दिल्ली

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कोरी नहीं शीतयुग की बात
Posted on 08 Dec, 2012 03:03 PM

हिमालय सदियों से देश व समाज की सभी प्राकृतिक उत्पादों से सेवा करता रहा है। सही मायनों में सर्वव्यापी हिमालय को दे

Ice age
रहिमन पानी राखिए...
Posted on 05 Dec, 2012 05:21 PM आज हम पानी की समस्या से जुझ रहे हैं। पूरी तरह सूखे से हम छुटकारा नहीं पा सके हैं। सूखा कहीं भी और कभी भी पड़ सकता है। सूखा या अकाल पहली बार नहीं आएगा। लेकिन उस अकाल में कुछ ऐसा होने वाला है जो पहले कभी नहीं हुआ। इस दौर में सबसे सस्ती कारों के साथ सबसे महंगी दालें मिलने वाली हैं – यही इस अकाल की सबसे भयावह तस्वीर होगी।
शहरों को पानी चाहिए, पर पानी दे सकने वाले तालाब नहीं। तब पानी ट्यूबवेल से ही मिल सकता है। पर इसके लिए बिजली,डीजल के साथ-साथ उसी शहर के नीचे पानी चाहिए। एक बात साफ है कि लगातार गिरता जल स्तर सिर्फ पैसे और सत्ता के बल पर थामा नहीं जा सकता। कुछ शहरों ने दूर बहने वाली किसी नदी से पानी उठा कर लाने के बेहद खर्चीले और अव्यावहारिक तरीके अपनाए हैं। महाभारत युद्ध के समाप्त हो जाने के बाद श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र से अर्जुन को साथ लेकर द्वारिका जा रहे थे। उनका रथ मरुप्रदेश पार कर रहा था। आज के जैसलमेर के पास त्रिकुट पर्वत पर उन्हें उत्तुंग ऋषि तपस्या करते हुए मिले। श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रणाम किया और फिर वे मांगने को कहा। उत्तुंग का अर्थ है ऊंचा। सचमुच ऋषि ऊंचे थे। उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। प्रभु से प्रार्थना की कि यदि मेरे कुछ पुण्य हैं तो भगवान वर दें कि इस क्षेत्र में कभी जल का अभाव न रहे। एक दौर था जब मरुभूमि को इस तरह के आशीर्वाद की जरूरत थी। मरुभूमि के अलावा पानी की कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन हमने पानी की अहमियत नहीं समझी। आज पानी हमें परेशान कर रहा है। आज हमारे समाज के बड़े हिस्से को इस आशीर्वाद की जरूरत पड़ती है।
water
महान वाश यात्रा
Posted on 03 Dec, 2012 10:59 AM निर्मल भारत यात्रा। यह लगभग 500 लोगों द्वारा पूरी की गई 2000 किलोमीटर की एक रोमांचक यात्रा थी। यह यात्रा. पाँच राज्यों- वर्धा (महाराष्ट्र), इंदौर (मध्य प्रदेश), कोटा (राजस्थान), ग्वालियर (मध्य प्रदेश), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) और बेतिया (बिहार) के छह बड़े कस्बों से होकर गुजरी। प्रत्येक कस्बे में यात्रा के पड़ाव के दौरान एक काफी बड़े मैदान में
निर्मल भारत यात्रा के उद्घाटन पर प्रेस को सम्बोधित करते हुए
यमुना की दिल्ली
Posted on 30 Oct, 2012 04:10 PM

पहले हमारा समाज अक्सर ऐसी नदियों के दोनों किनारे एक खास तरह का तालाब भी बनाता था। इनमें वर्षा के पानी से ज्यादा नदी की बाढ़ का पानी जमा किया जाता था। नद्या ताल यानि नदी से भरने वाला तालाब। अब नदी के किनारे ऐसे तालाब कहां बचे हैं। इनके किनारों पर हैं स्टेडियम, सचिवालय और बड़े-बड़े मंदिर। कभी यह दिल्ली यमुना के कारण बसी थी। आज यमुना का भविष्य दिल्ली के हाथ उजड़ रहा है।

सबसे पहले तो एक छोटा-सा डिस्क्लेमर! मैं वास्तुकारों की बिरादरी से नहीं हूं। मेरी पढ़ाई-लिखाई बिलकुल साधारण-सी हुई और उसमें आर्किटेक्चर दूर-दूर तक कहीं नहीं था। जिन शहरों में पला-बढ़ा और जिन शहरों में आना-जाना हुआ करता तो वहां की गलियों में, बाजारों में घूमते फिरते दुकानों के अलावा कुछ भी बोर्ड पढ़ने को मिलते। इन बोर्डों में अक्सर वकील और डॉक्टरों के नाम लिखे दिखते। हमारे बचपन में ये बोर्ड भी थोड़े छोटे ही थे। फिर समय के साथ विज्ञापनों की आंधी में ये बोर्ड उखड़े नहीं बल्कि और मजबूत बन कर ज्यादा बड़े होते चले गए।

फिर हमारे बड़े संयुक्त परिवार में एकाध भाई डॉक्टर बना, एक वकील बना और बाद में एक भाई आर्किटेक्ट भी। दो के बोर्ड लग गए लेकिन आर्किटेक्ट भाई का बोर्ड नहीं बना। बाद में उन्हीं से पता चला कि उनके प्रोफेशन में कोई एक अच्छी एसोसिएशन है जो बड़ी सख्ती से इस बात पर जोर देती है कि उसका कोई भी मेम्बर अपने नाम और काम का विज्ञापन नहीं कर सकता।
yamuna river in 1856
पोस्टर : कम पानी की फसलें उगाएं
Posted on 23 Oct, 2012 08:40 PM

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पोस्टर : कम पानी की फसलें उगाएं
पोस्टर : सतही जल संग्रहण टांका
Posted on 23 Oct, 2012 08:29 PM

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पोस्टर : सतही जल संग्रहण टांका
पोस्टर : प्रदूषित पानी
Posted on 23 Oct, 2012 08:49 AM

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पोस्टर : प्रदूषित पानी
पोस्टर : पीने के पानी के स्रोत को गंदा न करें
Posted on 23 Oct, 2012 08:36 AM

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पोस्टर : पीने के पानी के स्रोत को गंदा न करें
प्लास्टिक से हरी-भरी सड़क
Posted on 20 Sep, 2012 05:02 PM आज के समय में प्लास्टिक कचरा एक गहरी चिंता का विषय बना हुआ है। बढ़ते प्लास्टिक कचरे की वजह से पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ है। प्लास्टिक कचरे में मौजूद रासायनिक अवयव धरती की उर्वरा शक्ति को खत्म कर देता है। ऐसे में प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए त्यागराज अभियांत्रिकी महाविद्यालय मदुरै के रसायनशास्त्र के प्रोफेसर आर माधवन ने लगभग एक दशक पूर्व बेकार प्लास्टिक से डेढ़ किलोमीटर सड़क बनवाकर भविष्य में बड़े खतरे के खिलाफ लोगों को आश्वस्त किया। केके प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट नामक कंपनी ने अपने नेटवर्क के जरिये देश भर में लगभग आठ हजार किलोमीटर प्लास्टिक की सड़कें बनवायी हैं, बता रहे हैं घनश्याम श्रीवास्तव।

प्लास्टिक कचरे की समस्या से जूझते देश में सड़क निर्माण की इस तकनीक से कई राज्यों को एक नयी राह दिखी है। नगालैंड जैसे छोटे राज्य में लगभग 150 किलोमीटर लंबी सड़क इसी तकनीक से बनायी जा चुकी है। अब ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और पांडिचेरी में भी बेकार प्लास्टिक और बिटुमेन मिश्रित सड़कें जल्द ही बननी शुरू हो जायेंगी। विशेषज्ञों के अनुसार, तकनीकी भाषा में कहें तो इस तकनीक से बनी सड़कों की 'मार्शल स्टैबिलिटी वैल्यू' (सड़क की गुणवत्ता का मानक) बढ़ जाती है। हाल के वर्षों में विश्व बिरादरी के लिए प्लास्टिक कचरा गहरी चिंता का सबब बना है। बेकार का प्लास्टिक काफी समय तक नष्ट नहीं होता। इसमें मौजूद रासायनिक अवयव धरती की उर्वरा शक्ति नष्ट कर देते हैं और कई सूक्ष्म जीवों का अस्तित्व ही इसके कारण खत्म हो चुका है। बेकार प्लास्टिक से बने पॉलिथिन के पैकेट खाकर मर रही गायें और कई शहरों में जल निकास प्रणाली का संकट इसी की देन हैं। लेकिन अब बेकार प्लास्टिक का उपयोग एक उपयोगी काम में हो रहा है।
गिनती गिनिए कि वक्त कम है
Posted on 22 Apr, 2012 10:42 AM

22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर विशेष

Coral reef
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