Posted on 28 Dec, 2011 11:59 AM पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्रत्येक जीव का जीवन जल पर ही निर्भर होता है। अतः इसकी उपलब्धता नितान्त आवश्यक है। पानी को हम प्रकृति का मुफ्त या निशुल्क उपहार समझते हैं, जब वस्तुस्थिति यह है कि पानी प्रकृति का मुफ्त नहीं वरन् बहुमूल्य उपहार है। अतः यदि हमने जल का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग एवं संरक्षण नहीं किया तो हमारे अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। प्रकृति ने हमें सभी वस्तुएं पर्याप्त मात्रा
Posted on 28 Dec, 2011 11:05 AMसतही जल प्रबन्धन से लेकर अभियांत्रिकी अभिकल्पन तक में जल विभाजक के गणितीय निदर्शनों का वृहत इतिहास है। क्षेत्रीय पैमाने पर निदर्शनों का प्रयोग मृदा संरक्षण पद्धतियों की योजना एवं अभिकल्पन, सिंचाई जल प्रबन्धन, नम जमीन पुनरोद्धार, सरिता पुनरोद्धार एवं जल स्तर प्रबन्धन इत्यादि के लिए किया जा रहा है। वृहत्त पैमाने पर निदर्शनों का प्रयोग बाढ़ बचाव परियोजनाओं, उम्रदराज बांधों का पुनर्वास, बाढ़ प्रबन्धन,
Posted on 28 Dec, 2011 10:13 AMवतर्मान समय में शुद्ध जल की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। जल में बढ़ते प्रदूषण से शुद्ध जल के लिये विभिन्न शोधक पद्धतियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। जल के शुद्धिकरण हेतु विकसित पद्धतियों में रिवर्स ऑसमॉसिस प्रमुख हैं जो जल के लाभकारी प्रयोग बढ़ाते हैं। जल संरक्षण का एक उपाय रिवर्स ऑसमॉसिस है, रिवर्स ऑसमॉसिस उपकरण, तकनीक या बेहतर डिजाइन अथवा प्रक्रिया है जो जल के नुकसान, अपव्यय या प्रयोग क
Posted on 26 Dec, 2011 04:54 PM सृष्टि की संरचना में जल का अपना अलग ही वैशिष्टय है। यह पंचमहाभूतों में एक महत्वपूर्ण घटक है। प्रत्येक जीव की सभी शारीरिक क्रियाएं जलाधारित होने के कारण जल को जीवन की दी गई है। जल के उभयचारी रूप हैं- रोगकारक एवं रोगशामक। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिवेदन के अनुसार लगभग 80 प्रतिशत रोगों का कारण भी जल है। इसी प्रकार आयुर्वेदानुसार जल कई रोगों का शामक है। बढ़ती हुई जनसंख्या, शहरीकरण तथा औद्योगि
Posted on 26 Dec, 2011 04:37 PMजिस प्रकार पृथ्वी पांच भौतिक तत्वों से मिलकर बनी है- जल, जमीन, वायु, अग्नि और आकाश उसी तरह पृथ्वी में रहने वाले मानव के लिए तीन चीजें आवश्यक है जल, जंगल एवं जमीन। जल के बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इसके लिए हमें कुएँ, बावड़ी, तालाब एवं नदियों से निरंतर बहने वाली जल राशि तथा पर्यावरण के संतुलन के लिए वनों के संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। धरती की सुरक्षा मृदा की कटाई रोककर, सूखा,
Posted on 26 Dec, 2011 04:26 PMजल आदिकाल से मानव जीवन का अभिन्न अंग रहा हैं। अभिन्न अंग होने के बावजूद भी जल को वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार रहा है। जीवन के वहन में जल को पिछली सदी के आखिरी चातुरांश तक पीछे की सीटों में स्थान दिया जाता रहा है। लेकिन इसके बाद से जल को महत्व का स्थान दिया जाने लगा है और नये मिल्लेनियम की प्रथम सदी में तो जल को बहुत ही महत्व दिया जाने लगा है, अब तो जल आगे की सीटों में सम्मान के साथ बैठ रहा ह
Posted on 26 Dec, 2011 12:11 PMआज विश्व के सामने प्रदूषण का खतरा अत्यंत गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है। यद्यपि बहुत पुराने समय से (जब से मनुष्य ने आग का उपयोग शुरू किया) प्रदूषण अस्तित्व में था, किन्तु 19वीं सदी की औद्योगिक क्रांति के कारण पूरे विश्व में यह बहुत तेजी से बढ़ा है, हालांकि औद्योगिक क्रांति द्वारा विश्व में तकनीकी प्रगति बहुत तेजी से ही है, किंतु साथ ही साथ मनुष्य द्वारा प्रकृति का दोहन भी बहुत तेजी से किया
Posted on 26 Dec, 2011 10:48 AM भारतवर्ष में जल का उपयोग राज्यों के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आता है। यह सम्भव है, कि किसी राज्य में पूर्णतः प्रवाहित होने वाली नदी के पर्यावरणीय, एवं सामाजिक प्रभाव उदाहरणतः जल संभरण, जल ग्रसनता इत्यादि दूसरे राज्य पर पड़ें। इसके अतिरिक्त किसी राज्य में होने वाली भू-जल निकासी का प्रभाव निकटवर्ती राज्य पर पड़ सकता है। किसी राज्य में प्रवाहित होने वाली नदी पर बनने वाले बाँध के जल प्लावन क्षेत्
Posted on 24 Dec, 2011 04:50 PMकिसी भी देश अथवा क्षेत्र के विकास में जल संसाधन के विकास का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। जल संसाधन के समुचित प्रबंधन एवं उपयोग से बाढ़ नियंत्रण, जलविद्युत उत्पादन, पेयजल, कल-कारखानों, ताप व आण्विक ऊर्जा उत्पादन हेतु जलापूर्ति, सिंचाई, आदि में मदद मिलती है। अंततः मानव समाज के आर्थिक व सामाजिक विकास में एक मजबूत कड़ी के रूप में सहायक साबित होती है। जल स्रोतों के विकास व प्रबंधन हेतु विभिन्न द्रव चालित
Posted on 24 Dec, 2011 04:15 PMभारत के सिंचित कृषि क्षेत्र में पानी का बेहतर उपयोग न होना एक चिन्ता का विषय है। अन्य क्षेत्रों में पानी की बराबर बढ़ती माँग के कारण सन् 2025 तक सिंचाई क्षेत्र में पानी की वर्तमान हिस्सेदारी 84% से घटकर 74% तक होने का अनुमान है। इसलिए सिंचाई जल उपयोग की दक्षता के वर्तमान स्तर में सुधार लाना सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा नमी की माप और उसका सिंचाई के निर्धारण म