आज देश में जल गुणवत्ता के सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण गुणवत्ता का सवाल है। जगह—जगह आरओ या फिल्टर लग चुके हैं। इंडियन काउंसिल आॅफ रिसर्च का आकलन है कि आने वाले दिनों में पानी पीने योग्य नहीं रह जाएगा। ग्रेटर नोएडा के आसपास के 60 से ज्यादा गाँवों में लोग कैंसर के शिकार हैं। दरअसल अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण के कारण सुरक्षित भूजल पूरी तरह से दूषित हो गया है। आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट जैसे जहरीले तत्व पाए गए हैं। विकास संवाद की ओर से मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में 'मीडिया और स्वास्थ्य' के तीन दिवसीय राष्ट्रीय पत्रकार समागम का दूसरा दिन कई मायने में महत्त्वपूर्ण रहा। इसके दूसरे सत्र में जहाँ फ्लोराइड नॉलेज एंड एक्शन नेटवर्क और हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल की ओर से प्रकाशित पुस्तक 'अमृत बनता जहर' का लोकार्पण किया गया, वहीं दूसरी पुस्तक 'कुपोषण और हम' का लोकार्पण हुआ। दोनों पुस्तकें स्वास्थ्य के मौलिक जानकारी के लिये समसामयिक हैं।
'अमृत बनता जहर' में हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल से मीनाक्षी अरोड़ा और केसर ने प्रस्तावना में ही स्पष्ट कर दिया कि भूजल के अत्यधिक दोहन का नतीजा ही 'अमृत बनता जहर' है। फ्लोराइड का ख़ामियाज़ा देश के 19 राज्यों के 243 जिलों में लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
इस पर चर्चा से पहले वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र नेे कहा कि जल के जहरीले होने के परिणामस्वरूप उत्पादित अन्न भी जहरीला हो रहा है। इस सत्र की अध्यक्षता बाबा मायाराम ने की।
फ्लोराइड के विभिन्न पहलूओं पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल के केसर सिंह ने कहा कि आज देश में जल के गुणवत्ता के सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण गुणवत्ता का सवाल है। जगह—जगह आरओ या फिल्टर लग चुके हैं। इंडियन काउंसिल आॅफ रिसर्च का आकलन है कि आने वाले दिनों में पानी पीने योग्य नहीं रह जाएगा। ग्रेटर नोएडा के आसपास के 60 से ज्यादा गाँवों में लोग कैंसर के शिकार हैं। दरअसल अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण के कारण सुरक्षित भूजल पूरी तरह से दूषित हो गया है। आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट जैसे जहरीले तत्व पाए गए हैं।
उन्होंने भूजल के दोहन के तौर—तरीके के सन्दर्भ को रेखांकित करते हुए कहा कि पहले जहाँ 70 फीट पर पानी मिलता था, आज वह पानी 600 फीट, 1700 फीट और 1600 फीट पर उपलब्ध हो रहा है। इसकी वजह से तरह—तरह के प्रदूषण हो रहे हैं।
फ्लोराइड के सन्दर्भों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि पानी में फ्लोराइड प्राकृतिक तथा मानव जनित दोनों कारणों से होता है। कुछ चट्टानों में भी फ्लोराइड होता है। यह पानी में घुलकर कैल्शियम को प्रभावित करता है। जिसकी वजह से विकलांगता और दन्तक्षय जैसी बीमारियाँ हो रही हैं। लोकसभा में दिये उत्तर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि 1.20 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं। मानवीय उपयोग के लिये इसकी मात्रा 0.6 मिली ग्राम/ लीटर मात्रा निर्धारित है, लेकिन इससे कई गुणा मात्रा पानी में है।
उन्होंने कहा कि जल के अविवेकपूर्ण उपयोग से ये सारी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। कैल्शियम की उपलब्धता से इसके दुष्प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने इस सन्दर्भ में चकवड़, दूध, सूखा आँवला के प्रयोग जैसे कई उपाय बताए।
उन्होंने कहा कि जल के दोहन और प्रदूषण ने सुरक्षित मानव पर एक बड़ा सवाल उत्पन्न कर दिया है। पंजाब में तो पूरा सामाजिक ताना—बाना ही नष्ट हो गया है। कई जगहों पर यूरेनियम पाए गए हैं।
इस मौके पर प्रेमविजय पाटिल ने कहा कि शासन के प्रयोग कारगर नहीं हो रहे हैं। इस सन्दर्भ में शासन का रवैया बिल्कुल ही उदासीन है।
अध्यक्षीय उद्गार व्यक्त करते हुए बाबा मायाराम ने कहा कि पूरा मामला खान—पान से जुड़ा है। खाद्य सुरक्षा का मामला भी खेती से जुड़ा है।
इसके उपरान्त नीलेश रायपुरिया ने कृषि और स्वास्थ्य पर चर्चा के क्रम में जीएम बीजों, कुपोषण का सवाल उठाते हुए कहा कि पूरा मामला स्वास्थ्य से जुड़ा है। पारम्परिक खेती को खत्म करने की साजिश की जा रही है। एग्रीकल्चर से अब एग्री से बिज़नेस की ओर लोग भुगत रहे हैं। उत्पादन की गारंटी तो दी जा रही है, लेकिन गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है। हाईब्रीड बीज, रासायनिक खाद का नतीजा पंजाब तो भुगत ही रहा है। मध्य प्रदेश में इसका अधिक प्रयोग हो रहा है। यह प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर रहा है। सवाल उठता है विश्व स्तर पर शुद्ध भोजन तथा सुरक्षिण पर्यावरण के लिये जैविक कृषि मान्य होने के बावजूद जी.एम. बीजों का सारी दुनिया में व्यापार फैलाने में मॉन्सेंटो तथा अन्य कम्पनियाँ कैसे सफल हो रही हैं? उन्होंने कहा कि खाने का तौर—तरीका बदल रहा है।
आशीष सागर ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बदलते समय में किसानों के पास अपना बीज बचा ही नहीं। स्वावलम्बी किसान अब सरकार की नीतियों पर आश्रित हो गए हैं। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों के कुपोषण की चर्चा करते हुए कहा कि सबसे ज्यादा कुपोषित लोग बुन्देलखण्ड में हैं। यहाँ सरकार जल संकट से बचाने की ठोस योजना तैयार नहीं कर पाई।
नीतियों की अनदेखी से आज बुन्देलखण्ड में पानी का संकट है, आदमी को झुलसा देने वाली गर्मी से ताल, तलैया, पोखर, कुएँ, हैण्डपम्प ही नहीं हजारों चन्देलकालीन पानी के स्रोत सूखने के साथ नदियाँ बेतवा, केन, उर्मिल, यमुना, धसान, चन्द्रावल व अन्य सहायक नदियाँ बढ़ते तापमान से विलुप्त होती जा रही हैं। जल संकट वाले क्षेत्र बुन्देलखण्ड में अप्रैल वर्ष 2003 से मार्च 2015 तक 3280 (करीब चार हजार ) किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत, अमिताभ पाण्डेय, सचिन कुमार जैन, जयंत तोमर, हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल के रमेश कुमार, स्नेहा, मदद फ़ाउंडेशन की वन्दना झा के साथ—साथ देश के विभिन्न हिस्सों से आए पत्रकारों और समाजकर्मियों ने हिस्सा लिया।
'अमृत बनता जहर' में हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल से मीनाक्षी अरोड़ा और केसर ने प्रस्तावना में ही स्पष्ट कर दिया कि भूजल के अत्यधिक दोहन का नतीजा ही 'अमृत बनता जहर' है। फ्लोराइड का ख़ामियाज़ा देश के 19 राज्यों के 243 जिलों में लोगों को भुगतना पड़ रहा है।
इस पर चर्चा से पहले वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र नेे कहा कि जल के जहरीले होने के परिणामस्वरूप उत्पादित अन्न भी जहरीला हो रहा है। इस सत्र की अध्यक्षता बाबा मायाराम ने की।
फ्लोराइड के विभिन्न पहलूओं पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल के केसर सिंह ने कहा कि आज देश में जल के गुणवत्ता के सवाल से ज्यादा महत्त्वपूर्ण गुणवत्ता का सवाल है। जगह—जगह आरओ या फिल्टर लग चुके हैं। इंडियन काउंसिल आॅफ रिसर्च का आकलन है कि आने वाले दिनों में पानी पीने योग्य नहीं रह जाएगा। ग्रेटर नोएडा के आसपास के 60 से ज्यादा गाँवों में लोग कैंसर के शिकार हैं। दरअसल अन्धाधुन्ध औद्योगीकरण के कारण सुरक्षित भूजल पूरी तरह से दूषित हो गया है। आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट जैसे जहरीले तत्व पाए गए हैं।
उन्होंने भूजल के दोहन के तौर—तरीके के सन्दर्भ को रेखांकित करते हुए कहा कि पहले जहाँ 70 फीट पर पानी मिलता था, आज वह पानी 600 फीट, 1700 फीट और 1600 फीट पर उपलब्ध हो रहा है। इसकी वजह से तरह—तरह के प्रदूषण हो रहे हैं।
फ्लोराइड के सन्दर्भों की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि पानी में फ्लोराइड प्राकृतिक तथा मानव जनित दोनों कारणों से होता है। कुछ चट्टानों में भी फ्लोराइड होता है। यह पानी में घुलकर कैल्शियम को प्रभावित करता है। जिसकी वजह से विकलांगता और दन्तक्षय जैसी बीमारियाँ हो रही हैं। लोकसभा में दिये उत्तर का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि 1.20 करोड़ लोग इससे प्रभावित हैं। मानवीय उपयोग के लिये इसकी मात्रा 0.6 मिली ग्राम/ लीटर मात्रा निर्धारित है, लेकिन इससे कई गुणा मात्रा पानी में है।
उन्होंने कहा कि जल के अविवेकपूर्ण उपयोग से ये सारी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। कैल्शियम की उपलब्धता से इसके दुष्प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने इस सन्दर्भ में चकवड़, दूध, सूखा आँवला के प्रयोग जैसे कई उपाय बताए।
उन्होंने कहा कि जल के दोहन और प्रदूषण ने सुरक्षित मानव पर एक बड़ा सवाल उत्पन्न कर दिया है। पंजाब में तो पूरा सामाजिक ताना—बाना ही नष्ट हो गया है। कई जगहों पर यूरेनियम पाए गए हैं।
इस मौके पर प्रेमविजय पाटिल ने कहा कि शासन के प्रयोग कारगर नहीं हो रहे हैं। इस सन्दर्भ में शासन का रवैया बिल्कुल ही उदासीन है।
अध्यक्षीय उद्गार व्यक्त करते हुए बाबा मायाराम ने कहा कि पूरा मामला खान—पान से जुड़ा है। खाद्य सुरक्षा का मामला भी खेती से जुड़ा है।
इसके उपरान्त नीलेश रायपुरिया ने कृषि और स्वास्थ्य पर चर्चा के क्रम में जीएम बीजों, कुपोषण का सवाल उठाते हुए कहा कि पूरा मामला स्वास्थ्य से जुड़ा है। पारम्परिक खेती को खत्म करने की साजिश की जा रही है। एग्रीकल्चर से अब एग्री से बिज़नेस की ओर लोग भुगत रहे हैं। उत्पादन की गारंटी तो दी जा रही है, लेकिन गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है। हाईब्रीड बीज, रासायनिक खाद का नतीजा पंजाब तो भुगत ही रहा है। मध्य प्रदेश में इसका अधिक प्रयोग हो रहा है। यह प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर रहा है। सवाल उठता है विश्व स्तर पर शुद्ध भोजन तथा सुरक्षिण पर्यावरण के लिये जैविक कृषि मान्य होने के बावजूद जी.एम. बीजों का सारी दुनिया में व्यापार फैलाने में मॉन्सेंटो तथा अन्य कम्पनियाँ कैसे सफल हो रही हैं? उन्होंने कहा कि खाने का तौर—तरीका बदल रहा है।
आशीष सागर ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बदलते समय में किसानों के पास अपना बीज बचा ही नहीं। स्वावलम्बी किसान अब सरकार की नीतियों पर आश्रित हो गए हैं। उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों के कुपोषण की चर्चा करते हुए कहा कि सबसे ज्यादा कुपोषित लोग बुन्देलखण्ड में हैं। यहाँ सरकार जल संकट से बचाने की ठोस योजना तैयार नहीं कर पाई।
नीतियों की अनदेखी से आज बुन्देलखण्ड में पानी का संकट है, आदमी को झुलसा देने वाली गर्मी से ताल, तलैया, पोखर, कुएँ, हैण्डपम्प ही नहीं हजारों चन्देलकालीन पानी के स्रोत सूखने के साथ नदियाँ बेतवा, केन, उर्मिल, यमुना, धसान, चन्द्रावल व अन्य सहायक नदियाँ बढ़ते तापमान से विलुप्त होती जा रही हैं। जल संकट वाले क्षेत्र बुन्देलखण्ड में अप्रैल वर्ष 2003 से मार्च 2015 तक 3280 (करीब चार हजार ) किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत, अमिताभ पाण्डेय, सचिन कुमार जैन, जयंत तोमर, हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल के रमेश कुमार, स्नेहा, मदद फ़ाउंडेशन की वन्दना झा के साथ—साथ देश के विभिन्न हिस्सों से आए पत्रकारों और समाजकर्मियों ने हिस्सा लिया।
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Post By: RuralWater