महिलाओं के लिए खुले में शौच तो और भी अधिक भयावह है। शौचालय न होने की वजह से उन्हें अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएं सीधे तौर पर उनकी सुरक्षा से जुड़ी हुई हैं। आंकड़ों की पोटली टटोलने पर यह ज्ञात होता है कि खुले में शौच के दौरान 30 प्रतिशत महिलाओं को विभिन्न उत्पीड़नों का शिकार होना पड़ता है। यह भारत के लिए सिर्फ शर्म की बात नहीं है बल्कि एक तरह से बहुत बड़ा कलंक भी है। भारत को निर्मल भारत बनाने के लिए तरह-तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं, इसके बावजूद भी यथास्थिति बनी हुई है।
आज भले ही भारत मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने वाले चंद देशों में शुमार होता हो, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में अभी भी 53 फीसदी लोगों के पास शौचालय जैसी जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं मौजूद नहीं हैं। यानी हर दूसरा व्यक्ति खुले में शौच करने को मजबूर है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि बदायूं जिले के कटरा सआदतगंज क्षेत्र में चचेरी बहनें खुले में शौच की मजबूरी के कारण ही इस जघन्य बलात्कार और दिल दहला देने वाले क्रूरतम हत्याकांड की शिकार हुई हैं। यदि इनके घर में शौचालय की सुविधा उपलब्ध होती तो वह बाहर शौच करने नहीं जातीं और उनके साथ गांव के दबंग इस तरह की वीभत्स घटना को अंजाम नहीं दे पाते। इसी तरह इटावा और कौशाम्बी में भी लड़कियों के साथ बलात्कार ऐसे समय में हुआ, जब वे खुले में शौच के लिए गयी थीं। इन घटनाओं ने देश में एक बार फिर शौचालयों की कमी पर सवाल खड़ा कर दिया है।
आज भले ही भारत मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने वाले चंद देशों में शुमार होता हो, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में अभी भी 53 फीसदी लोगों के पास शौचालय जैसी जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं मौजूद नहीं हैं। यानी हर दूसरा व्यक्ति खुले में शौच करने को मजबूर है। आंकड़ें बताते हैं कि 1992-93 में जहां 70 फीसदी लोगों के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी, वहीं यह घटकर 2007-08 में 51 प्रतिशत रह गयी थी, लेकिन विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अब यह बढ़कर 53 प्रतिशत हो गयी है। ग्रामीण भारत के 66 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्र के 19 प्रतिशत लोग शौचालय की सुविधा से वंचित हैं।
यदि राज्यों की बात करें तो झरखण्ड और बिहार की स्थिति कुछ ज्यादा ही बदतर है, जहां 83 प्रतिशत लोग शौच के लिए खुले स्थानों का प्रयोग करते हैं। छत्तीसगढ़ में 82.1 प्रतिशत, राजस्थान में 73.9 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 72.6 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर में 58 प्रतिशत, उत्तराखण्ड में 45 प्रतिशत, हरियाणा में 42 प्रतिशत, हिमाचल में 32 प्रतिशत लोगों को खुले में शौच करना पड़ता है।
कुछ राज्यों की स्थिति को बेहतर माना जा सकता है, जिसमें मिजोरम पहले स्थान पर, लक्ष्यद्वीप दूसरे, केरल तीसरे तथा दिल्ली चौथे स्थान पर है, जहां क्रमश: 98.8, 98.2, 96.7, 94.3 प्रतिशत लोगों के पास शौचालय की सुविधा मौजूद है। इन राज्यों के आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि गरीब तबके के राज्यों में अधिकांश लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। जाहिर सी बात है कि जब गरीबों के पास सिर ढंकने के लिए आशियाना तक नहीं है, शौचालय तो दूर की बात है।
खुले में शौच का मतलब बीमारियों को निमंत्रण देना है। खुले में शौच से डायरिया, हैजा जैसी घातक संक्रमण जनित रोगों के फैलने का खतरा रहता है।खुले में शौच का मतलब बीमारियों को निमंत्रण देना है। खुले में शौच से डायरिया, हैजा जैसी घातक संक्रमण जनित रोगों के फैलने का खतरा रहता है। आंकड़ें बताते हैं कि पांच साल से कम उम्र के तकरीबन चार से पांच लाख बच्चे प्रतिवर्ष इन्हीं संक्रामक बीमारियों के चलते काल कवलित हो जाते हैं।
महिलाओं के लिए खुले में शौच तो और भी अधिक भयावह है। शौचालय न होने की वजह से उन्हें अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएं सीधे तौर पर उनकी सुरक्षा से जुड़ी हुई हैं। आंकड़ों की पोटली टटोलने पर यह ज्ञात होता है कि खुले में शौच के दौरान 30 प्रतिशत महिलाओं को विभिन्न उत्पीड़नों का शिकार होना पड़ता है। यह भारत के लिए सिर्फ शर्म की बात नहीं है बल्कि एक तरह से बहुत बड़ा कलंक भी है ।
भारत को निर्मल भारत बनाने के लिए तरह-तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं, इसके बावजूद भी यथास्थिति बनी हुई है। कहीं ऐसा तो नहीं सिर्फ कागजी तौर पर निर्मल भारत की कवायद चल रही है?
विगत वर्ष तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भारत में खुले में शौच को राष्ट्रीय शर्म बताते हुए 2015 तक आखिरी व्यक्ति तक शौचालय की सुविधा पहुंचाने की बात कही थी और साथ में यह बताया था कि भारत की स्वच्छता अभियान पर सरकार सालाना 1400 करोड़ रुपये खर्च करती है। इसके बावजूद भी खुले में शौच जैसी कुप्रथा का न मिटना कई सवालों को खड़ा करता है। कहीं सरकार इसके नाम पर रुपयों का वारा-न्यारा तो नहीं कर रही है?
देश को निर्मल बनाने के लिए पंचायत स्तर पर भी अभियान चलाये जा रहें है, लेकिन सम्पूर्ण स्वच्छता अभी दूर की कौड़ी लगती है। अगर हम सरकारी आंकड़ों का ही विश्वास करें तो अभी तक देश के कुल 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से मात्र 28 हजार ग्राम पंचायत ही निर्मल ग्राम पंचायत बन पाये हैं।
अगर हमें इस लक्ष्य को हासिल करना है, तो तेजी से कार्यबद्ध होकर ईमानदारी पूर्वक कार्य करना होगा तभी हम निर्मल भारत के सपने को साकार कर पाएंगे। बेशक हाल के दिनों में देश में इस मसले पर जागरूकता फैलाने की कोशिशें बढ़ी हैं, लेकिन इससे पहले भी सरकार की प्राथमिकता में यह मुद्दा लगातार बना रहा है।
पिछले 20 वर्षो में इस पर 1250 अरब रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। बावजूद इसके, हालात आज भी ऐसे नहीं हो सके हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत शर्मिंदगी से बच सके।पिछले 20 वर्षो में इस पर 1250 अरब रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। बावजूद इसके, हालात आज भी ऐसे नहीं हो सके हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत शर्मिंदगी से बच सके। पहले तो दुनिया हमें एक गरीब देश के रूप में देखती थी। इस वजह से गरीबी, भुखमरी और कुपोषण की इंतेहा दर्शाने वाली स्थितियों को भी खास आश्चर्य की बात नहीं माना जाता था। पिछले दो दशकों के विकास के बाद अब भारत संपन्न और शक्तिशाली देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता है और वैश्विक समस्याओं को सुलझाने की प्रक्रिया में बराबर की हिस्सेदारी करता है। स्वाभाविक है कि जिन मोर्चों पर उसकी नाकामी को पहले सहानुभूति के साथ लिया जाता था, उन्हीं नाकामियों को पचाना अब किसी के लिए भी मुश्किल हो गया है।
पिछले करीब 20 वर्षों में दुनिया के स्तर पर खुले में शौच जाने वाले लोगों की संख्या में 21 फीसदी की उल्लेखनीय कमी आई है। 1990 में यह संख्या 130 करोड़ थी जो 2012 में घटकर 100 करोड़ पर आ गई।
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो एशियाई देशों की उपलब्धि भी कम नहीं दिखती। 1990 में यहां की 65 फीसदी आबादी खुले में शौच के लिए जाती थीं। 2012 तक यह 38 फीसदी हो गईं। लेकिन, भारत के संदर्भ में 60 करोड़ की संख्या अब भी नीति-निर्माताओं को मुंह चिढ़ा रही है।
भारत के गांवों की बात करें तो देश के कुछ राज्यों जैसे यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश में ऐसे गांव भी हैं, जहां लोग शादी के लिए लड़की देने से कतराते हैं, क्योंकि वहां महिलाओं को खुले में शौच जाना पड़ता है।
भारत के जिन प्रदेशों में गरीबी ज्यादा है, वहां लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। हालांकि पूर्वोत्तर के राज्य इस मामले में भारत के कई अन्य राज्यों से बेहतर हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में करीब 36 करोड़ लोगों के पास ही साफ शौचालय की सुविधा है।
भारत को निर्मल बनाने के लिए देश के प्रत्येक व्यक्ति को योगदान देना होगा। सरकारी, गैरसरकारी एवं देश के जागरूक नागरिकों को आगे आकर स्वच्छता के प्रति जन-जागरूकता फैलानी होगी ताकि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का निर्मल भारत का सपना साकार हो सके।
याद हो कि आम चुनावों से पहले वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देवालय से पहले शौचालय की बात कही थी। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि वे भारत को खुले में शौच की समस्या से निजात दिलाने का प्रयत्न करेंगे और महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस दिशा में जल्द से जल्द कदम उठायेंगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
आज भले ही भारत मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने वाले चंद देशों में शुमार होता हो, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में अभी भी 53 फीसदी लोगों के पास शौचालय जैसी जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं मौजूद नहीं हैं। यानी हर दूसरा व्यक्ति खुले में शौच करने को मजबूर है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि बदायूं जिले के कटरा सआदतगंज क्षेत्र में चचेरी बहनें खुले में शौच की मजबूरी के कारण ही इस जघन्य बलात्कार और दिल दहला देने वाले क्रूरतम हत्याकांड की शिकार हुई हैं। यदि इनके घर में शौचालय की सुविधा उपलब्ध होती तो वह बाहर शौच करने नहीं जातीं और उनके साथ गांव के दबंग इस तरह की वीभत्स घटना को अंजाम नहीं दे पाते। इसी तरह इटावा और कौशाम्बी में भी लड़कियों के साथ बलात्कार ऐसे समय में हुआ, जब वे खुले में शौच के लिए गयी थीं। इन घटनाओं ने देश में एक बार फिर शौचालयों की कमी पर सवाल खड़ा कर दिया है।
आज भले ही भारत मंगल ग्रह पर उपग्रह भेजने वाले चंद देशों में शुमार होता हो, लेकिन सच्चाई यह है कि भारत में अभी भी 53 फीसदी लोगों के पास शौचालय जैसी जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं मौजूद नहीं हैं। यानी हर दूसरा व्यक्ति खुले में शौच करने को मजबूर है। आंकड़ें बताते हैं कि 1992-93 में जहां 70 फीसदी लोगों के पास शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं थी, वहीं यह घटकर 2007-08 में 51 प्रतिशत रह गयी थी, लेकिन विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अब यह बढ़कर 53 प्रतिशत हो गयी है। ग्रामीण भारत के 66 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्र के 19 प्रतिशत लोग शौचालय की सुविधा से वंचित हैं।
यदि राज्यों की बात करें तो झरखण्ड और बिहार की स्थिति कुछ ज्यादा ही बदतर है, जहां 83 प्रतिशत लोग शौच के लिए खुले स्थानों का प्रयोग करते हैं। छत्तीसगढ़ में 82.1 प्रतिशत, राजस्थान में 73.9 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 72.6 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर में 58 प्रतिशत, उत्तराखण्ड में 45 प्रतिशत, हरियाणा में 42 प्रतिशत, हिमाचल में 32 प्रतिशत लोगों को खुले में शौच करना पड़ता है।
कुछ राज्यों की स्थिति को बेहतर माना जा सकता है, जिसमें मिजोरम पहले स्थान पर, लक्ष्यद्वीप दूसरे, केरल तीसरे तथा दिल्ली चौथे स्थान पर है, जहां क्रमश: 98.8, 98.2, 96.7, 94.3 प्रतिशत लोगों के पास शौचालय की सुविधा मौजूद है। इन राज्यों के आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि गरीब तबके के राज्यों में अधिकांश लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। जाहिर सी बात है कि जब गरीबों के पास सिर ढंकने के लिए आशियाना तक नहीं है, शौचालय तो दूर की बात है।
खुले में शौच का मतलब बीमारियों को निमंत्रण देना है। खुले में शौच से डायरिया, हैजा जैसी घातक संक्रमण जनित रोगों के फैलने का खतरा रहता है।खुले में शौच का मतलब बीमारियों को निमंत्रण देना है। खुले में शौच से डायरिया, हैजा जैसी घातक संक्रमण जनित रोगों के फैलने का खतरा रहता है। आंकड़ें बताते हैं कि पांच साल से कम उम्र के तकरीबन चार से पांच लाख बच्चे प्रतिवर्ष इन्हीं संक्रामक बीमारियों के चलते काल कवलित हो जाते हैं।
महिलाओं के लिए खुले में शौच तो और भी अधिक भयावह है। शौचालय न होने की वजह से उन्हें अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये समस्याएं सीधे तौर पर उनकी सुरक्षा से जुड़ी हुई हैं। आंकड़ों की पोटली टटोलने पर यह ज्ञात होता है कि खुले में शौच के दौरान 30 प्रतिशत महिलाओं को विभिन्न उत्पीड़नों का शिकार होना पड़ता है। यह भारत के लिए सिर्फ शर्म की बात नहीं है बल्कि एक तरह से बहुत बड़ा कलंक भी है ।
भारत को निर्मल भारत बनाने के लिए तरह-तरह के अभियान चलाये जा रहे हैं, इसके बावजूद भी यथास्थिति बनी हुई है। कहीं ऐसा तो नहीं सिर्फ कागजी तौर पर निर्मल भारत की कवायद चल रही है?
विगत वर्ष तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भारत में खुले में शौच को राष्ट्रीय शर्म बताते हुए 2015 तक आखिरी व्यक्ति तक शौचालय की सुविधा पहुंचाने की बात कही थी और साथ में यह बताया था कि भारत की स्वच्छता अभियान पर सरकार सालाना 1400 करोड़ रुपये खर्च करती है। इसके बावजूद भी खुले में शौच जैसी कुप्रथा का न मिटना कई सवालों को खड़ा करता है। कहीं सरकार इसके नाम पर रुपयों का वारा-न्यारा तो नहीं कर रही है?
देश को निर्मल बनाने के लिए पंचायत स्तर पर भी अभियान चलाये जा रहें है, लेकिन सम्पूर्ण स्वच्छता अभी दूर की कौड़ी लगती है। अगर हम सरकारी आंकड़ों का ही विश्वास करें तो अभी तक देश के कुल 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में से मात्र 28 हजार ग्राम पंचायत ही निर्मल ग्राम पंचायत बन पाये हैं।
अगर हमें इस लक्ष्य को हासिल करना है, तो तेजी से कार्यबद्ध होकर ईमानदारी पूर्वक कार्य करना होगा तभी हम निर्मल भारत के सपने को साकार कर पाएंगे। बेशक हाल के दिनों में देश में इस मसले पर जागरूकता फैलाने की कोशिशें बढ़ी हैं, लेकिन इससे पहले भी सरकार की प्राथमिकता में यह मुद्दा लगातार बना रहा है।
पिछले 20 वर्षो में इस पर 1250 अरब रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। बावजूद इसके, हालात आज भी ऐसे नहीं हो सके हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत शर्मिंदगी से बच सके।पिछले 20 वर्षो में इस पर 1250 अरब रुपये से ज्यादा खर्च किए जा चुके हैं। बावजूद इसके, हालात आज भी ऐसे नहीं हो सके हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत शर्मिंदगी से बच सके। पहले तो दुनिया हमें एक गरीब देश के रूप में देखती थी। इस वजह से गरीबी, भुखमरी और कुपोषण की इंतेहा दर्शाने वाली स्थितियों को भी खास आश्चर्य की बात नहीं माना जाता था। पिछले दो दशकों के विकास के बाद अब भारत संपन्न और शक्तिशाली देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होता है और वैश्विक समस्याओं को सुलझाने की प्रक्रिया में बराबर की हिस्सेदारी करता है। स्वाभाविक है कि जिन मोर्चों पर उसकी नाकामी को पहले सहानुभूति के साथ लिया जाता था, उन्हीं नाकामियों को पचाना अब किसी के लिए भी मुश्किल हो गया है।
पिछले करीब 20 वर्षों में दुनिया के स्तर पर खुले में शौच जाने वाले लोगों की संख्या में 21 फीसदी की उल्लेखनीय कमी आई है। 1990 में यह संख्या 130 करोड़ थी जो 2012 में घटकर 100 करोड़ पर आ गई।
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो एशियाई देशों की उपलब्धि भी कम नहीं दिखती। 1990 में यहां की 65 फीसदी आबादी खुले में शौच के लिए जाती थीं। 2012 तक यह 38 फीसदी हो गईं। लेकिन, भारत के संदर्भ में 60 करोड़ की संख्या अब भी नीति-निर्माताओं को मुंह चिढ़ा रही है।
भारत के गांवों की बात करें तो देश के कुछ राज्यों जैसे यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश में ऐसे गांव भी हैं, जहां लोग शादी के लिए लड़की देने से कतराते हैं, क्योंकि वहां महिलाओं को खुले में शौच जाना पड़ता है।
भारत के जिन प्रदेशों में गरीबी ज्यादा है, वहां लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। हालांकि पूर्वोत्तर के राज्य इस मामले में भारत के कई अन्य राज्यों से बेहतर हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में करीब 36 करोड़ लोगों के पास ही साफ शौचालय की सुविधा है।
भारत को निर्मल बनाने के लिए देश के प्रत्येक व्यक्ति को योगदान देना होगा। सरकारी, गैरसरकारी एवं देश के जागरूक नागरिकों को आगे आकर स्वच्छता के प्रति जन-जागरूकता फैलानी होगी ताकि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का निर्मल भारत का सपना साकार हो सके।
याद हो कि आम चुनावों से पहले वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देवालय से पहले शौचालय की बात कही थी। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि वे भारत को खुले में शौच की समस्या से निजात दिलाने का प्रयत्न करेंगे और महिलाओं की सुरक्षा के लिए इस दिशा में जल्द से जल्द कदम उठायेंगे।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
Path Alias
/articles/mahailaa-saurakasaa-aura-nairamala-bhaarata
Post By: pankajbagwan