झाबुआ जिला

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आदिवासियों ने हलमा से बनाया तालाब
Posted on 21 Feb, 2016 11:03 AM

बात होते–होते किसी ने कहा कि छायन के पास पहाड़ियों से हर साल बड़ी तादाद में पानी नाले से बह

आदिवासियों का सहारा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना
Posted on 25 Mar, 2015 06:45 AM आदिवासी समुदाय की सजगता, आपसी सहयोग, पंचायत प्रतिनिधियों की निष्ठा
फ्लोराइड का जहर बच्‍चों में विकलांगता
Posted on 02 Aug, 2010 08:34 AM ग्राम बाकोड़ी में हैंडपंप से निकले पानी की किसी ने जांच नहीं की और
सुरंगी रूत आई म्हारा देस
Posted on 15 Feb, 2010 12:01 PM


जल की काया
जल की माया
जल का सकल पसारा
कहत कबीर सुनों भई साधो
जल से कौन नियारा?


यह जल का समष्टि स्वरूप है। कबीलों से लेकर कबीर तक और कबीर से लेकर कांक्रीट तक हर वक्त और हर शख्स के लिए जल के इस स्वरूप को स्वीकारना एकमात्र विकल्प रहा होगा। जल का विकल्प जल ही है, और कुछ भी नहीं।

pond
लिफ्ट से पहले
Posted on 15 Feb, 2010 08:46 AM


25 सितम्बर 1988।
ग्राम छकतला।
विकासखंड सोण्डवा।

एक प्रशासनीक शिविर में झाबुआ जिले के सोण्डवा के जनपद अध्यक्ष श्री डेढू भाई ने एक प्रस्ताव रखाः ‘पास ही के गांव गेदा में स्टापडेम पर गुजरात राज्य की तरह यहां भी उद्वहन सिंचाई योजना शुरू की जाए।’

stopdam
बूंदें, नर्मदा घाटी और विस्थापन
Posted on 14 Feb, 2010 03:00 PM


नर्मदे हर......!

मध्यप्रदेश की जीवनरेखा है नर्मदा। इसका प्रवाह यानी जीवन का प्रवाह। इसके मिजाज का बिगड़ना यानी जीवन से चैन का बिछुड़ना। नदी से समाज के सम्बन्ध केवल नहाने, सिंचाई, पानी की भरी गागर घर के चौके-चूल्हे तक लाने में ही सिमट नहीं जाते हैं। नदियों की धड़कन के साथ-साथ धड़कती है उसके आंचल में रहने वाले समाज की धड़कन। पीढ़ियां नदी के प्रवाह की साक्षी रहती हैं। और नदी भी तो बहते-बहते देखती है-........

Narmada
पुनोबा, एक विश्वविद्यालय
Posted on 11 Feb, 2010 03:52 PM


माही नदी के किनारे बसा है गांव नरसिंहपुरा। 75 झोपड़ों की इस बस्ती में अलग फूल की एक छोटी –सी झोपड़ी है, जिसमें 60 वर्षीय आदिवासी बुजुर्ग पुना-खीमा डामर रहते हैं। पुनोबा की दिनचर्या का 80 प्रतिशत समय इलाके में प्राकृतिक रूप से पनपे जामुन, सालर, कड़वा, मोजाल, हील, कड़ेन्गी, मुणी, तमच आदि किस्म के हजारों पेड़ों की सुरक्षा में बीतता है।

mahi river
आदाब, गौतम!
Posted on 04 Feb, 2010 08:35 AM


तपती दोपहरी में तीन ओर पहाड़ों से घिरे जंगल में हमारी आंखे नम हो गई हैं..... !

हम कभी पहाड़ तो कभी गौतम को देखते! बूंदों की हमसफर यात्रा का यह कथानक बूंदों से परे भी बहुत कुछ सुना रहा था। हमको लगता कि क्या हम बूंदों से भटक रहे हैं? लेकिन जब भी कभी पड़ाव मिलता तो बूंदों की महिमा हमारे सामने होती।

hill
जीवन दायिनी
Posted on 28 Jan, 2010 07:34 PM


झाबुआ जिले की पेटलावद तहसील के रूपापाड़ा की पहाड़ी................!

बूंदों को रोकने की चर्चा के साथ-साथ कभी हम नीचे तलहटी में बने तालाब को देखते तो कभी काली घाटी में हर गर्मी में सूख जाने वाले इतिहास के साक्षी हैंडपंपों के किस्से सुनते।

pahadi
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