एक नया माहौल बनाएगा और नई चेतना का संचार करेगा?
एक हिन्दी फिल्म में खलनायक एक डायलॉग बोलता है- “हम तुम्हें लिक्विड ऑक्सीजन में डाल देंगे। लिक्विड तुम्हें जीने नहीं देगा और ऑक्सीजन तुम्हें मरने नहीं देगा।” कुछ इसी तरह की रोचक बहस बीओडी यानी बायो ऑक्सीजन डिमांड और डिजाल्व्ड ऑक्सीजन के मानकों के बारे उत्तराखंड से उड़ीसा तक चल रही है। राष्ट्रीय हरित पंचाट यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की जाँच में रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद उड़ीसा के जिन 60 होटलों पर बंद होने की तलवार लटक रही है। उनकी दलील है कि 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम बीओडी का स्तर 350 मिलीग्राम प्रति लीटर तक मान्य करता है। इसलिए उड़ीसा राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड का 75 मिली ग्राम प्रति लीटर का मानक बहुत सख्त है। इसके जवाब में बोर्ड की दलील थी कि केन्द्रीय कानून राज्य बोर्ड को अपने ढँग से मानक तय करने का अधिकार देता है।इसलिए यह जानना भी जरूरी है कि बीओडी क्या है और इससे पानी की गुणवत्ता पर क्या असर पड़ता है।
भूकम्प की भाषा समझें
Posted on 01 May, 2015 12:32 PMभूकम्प की भाषा विनाश की होती है लेकिन अगर हम उसे समझ सकते हैं तो उसमें से जीवन को निकाल सकते हैं। हमारी दिक्कत यह है कि विज्ञान अभी तक भूकम्प का पूर्वानुमान लगा नहीं सका है और उसके बाद की भाषा को समझ कर कोई एहतियात बरत नहीं पा रहे हैं।हम व्यवस्था और आधुनिकता के स्तर पर महज राहत करना जानते हैं और उसके बाद यह भूल जाते हैं कि यहाँ कभी भूकम्प आया था जो आगे भी आ सकता है। वास्तव में हम प्राकृतिक आपदा के बारे में महज प्रबन्धन सम्बन्धी संस्थाएँ बना सके हैं लेकिन उसके बारे में रोकथाम और उससे जुड़ा जनमत बनाने की कोई तरकीब नहीं निकाल सके हैं।
कोकाकोला से असली लड़ाई लड़ी जानी है
Posted on 28 Apr, 2015 12:06 PMयह सही है कि भारत के पर्यावरण कार्यकर्ता और उसकी कानूनी संस्थाओं ने कोकाकोला के गैर- कानूनी कारोबार को रोकने और उसे बन्द कराने में कामयाबी हासिल की है और नई जगहों पर भी सफल हो रहे हैं। लेकिन वहीं कोकाकोला भी भारतीय कानून, उसकी संस्थाओं के आपसी अन्तर्विरोध और यहाँ की राजनीतिक स्थितियों का लाभ उठाकर अपना उल्लू सीधा करती रहती है।दूसरी तरफ हकीक़त यह भी है कि कोकाकोला के उत्पादों का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ गया है। इसलिये कोकाकोला के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई जो भी हो लेकिन उसकी लोकप्रियता और बाजार पर असर बरकरार है। उल्टे आम जनता उसके गैर कानूनी और अनैतिक कारोबार को भूलकर उसे किसी जीवनदायी पेय की तरह पीए जा रही है और उसके नैतिक विरोध का आन्दोलन लगातार ठंडा पड़ गया है।