Posted on 25 Jul, 2014 04:43 PMनर्मदा से मिलने वाली सहायक हरदा की अजनाल नदी के बारे में बार-बार पूछते फोन पर इन्दौर से कृष्णकान्त बिलों से और हर बार उसांसें छोड़ते बताना पड़ता उन्हें कि अजनाल अब जीवित नदी नहीं है यहां और जो जीवित थी उसे तो तुम हरदा छोड़ते वक्त अपने साथ ले गये थेअपनी यादों की झोली में तभी
वैसे कुछ लोग हैं जो तुम्हारे वक्त की अजनाल में तैरने
Posted on 25 Jul, 2014 04:40 PMवर्षों पूर्व जुहू के समन्दर में नहाया था पहली बार तब नमकीन हथेलियों से पल्लर पल्लर सहलाते हुए पूछा था सागर ने कि- मुझमें नहाने के पहले कहां सेनहा कर आया हूं मैं
तब मैंने अपनी नर्मदा में डुबकियां लगाकर बम्बई आने काबताया था उसे जिसे सुनते ही रेत तक मेरा बदन पोंछता ले आया जुहू का सागर प्यार से बाहर
Posted on 25 Jul, 2014 04:37 PMमैंने तो मकर संक्रान्ति की शीत लहर में ठंड से कांपती नर्मदा को कुनकुनी रेत के अलाव पर बदन सेंकते देखा है घाट-घाट बांटते देखा है सदाबरत और गुड़-बिल्ली का परसाद हंस-हंसकर दिनभर
रोते भी देखा उस वक्त जब सावन की मूसलाधार झरी में गांव के गांव बहे थे गोद में उसकी
रखवाली करते तो- पिछली गरमी में ही देखा उसे जब नहाते वक्त
Posted on 23 Jul, 2014 04:46 PMवैसे तो ग्लोबल वार्मिग से प्रकृति तथा पर्यावरण को होने वाले नुकसान और परिणामों को लेकर पूरा विश्व चिन्तित है, मगर ये चिंता इस हद तक नहीं पहुंच पाई है कि लोग इसकी गम्भीरता को समझकर समाधान के लिय युद्ध स्तर पर प्रयासरत हो जाएं। इस संकट से निपटने में हमारी भूमिका और कार्ययोजना को लेकर एक बड़ी दुविधा भी हर स्तर पर मौजूद है। अमेरिका जैसे बड़े देश तीसरी दुनिया पर दोषारोपण करके अपनी जिम्मेदारियों से मुकर
Posted on 23 Jul, 2014 03:45 PMपृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन की धमक एक लंबे समय से सुनाई पड़ती रही है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण भारत को युद्ध जैसी विभीषिका का सामना भी करना पड़ सकता है, ऐसी एक गम्भीर चेतावनी पहली बार हमारे सामने आयी है और वह भी किसी साधारण अथवा सनसनी फैलानेवाले स्रोत से नहीं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन से जुड़े अन्तरराष्ट्रीय पैनल की रिपोर्ट के माध्यम से। यह हमारे लिए सिर्फ चिंता की ही बात न होकर