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दुनिया
क्या आप जॉन स्नो को जानते हैं
Posted on 17 Nov, 2015 04:09 PMविश्व शौचालय दिवस, 19 नवम्बर 2015 पर विशेष
यह सच है कि जॉन स्नो इतने लोकप्रिय नहीं हैं कि उनके बारे में बगैर गूगल किये कोई बात की जाये लेकिन यह भी उतना ही सच है कि जन स्वास्थ्य और सार्वजनिक साफ-सफाई (शौचालयों समेत) को लेकर होने वाली कोई भी बात बगैर जॉन स्नो के पूरी नहीं हो सकती।
सन् 1813 में जन्मे ब्रिटिश चिकित्सक जॉन स्नो ही वह पहले व्यक्ति थे जिनके अध्ययनों ने दुनिया भर में पानी की व्यवस्था, शौचालयों की साफ-सफाई और जलजनित बीमारियों के बारे में पारम्परिक समझ को पूरी तरह बदल दिया।
कॉलरा (ऐसा डायरिया जो कुछ घंटों में जान भी ले सकता है) से उनकी पहली मुठभेड़ सन् 1831 में हुई जब वह न्यू कैसल के सर्जन विलियम हार्डकैसल के यहाँ प्रशिक्षु के रूप में काम कर रहे थे। सन् 1937 तक वह अपनी पढ़ाई खत्म कर वेस्टमिंस्टर हॉस्पिटल में नौकरी शुरू कर चुके थे। इस बीच सन् 1849 और 1854 में लन्दन पर दो बार कॉलरा का कहर बरपा जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं।
जलवायु परिवर्तन से निपटने में पनबिजली एक 'झूठा समाधान'
Posted on 16 Nov, 2015 12:47 PMसन्दर्भ : कोप 21
पनबिजली परियोजनाओं के लिये बनने वाले बड़े बाँधों से निकलने वाली मीथेन समस्या ने पिछले 15 सालों के दौरान अन्तरराष्ट्रीय खबरों में हालांकि थोड़ी-बहुत जगह जरूर बनाई है। पर इसके ठीक उलट ‘कोप’ या अन्य पर्यावरण की नई चर्चाओं में मज़बूती से पनबिजली को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये हल के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है जिससे बड़े बाँधों से मीथेन उत्सर्जन और पर्यावरणीय प्रभाव की बहस को बेमानी कर दिया गया है।
इससे अब चिन्ता का मुद्दा यह निकलता है कि पनबिजली जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये वाकई एक हल है या सिर्फ भ्रम? क्या जलवायु परिवर्तन कम करने के लिये पनबिजली परियोजनाओं की तरफ बढ़ना क्या सही है?
पर्यावरण सुधार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता
Posted on 12 Nov, 2015 11:44 AMजलवायु परिवर्तन के संकट को देखते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ को भरोसा दिलाया है कि वह वर्ष 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 33 से 35 फीसदी तक कटौती करेगा। इसके अलावा अपनी अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 40 फीसदी तक का इज़ाफा करेगा।ग़ौरतलब है इसी वर्ष 30 नवम्बर से 11 दिसम्बर तक पेरिस में होने वाले विश्व जलवायु सम्मेलन के पूर्व दुनिया के सभी देशों को कार्बन उत्सर्जन में कमी के अपने-अपने लक्ष्य प्रस्तुत करने हैं। भारत का मौजूदा लक्ष्य सन् 2020 तक 20 से 25 फीसदी कमी का था जो सन् 2010 तक 12 फीसदी पाया जा चुका है।
पेरिस के विश्व जलवायु सम्मेलन में विश्व पर्यावरण सन्धि सम्पन्न हो जाने की प्रबल सम्भावना है। भारत पहले से ही कहता रहा है कार्बन उत्सर्जन की अधिक मात्रा के चलते विकसित देशों की ज़िम्मेदारी ज्यादा है।
‘ओरण’ का मरुक्षेत्र के पारिस्थितिकी तन्त्र से गहरा ताल्लुक
Posted on 08 Nov, 2015 03:59 PM‘ओरण’ की परम्परा के सम्बन्ध में मान्यता यह है कि गाँव की भूमि का एक भूखंड अपने लोकदेव के
ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन ने बनाया बाँध
Posted on 03 Nov, 2015 11:01 AMब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रोपावर परियोजना का चालू होना खतरे का संकेत है। सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, च