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परमाणु जोखिम: अब दिल्ली भी दूर नहीं
Posted on 12 Dec, 2011 09:27 AM

घरों एवं गन्ने से बचा हुआ बायोमास 8416.47 हजार टन के करीब बैठता है जिससे कि 1019 मेगावाट विद्य

आबोहवा में घुलता जहर
Posted on 06 Dec, 2011 03:48 PM

हवा से राहत, पानी में आफत

डॉल्फिन के अस्तित्व पर मंडराता खतरा
Posted on 29 Nov, 2011 04:29 PM

डॉल्फिनों की संख्या में जिस तरह लगातार कमी आ रही है उससे लगता है कि यह कुछ ही सालों की मेहमान ह

पहचानिए गोबर की उपयोगिता
Posted on 25 Nov, 2011 08:08 AM

रासायनिक खाद से उपजे विकार अब तेजी से सामने आने लगे है. दक्षिणी राज्यों में सैंकड़ों किसानों के खुदकुशी करने के पीछे रासायनिक दवाओं की खलनायकी उजागर हो चुकी है. इस खेती से उपजा अनाज जहर हो रहा है. रासायनिक खाद डालने से एक दो साल तो खूब अच्छी फसल मिलती है फिर जमीन बंजर होती जाती है. बेशकीमती मिट्टी की ऊपरी परत (टाप सोईल) का एक इंच तैयार होने में 500 साल लगते हैं.

गोबर से बनी कंपोस्ट
मत-अभिमत: बयान नहीं, संजीदा कोशिश से ही होगा पानी आबाद
Posted on 23 Nov, 2011 11:50 AM

संदर्भ: आर्गनाइजर में छपी दिल्ली मुख्यमंत्री को चेतावनी- पानी दंगे करा सकता है।

water privatization
गर्माते जल स्रोतों की खोज खबर
Posted on 22 Nov, 2011 09:09 AM

अगर स्वयं मानवीय प्रयास न हों तो झीलों की मृत्यु यानी लुप्त होना तय हो जाता है। इस दिशा में वर्ष 2004 में अहमदाबाद की कांकरिया झील में हुआ हादसा उल्लेखनीय है जहां बड़ी संख्या में मछलियां और अन्य जीव मौत की गोद में जा समाए थे। कांकरिया झील में डूबती मत्स्य विविधता ने भारत के मत्स्य विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों और सरकार तक को झकझोर दिया था। दुनिया भर का पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है।

नासा की ताजा रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2060 तक धरती का औसत तापमान चार डिग्री बढ़ जाएगा, जिससे एक तरफ प्राकृतिक जलस्रोत गर्माने लगेंगे, वहीं लोगों का विस्थापन भी बढ़ेगा। पर्यावरण में आ रहे बदलावों से जूझने के लिए हर तरफ प्रयास हो रहे हैं। पिछले दिनों अमरीकी वैज्ञानिकों द्वारा पहली बार चौंकाती रिपोर्ट प्रस्तुत की है कि लगातार बढ़ता ताप धरती की अपेक्षा उसके जल स्रोतों को तेजी से गर्म कर रहा है, जो धरती के ताप में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण है। इस दिशा में नासा के वैज्ञानिकों ने विश्व स्तर पर विभिन्न देशों की 104 विशाल झीलों तथा अन्य जल स्रोतों का उपग्रहीय अध्ययन किया है। रिपोर्ट बताती है कि पर्यावरणीय असंतुलन और बढ़ती सौर ऊर्जा के कारण इन जल स्रोतों का ताप धरातल से गर्माहट संजोकर समूचे स्रोत को उबाल रहा है। इसका प्रभाव आसपास के तापमान पर भी पड़ा है। प्रभाव मैदानी क्षेत्र के वातावरण पर भी है जो ताप में घट बढ़ कर मौसम में उलटफेर कर रहा है। भारत के जल स्रोत भी इसकी चपेट में हैं। रिपोर्ट चौंकाते तथ्य प्रस्तुत करती है कि 1985 से यह असर दिख रहा है। तब यह ताप बढ़ोतरी 1.1 डिग्री सेल्सियस आंकी गई थी जो अब ढाई गुना बढ़ गई है।

बाघ के लिए त्रासदी बना इंसान
Posted on 21 Nov, 2011 02:57 PM केंद्र सरकार बाघों के संरक्षण के लिए दो दशक पूर्व से ‘प्रोजेक्ट टाइगर‘ चला रही है। किंतु प्रोजेक्ट टाइगर यूं सफल नहीक हा जा सकता है क्योंकि राजस्थान का सारिस्का नेशनल पार्क बाघों से खाली हो गया है। पन्ना टाइगर रिजर्व एवं मध्य प्रदेश के रणथम्भौर नेशनल पार्क के बाघों की दशा दयनीय हो चली है। उत्तर प्रदेश के दुधवा नेशनल पार्क में बाघों की संख्या आंकड़ेबाजी की भेट चढ़ी हुई है। इसके बाद भी देश के वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री जयराम रमेश ने विगत माह घोषणा की थी कि देश में 1411 से बढ़कर बाघों की संख्या 1700 से ऊपर हो गई है।

इसमें पिछली गणना में सुंदर वन को शामिल नहीं किया गया था जबकि इसबार सुंदर बन के बाघ शामिल हैं। फिर बाघों की संख्या कैसे बढ़ गई यह स्वयं में विचारणीय प्रश्न है। आंकड़े भले ही देश में बाघों की संख्या बढ़ा रहे हों किंतु हकीकत एकदम से बिपरीत है। भारत में बाघों की दुनिया सिमटती ही जा रही है। इसका प्रमुख कारण है कि पिछले कुछेक सालों में मानव और बाघों के बीच शुरू हुआ संघर्ष। बढती आवादी के साथ प्राकृतिक संपदा एवं जंगलों का दोहन और अनियोजित विकास वनराज को
बाघ
जैविक खेती समय की जरूरत
Posted on 18 Nov, 2011 08:58 AM

राजस्थान के शेखावाटी इलाके के किसान कुछ साल पहले पानी की समस्या से परेशान थे। खेती में खर्च इतना ज्यादा बढ़ गया था कि फसल उपजाने में उनकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती चली गई, लेकिन कृषि के क्षेत्र में यहां एक ऐसी क्रांति आई, जिससे यह इलाका आज भारत के दूसरे इलाकों से कहीं पीछे नहीं है। शेखावाटी में आए इस बदलाव के पीछे मोरारका फाउंडेशन की वर्षों की मेहनत है। फाउंडेशन के इस सपने को पूरा करने का भाग

अनिवार्य है जल संकट का समाधान
Posted on 18 Nov, 2011 08:51 AM

मानव द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला ताजा जल जो भूमिगत जल, झीलों, नदियों,और वायुमंडल में उपलब्ध

समान श्रम के लिए असमान वेतन अन्याय
Posted on 16 Nov, 2011 08:25 AM

इस तरह वृद्धि का एक ऐसा सकारात्मक चक्र शुरू हो जाएगा जो आम खुशहाली को बढ़ाएगा। मौजूदा अर्थव्यवस्थाओं के संकट का बड़ा कारण यह है कि मुनाफे का सबसे बड़ा हिस्सा उद्योगपति और उसके मैनेजरों के पास के पास चला जाता है और श्रम करनेवालों को उसका नगण्य हिस्सा मिलता है। इससे अर्थव्यवस्था का संतुलन खत्म हो जाता है। गाड़ी के एक तरफ ज्यादा बोझ पड़ता है, तो वह पलटने के कगार पर आ जाती है।

समान योग्यता वाले दो व्यक्तियों में एक को रोजगार मिला हुआ है और दूसरा बेरोजगार है- यह एक ऐसा अन्याय है जिसे बेकारी कहते हैं। क्या इस अन्याय के लिए वह आदमी खुद जिम्मेदार है जो पूरी कोशिश करने के बाद भी अपने लिए रोजगार नहीं खोज पाता है? एक जमाने में, जब अर्थव्यवस्था पर किसी का नियंत्रण नहीं था, रोजगार की कोई कमी नहीं थी। कृषि-आधारित समाज व्यवस्था में कोई बेकार नहीं होता। अगर किसी की प्रवृत्ति काम करने की नहीं है या कोई कला, लेखन या पहलवानी में रुचि लेता है, तो उसका खर्च पूरा परिवार उठाता है। जब से औद्योगिक व्यवस्था आई है, रोजगार का मामला प्राकृतिक नहीं रहा। यानी कितना रोजगार होगा, किस किस्म का रोजगार होगा, यह अर्थव्यवस्था तय करती है। चूंकि इस व्यवस्था में रोजगार का मामला जीवन-मरण का हो जाता है, इसलिए राज्य को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह अर्थव्यवस्था का स्वरूप जनहित के आधार पर तय करे। जहां पांच-सात प्रतिशत से ज्यादा बेकारी है, वहां मानना होगा कि अर्थव्यवस्था और राज्य, दोनों फेल कर गए हैं।

ऐसा ही एक अन्याय है, समान श्रम, परंतु असमान वेतन। आजकल मैं जहां काम करता हूं, वहां तीन तरह के ड्राइवर हैं। एक तरह के ड्राइवर वे हैं जिनकी नौकरी पक्की है। इनका वेतन लगभग पंद्रह हजार रुपए महीना है। इन्हें मकान भत्ता, चिकित्सा भत्ता तथा अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं।

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