Posted on 01 Aug, 2014 10:21 AMपर्यावरण को हो रही क्षति चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी है। यह क्षति इस सीमा तक पहुंच गई है कि हम प्रतिदिन कम से कम एक बार भूमंडलीय तापन, जलवायु परिवर्तन, हिम
Posted on 28 Jul, 2014 04:35 PMमानसून के रंग निराले हैं। इसकी कृपा हर कहीं एक जैसी नहीं होती। केरल से शुरू होकर जब यह सारे देश में पहुंचता है तो हर इलाके में अलग-अलग ढंग से लोकमानस इसका स्वागत करता है। मानसून के इसी बहुरंगी रूप को समझने के लिए लेखक ने सन् 2003 में पूरे देश में इसका पीछा किया और इस तरह देशभर में वे मानसून का पीछा करने वाले पहले पत्रकार बने। प्रस्तुत हैं उनके कुछ दिलचस्प अनुभव
Posted on 28 Jul, 2014 04:00 PMकुछ समय पहले तक दरभंगा एक समृद्ध राज्य था। वहां के राजा बड़े लोकप्रिय थे। राज्य में लोग सुख-शांति से जीवन बिताते थे। कई बड़ी नदियां राज्य से होकर बहती थीं। इसके बावजूद दरभंगा में कई बार गर्मियों में पानी की थोड़ी कमी होने लगती थी। इसे छोड़ कर वहां के लोगों को कोई विशेष कष्ट नहीं था। जो मेहनत मजदूरी करते थे, उन्हें भर-पेट भोजन मिल जाता था और राज्य में काम और व्यापार फल-फूल रहा था।
Posted on 28 Jul, 2014 03:01 PM6 दिसम्बर 2011 को दुनिया में हो रही वैश्विक गर्मी और उसके परिणामों पर चिंता करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की एक समिति के आह्वान पर लोग एकत्रित हुए। भारत सरकार की ओर से पर्यावरणमंत्री जयंती नटराजन ने हिस्सा लिया। डरबन की इस मीटिंग में भारत पर हरित-विकास और उसके सकारात्मक परिणामों पर विशेष ध्यान देने पर जोर था। सम्मेलन में एक ऐसे दिशा मार्ग को अपनाने पर जोर था, जिसमें ग्रीन-हाउस गैस उत्सर्जन को विकासश
Posted on 28 Jul, 2014 12:43 PMसूखे तालाब में खड़ी थी ग्रीष्म की वनस्पति आक कटैड़ी फैला था कूड़ा कर्कट अब सब तैर रहा है पानी पर बरसात के बाद
मेढ़क, सांप, केंकड़े और मछलियां एक घर की प्रतीक्षा में रह रहे थे धरती पर इधर-उधर ओनों-कोनों में जलमुर्गिंयां और बतखें जीवन काट रही थीं जाने किन राहत शिविर में
Posted on 28 Jul, 2014 12:27 PMतुम्हारे कितने नाम हैं ब्रह्मपुत्र तिब्बत के जिस बर्फ से ढके अंचल में तुम्हारा जन्म हुआ वहीं से निकली हैं शतद्रू और सिन्धु की धाराएं सगर तल से सोलह हजार फीट की ऊंचाई पर टोकहेन के पास संगम होता है तीनों हिम प्रवाहों का
तिब्बती में कहते हैं- कूबी सांगपो, सेमून डंगसू और मायून सू यह संगम कैलाश पर्वत श्रेणी के दक्षिण में होता है
Posted on 27 Jul, 2014 09:00 AMपावस ऋतु में मल्हार अंग के रागों का गायन-वादन अत्यन्त सुखदायी होता है। वर्षाकालीन सभी रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है। काफी थाट का यह राग औड़व-औड़व जाति का होता है, अर्थात इसके आरोह और अवरोह में 5-5 स्वरों का प्रयोग होता है। गांधार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता। समर्थ कलासाधक कभी-कभी परिवर्तन के तौर पर गांधार स्वर का प्रयोग करते हैं। भातखंडे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग