भारत के सिंचित कृषि क्षेत्र में पानी का बेहतर उपयोग न होना एक चिन्ता का विषय है। अन्य क्षेत्रों में पानी की बराबर बढ़ती माँग के कारण सन् 2025 तक सिंचाई क्षेत्र में पानी की वर्तमान हिस्सेदारी 84% से घटकर 74% तक होने का अनुमान है। इसलिए सिंचाई जल उपयोग की दक्षता के वर्तमान स्तर में सुधार लाना सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा नमी की माप और उसका सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा सतह के नीचे मृदा नमी की जानकारी के अभाव में फसलों की ज्यादा या कम सिंचाई करने की परम्परा है। सिंचाई जल का सही समय प उचित मात्रा में उपयोग न केवल फसलों द्वारा पानी उपयोग की उच्च दक्षता को सुनिश्चित करता है बल्कि पोषक तत्वों के निक्षालन (Leaching) का भी कम करता है। परिणाम स्वरूप मिट्टी में बेहतर वायु संचरण से फसलों की पैदावार एवं कृषि उत्पादकता में महत्वपूर्ण सुधार होता है।
किसी समय पर फसल को कितना मृदा जल उपलब्ध है तथा कब और कितनी सिंचाई करनी है, की जानकारी के लिए मृदा नमी का आंकलन बहुत उपयोगी है। सिंचाई में मृदा नमी आंकड़ों का उपयोग जल और ऊर्जा के संरक्षण, सतही और भूमिगत जल के प्रदूषण को कम करने तथा फसलों की इष्टतम पैदावार बनाए रखने में भी सहायक है। मृदा नमी को मापने की बहुत सारी विधियाँ व उपकरण उपलब्ध हैं जिनका चयन उपकरणों की लागत एवं उपयोगिता पर निर्भर करता है। इस प्रपत्र का मुख्य उद्देश्य मृदा नमी के मापन को विभिन्न कर सिंचाई के क्षेत्र में पानी की उपयोग दक्षता को सुधारने पर बल दिया गया है।
भारत के सिंचित कृषि क्षेत्र में पानी का बेहतर उपयोग न होना एक चिन्ता का विषय है। अन्य क्षेत्रों में पानी की बराबर बढ़ती मांग के कारण सन 2025 तक सिंचाई क्षेत्र में पानी की वर्तमान हिस्सेदारी 84 प्रतिशत से घटकर 74 प्रतिशत तक होने का अनुमान है। इसलिये सिंचाई जल उपयोग की दक्षता के वर्तमान स्तर में सुधार लाना जल प्रबंधन क्षेत्र का आज एक महत्त्वपूर्ण शोध का विषय है। इस परिप्रेक्ष्य में मृदा नमी की माप और उसका सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा सतह के नीचे मृदा नमी की जानकारी के अभाव में फसलों की ज्यादा या कम सिंचाई करने की परम्परा है। सिंचाई जल का सही समय पर उचित मात्रा में उपयोग न केवल फसलों द्वारा पानी उपयोग की उच्च दक्षता को सुनिश्चित करता है बल्कि पोषक तत्वों के निक्षालन (leaching) को भी कम करता है। परिणामस्वरूप मिट्टी में बेहतर वायु संचरण से फसलों की पैदावार एवं कृषि उत्पादकता में महत्त्वपूर्ण सुधार होता है किस समय पर फसल को कितना मृदा जल उपलब्ध है तथा कब और कितनी सिंचाई करनी है, की जानकारी के लिये मृदा नमी का आकलन बहुत उपयोगी है। सिंचाई में मृदा नमी आँकड़ों का उपयोग जल और ऊर्जा के संरक्षण, सतही और भूमिगत जल के प्रदूषण को कम करने तथा फसलों की इष्टतम पैदावार बनाये रखने में भी सहायक हैं। मृदा नमी को मापने की अनेक विधियाँ व उपकरण उपलब्ध हैं जिनका चयन उपकरणों की लागत एवं उपयोगिता पर निर्भर करता है। इस प्रपत्र का मुख्य उद्देश्य मृदा नमी के मापन की विभिन्न उपलब्ध तकनीकों एवं उपकरणों की जानकारी देना तथा मृदा नमी के आँकड़ों को बेहतर उपयोग कर सिंचाई के क्षेत्र में पानी की उपयोग दक्षता को सुधारने पर बल दिया गया है।
One of the major concerns in irrigated agriculture in India is the poor water use efficiency. The share of irrigation water in the total demand is bound to decrease from the present 84% to 74% due to more pressing and competing demands from other sectors by 2025 AD. As such, the research on improving the present level of water use efficiency in irrigation assumes a great significance in water resource management. In this perspective soil moisture measurement and its use in irrigation scheduling can play a vital role in increasing the water use efficiency. A tendency to over or under irrigate the cropped fields results due to absence of information about the soil moisture status down the soil profile. Application of precise quantities of irrigation water at the right time not only ensure a high efficiency of water use by the crops, but also reduces nutrient losses through leaching results in better aeration of the soil, and significantly improves crop yields and farm productivity. Soil moisture readings are useful in determining how much water is available for the crop, when to start irrigation and how much water to apply. Soil moisture monitoring, therefore, helps conserve water and energy, minimize pollution of surface and ground water, and produce optimum crop yields. A variety of methods are available for measuring soil moisture. The selection of method and equipment will depend on ease of use, cost of equipment, applicability to drier conditions, and desire to monitor continuous changes in soil moisture. The present paper aims at disseminating the knowledge of the available techniques and instrumentation for soil moisture measurement and its use in efficient scheduling of irrigation water applications that gives the highest return for the least amount of water.
भारत में कुल निष्कासित जल का 84 प्रतिशत भाग सिंचाई उपयोग में लाया जाता है। लेकिन सिंचित कृषि क्षेत्र में जल का बेहतर उपयोग न होना प्रमुख चिंता का कारण है, जैसे नहर सिंचाई की सिंचन दक्षता मात्र 38 से 40 प्रतिशत तथा भूजल सिंचाई की सिंचन दक्षता 60 प्रतिशत आंकी जाती है इसलिये पानी उपयोग की वर्तमान दक्षता के स्तर को सुधारना सिंचाई जल प्रबंधन के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सही मात्रा में सही समय पर सिंचाई करने से फसलों द्वारा जल उपयोग की उच्च दक्षता सुनिश्चित करता है साथ ही पोषक तत्वों का निक्षालन कम होने तथा मृदा में वायु संचरण बेहतर होने के परिणामस्वरूप फसल की पैदावार एवं कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होता है।
मृदा सतह के नीचे मृदा नमी की जानकारी के अभाव में फसल की ज्यादा या कम सिंचाई करने की परम्परा है इसलिये हमें सिंचाई जल प्रबंधन को तकनीकी रूप से समर्थ बनाना होगा। हमें मृदा नमी का आकलन कर सही मात्रा में सही समय पर सिंचाई अनुसूची तैयार करने की जानकारी विकसित करनी होगी। मृदा नमी को मापने की अनेक विधियाँ एवं उपकरण उपलब्ध है जिनका चयन उपकरणों की लागत एवं उपयोगिता पर निर्भर करता है। इस शोध पत्र का मुख्य लक्ष्य मृदा नमी के आंकलन की विभिन्न उपलब्ध तकनीकों एवं उपकरणों की जानकारी देना तथा मृदा नमी के आकलन का बेहतर उपयोग कर सिंचाई के क्षेत्र में पानी की उपयोग दक्षता को सुधारने पर बल दिया गया है।
मृदा नमी के स्तर को मृदा जल की मात्रा तथा मृदा जल चूषण (soil suction) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
मृदा जल को सामान्य रूप से आयतन के प्रतिशत में भार के प्रतिशत में या प्रति फुट मिट्टी में जल की इंचों में मात्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है। मृदा जल धारण की क्षमता मृदा की बनावट एवं संरचना पर निर्भर करती है। (चित्र 1)।
मृदा जल चूषण यह इंगित करता है कि पौधों द्वारा मृदा जल उपयोग के लिये कितना कठिन परिश्रम करना होगा। मिट्टी जितनी ही सूखी होगी मृदा जल चूषण उतना ही ज्यादा होगा और उतना ही कठिन होगा पौधों को मृदा से पानी खींचना। मृदा जल चूषण को मृदा जल मात्रा में परिवर्तित करने के लिये मृदाजल एवं मृदा तनाव की जानकारी चाहिए जैसा कि चित्र 2 में दर्शाया गया है।
मृदा जल को दो अलग-अलग तरीकों से मापा जाता है।
1. मात्रात्मक विधियाँ जो मृदा जल की मात्रा दर्शाती हैं व
2. गुणात्मक विधियाँ जो मृदा जल चूषण दर्शाती है।
मृदा नमी मापने की मात्रात्मक विधियों में भारात्मक (gravimetric) विधि, न्यूट्रॉन प्रकीर्णन (neutron scattering) विधि तथा द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि (dielectric constant) मुख्य रूप से हैं। इन विधियों से प्रति फुट मृदा में नमी की मात्रा निकाली जा सकती है। मृदा के जड़ क्षेत्र में एक फुट के अंतराल पर मृदा नमी की बहु माप ली जा सकती है तथा प्रत्येक अलग-अलग फुट गहराई पर ली गई माप का जोड़ करने से जड़ क्षेत्र में कुल मृदा नमी ज्ञात कर सकते है। दो अलग-अलग समयों पर मापी गयी मृदा नमी की तुलना एवं विश्लेषण कर उस समय अन्तराल में मृदा नमी में आयी कमी या पुनर्भरण को इंचों में ज्ञात किया जा सकता है।
भारात्मक विधि: यह विधि कुल मृदा जल मात्रा निकालने की सीधी एवं सरल तकनीक है इस विधि में मृदा नमूनों को भट्टी में 105डिग्री C पर लगभग 24 घण्टे के लिये सुखाया जाता है तथा मृदा के प्रारम्भिक वजन से सूखे वजन को घटाकर मृदा जल का वजन ज्ञात किया जाता है। मृदा जल के वनज को सूखी मृदा के वजन से भाग देने पर मृदा जल को भार के प्रतिशत के रूप में ज्ञात कर सकते हैं। और अगर मृदा नमूनों के ज्ञात आयतन का प्रयोग किया जाए तो मृदा जल को आयतन के प्रतिशत रूप में निकाला जा सकता है। इस विधि को न्यूट्रॉन प्रोब एवं द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि को अप्रत्यक्ष रूप में अंशांकन के लिये भी प्रयोग किया जाता है। यह विधि अत्यन्त सरल, व्यावहारिक एवं सस्ती तथा सटीक है। लेकिन हम विधि में समय और श्रम ज्यादा लगता है तथा चट्टानी मृदा में यह तकनीक कठिनाई पैदा करती है। इस विधि के लिये लैब भट्ठी, मृदा नमूनों को एकत्रित करने के उपकरण, भार तुला इत्यादि आवश्यक है।
न्यूट्रॉन प्रकीर्णन विधि: मृदा के अंदर पाये जाने वाले यौगिकों में जल सबसे ज्यादा हाइड्रोजन युक्त यौगिक है। इसी आधार पर न्यूट्रॉन प्रोब द्वारा मृदा के ज्ञात आयतन में हाइड्रोजन की मात्रा को मापकर मृदा जल आयतन का प्रतिशत रूप में परिकलन किया जाता है। न्यूट्रॉन प्रोब यूनिट जिसमें तेज एवं उच्च ऊर्जा युक्त न्यूट्रॉन होते हैं, को मृदा में पहले से स्थापित पाइप में नीचे पहुँचाया जाता है। प्रोब यूनिट एक केबल द्वारा भूमि सतह पर रखे एक नियंत्रण यूनिट से जुड़ा होता है। प्रोब को जड़ क्षेत्र की गहराई तक जहाँ-जहाँ प्रेक्षण/रीडिंग लेना होता है पहुँचाया जाता है। स्रोत से तेज गति से उत्सर्जित न्यूट्रॉन स्थापित पाइप से होकर मिट्टी के चारों तरफ मृदा जल के हाइड्रोजन अणु से टकराकर अपनी ऊर्जा में कमी करते हैं। हाइड्रोजन अणु से टकराने के परिणामस्वरूप कम उर्जा से युक्त धीमी गति के न्यूट्रॉन समूह वापस पहुँच कर नियन्त्रण यूनिट द्वारा मापे जाते हैं। न्यूट्रॉन की ऊर्जा, मृदा समूह के आकार एवं घनत्व मृदा के प्रकार मृदा जल की मात्रा तथा स्थापित टयूब के पदार्थ पर निर्भर करता है। विशिष्ट समयान्तराल में मापे गये धीमी गति के न्यूट्रॉनों की संख्या कुल आयतनिक मृदा जल के साथ रेखीय संबंध में होती है। न्यूट्रॉनों की संख्या एवं आयतनिक मृदा जल मात्रा के संबंध का अंशांकन दूसरे पदार्थ की बनी ट्यूब का प्रयोग करने पर आवश्यक होता है।
न्यूट्रॉन प्रोब द्वारा मृदा जल मात्रा की जाँच अलग-अलग स्थानों एवं गहराइयों पर तेज गति से दोहरायी जा सकती है। अंशांकित न्यूट्रॉन प्रोब द्वारा कुल मृदा जल मात्रा की माप अत्यंत सही विधि है। इस विधि का हानिकारक पक्ष यह है कि इसमें उपयोग होने वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ के कारण एक अनुज्ञापित व अनुभवी प्रचालक की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त यह उपकरण महँगा भी होता है तथा इसके सघन अंशाकंन की आवश्यकता होती है। साथ ही यह उपकरण सतह से आठ इंच की गहराई तक का माप सही नहीं कर पाता क्योंकि ऊपरी सतह से न्यूट्रॉन निकल जाते हैं।
द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि : द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि द्वारा कुचालक मृदा में प्रेषित उच्च तीव्रता की विद्युत चुम्बकीय तरंगों की प्रेषण क्षमता को मापा जाता है। प्रेक्षण क्षमता के आधार पर मृदा नमी की मात्रा का आकलन किया जाता है। इस विधि के उपयोग का आधार यह है कि 30 MHz और 1 GHz के बीच सूखी मृदा का द्वि-विद्युत स्थिरांक 2 से 5 के बीच तथा पानी का 80 होता है।
टाइम डोमेन रिफ्लेक्ट्रोमीटर (टी.डी.आर.) सबसे साधारण एवं उपयोगी यंत्र है जिससे मृदा जल माध्यम का द्वि-विद्युत स्थिरांक माप कर मृदा जल के आयतनिक मात्रा का अनुमान लगाया जाता है। टीडीआर में एक इलेक्ट्रॉनिक मीटर होता है। जो दो समानान्तर छड़ों से एक तार द्वारा जुड़ा होता है। समानांतर छड़ें मिट्टी में माप लेने के लिये गहराई तक धँसायी जाती है। यह उपकरण बहुत उच्च तीव्रता की अनुप्रस्थ विद्युत चुम्बकीय तरंगों को केवल एवं प्रोब द्वारा मृदा में पहुँचाता है। विद्युत चुम्बकीय तंरगों का सिग्नल प्रोब की एक छड़ से दूसरी छड़ तक होते हुए वापस मीटर में पहुँचता है जो भेजे गये पल्स सिग्नल तथा वापस परावर्तित सिग्नल के पल्स के समय को मापता है। छड़ों एवं केबल की लम्बाई के आधार पर संचरण वेग का परिकलन किया जाता है। संचरण वेग जितना तीव्र होगा, द्वि-विद्युत स्थिरांक उतना ही कम होगा और उसी अनुसार मृदा नमी कम होगी।
टी.डी.आर. के लाभदायक पक्ष हैं कि यह उपकरण सापेक्ष रूप में मृदा जल की सही मात्रा (±1 से 20%) दर्शाता है तथा सीधे आयतनिक मृदा नमी की माप को दर्शाता है और आँकड़ों को लगातार संग्रह कर सकता है। इसमें अंशांकन की आवश्यकता नहीं होती तथा मृदा में नमक की उपस्थिति इस यंत्र को प्रभावित नहीं करती है। टी.डी.आर. यूनिट महँगा (3 से 5 लाख रुपये) होता है तथा प्रोब की छड़ों का मृदा से सम्पर्क ठीक न होने की दशा में रीडिंग प्रभावित होती है। छड़े कठोर तथा चट्टानी मिट्टी में क्षतिग्रस्त हो जाती है।
गुणात्मक विधियाँ: गुणात्मक विधियों में विद्युत प्रतिरोधक ब्लॉकों एवं टेन्सियोमीटरों का प्रयोग कर मृदा जल चूषण का अनुमान लगाया जाता है। इन विधियों में सीधे तौर पर मृदा जल की मात्रा न मापकर पौधों के लिये जल उपलब्धता की कठिनता को मापा जाता है इस प्रकार गुणात्मक विधि हमें सिंचाई कितनी करनी है न बताकर यह बताती है कि सिंचाई कब प्रारम्भ करनी है चूँकि सामान्य रूप से पोरस ब्लॉक और टेन्सियोमीटर एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाये जा सकते हैं, इसलिये केवल एक ही बिन्दु पर मापने के लिये उपयोगी होते हैं जड़ क्षेत्र में प्रतिनिधित्व नमी के माप के लिये कई गहराइयों पर माप आवश्यक है। मृदा जल मापन साइटों की संख्या क्षेत्र के आकार एवं मिट्टी की परिवर्तनशीलता पर निर्भर करती हैं।
पोरस ब्लॉक के प्रयोग का सिद्धांत यह है कि पोरस ब्लॉक की विद्युत चालकता उसमें उपलब्ध नमी के अनुपाती होती है। पोरस ब्लॉक जिप्सम, ग्लास जिप्सम, मैट्रिक्स, चीनी मिट्टी, नायलॉन या फाइबर ग्लास का बना होता है। दो इलेक्ट्रोड को ब्लॉक के अंदर स्थापित किया जाता है और दो तारों के जरिये इन इलेक्ट्रोडो को जोड़कर तारों को सतह तक पहुँचाया जाता है। ब्लॉक को मिट्टी में वांछित गहराई पर माप के लिये लगाया जाता है मृदा जल ब्लॉक के अंदर एवं बाहर मृदा नमी से संतुलित होकर गतिशील रूप से व्यवस्थित हो जाता है। जब ब्लॉक में मृदा नमी का संचरण मिट्टी में चारो तरफ से संतुलित हो जाता है, तब मीटर द्वारा ब्लॉक में लगे इलेक्ट्रोड के विद्युत प्रतिरोध को मापते हैं। विद्युत प्रतिरोध की माप मृदा जल तनाव को दर्शाती है। उपकरण निर्माता आमतौर पर मीटर रीडिंग को मृदा जल तनाव में परिवर्तित करने का अंशांकन उपलब्ध कराते हैं।
यह विधि बार-बार शीघ्रता से दोहरायी जा सकती है और अपेक्षाकृत सस्ती है। विश्वसनीय आकलन के लिये यह आवश्यक है। कि ब्लॉक मृदा में अच्छी तरह स्थापित किया गया हो जिसने मिट्टी से अच्छी तरह प्राकृतिक सम्पर्क बना लिया हो। जिप्सम ब्लॉक क्षारीय भूमि में ज्यादातर नष्ट हो जाते हैं, जिन्हें बदलने की जरूरत होती है। मिट्टी में घुलनशील लवण मिट्टी की चालकता एवं प्रतिरोधों को प्रभावित करते हैं जिसके कारण मीटर रीडिंग प्रभावित होती है। जिप्सम ब्लॉक बारीक बनावट वाली मिट्टी के लिये बेहतर होता है क्योंकि सामान्यतया बारीक संरचना वाली मिट्टी 100 सेन्टीबार तक संवेदनशील नहीं होती है। रेतीली मिट्टी में उपलब्ध मृदा जलस्तर ब्लॉक की मापन सीमा के बाहर होता है। इस उपकरण की कीमत निर्माता एवं ब्लॉक के प्रकार पर निर्भर करती है। जो लगभग 5000 रुपये है।
टेन्सियोमीटर पानी से भरा एक प्लास्टिक टयूब होता है जिसके एक सिरे पर पोरस कप एवं दूसरे सिरे पर एक वैक्यूम गेज लगा होता है। इस उपकरण को मिट्टी में वांछित गहराई पर पोरस कप से मिट्टी का अच्छा संपर्क बनाते हुए लगाया जाता है। टेन्सियोमीटर में पानी पोरस कप के माध्यम से मृदा जल के साथ संतुलित अवस्था में आ जाता है। जब मिट्टी सूखती है तो पोरस कप से पानी मिट्टी में संचरित होता है और फलस्वरूप टयूब में वैक्यूम एवं तनाव उत्पन्न होता है, वहीं जब मिट्टी गीली हो जाती है, तो मिट्टी से पानी पोरस कप से टयूब में चला जाता है जो तनाव एवं वैक्यूम को कम कर देता है। इसी तनाव को वैक्यूम गेज एक सूचकांक के रूप में मापता है। मिट्टी के नमूने एकत्रित कर विभिन्न तनावों पर मृदा नमी बनाये रखने का वक्र विकसित किया जाता है। जिसकी मदद से मृदा जल की मात्रा का परिकलन होता है।
ज्यादातर टेन्सियोमीटर में 0-100 सेन्टीबार स्केल होता है जहाँ 0 सेटीबार रीडिंग पूर्ण रूप से संतृप्त अवस्था को दर्शाती है पूरी मृदा प्रोफाइल की मृदा नमी की बेहतर जानकारी के लिये पौधों के जड़ क्षेत्र में पोरस कप स्थापित किया जाता है क्योंकि पौधों की 70% जड़ मृदा के जड़ क्षेत्र के 50% ऊपरी सतह पर होती है। प्रत्येक बिन्दु पर कम से कम दो टेन्सियोमीटर जड़ क्षेत्र के 1/3 एवं 2/3 भाग गहराई पर लगाया जाना चाहिए। ऊपरी सतह पर लगाया गया टेन्सियोमीटर हमें सिंचाई कब प्रारम्भ करनी है, की बेहतर जानकारी देता है वहीं गहरे टेन्सियोमीटर कितनी सिंचाई करनी है, की जानकारी देता है। गहरे टेन्सियोमीटर की रीडिंग ऊपरी सतह से ज्यादा होने पर हमें सिंचाई ज्यादा करनी चाहिए। अगर गहरे टेन्सियोमीटर की रीडिंग अवस्था की है तो इस अवस्था में पोषक तत्वों एवं जल के निक्षालन की सम्भावना बढ़ जाती है।
सिंचाई जल की मात्रा विभिन्न फसलों की जड़ों की गहराई पर निर्भर करती है कि कितनी गहराई तक सिंचाई जल पहुँचाया जाए। विभिन्न प्रकार कि मृदाओं में 50% मृदा जल की उपलब्धता पर प्रत्येक एक मीटर गहरी मृदा की सिंचाई के लिये आवश्यक जल की मात्रा को सारणी 1 में दर्शाया गया है।
सिंचाई अनुसूची के विकास में मृदा नमी के आकलन की अहम भूमिका होती है। मृदा नमी की माप स्वतः ही सिंचाई प्रारम्भ करने की सूचना देती है लेकिन यह तब और महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब मृदा जल के आँकड़े अन्य सिंचाई अनुसूची विकास की विधियों जैसे चेकबुक संगणक निदर्श के साथ प्रयोग किये जाते हैं। मृदा नमी के आँकड़ो की मदद से प्रारम्भिक मृदा जल संतुलन निकाला जाता है तथा पूरे सिंचाई काल में पुनः मृदा जल संतुलन को परिमार्जित किया जात है जहाँ सिंचाई अनुसूची के विकास में मृदा नमी का प्रयोग होता है वहाँ हमें कम से कम दो दिन में एक बार मृदा नमी की रीडिंग अवश्य लेनी चाहिए। जहाँ मृदा नमी की रीडिंग का प्रयोग अन्य अनुसूची की विधियों में किया जाता है। वहाँ पर हमें सप्ताह में एक या दो बार अवश्य रीडिंग लेनी चाहिए। सिंचाई के मार्गदर्शन के लिये टेन्सियोमीटर एवं प्रतिरोधक ब्लॉक के आँकड़ों का प्रयोग सारणी 2 में दर्शाया गया है। मृदा नमी, वर्षा, सिंचाई मात्रा और फसल की स्थिति के आँकड़े भविष्य में सिंचाई जल प्रबन्धन की योजना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
सार रूप में हम यह कह सकते हैं कि मृदा नमी को मापने की अनेक विधियाँ एवं उपकरण उपलब्ध हैं। उपकरणों का चयन इनकी लागत व उपयोगिता पर निर्भर करता है कि क्या हम लगातार मृदा नमी के आँकड़े एकत्रित करना चाहते हैं। तथा किस तरह की मृदा की क्षेत्र स्थिति है? जैसे ज्यादा सूखी, ज्यादा नम या कठोर इत्यादि? मृदा नमी के आँकड़े, फसल के लिये उपलब्ध जल की जानकारी तथा सिंचाई कब और कितनी करनी है, के निर्णय में लाभदायक होते हैं। मिट्टी की नमी की जाँच की निगरानी रखने से हम जल संरक्षण कर ऊर्जा की बचत कर सकते हैं तथा कुशल सिंचाई अनुसूची का प्रयोग कर बहुत थोड़े जल से ही अच्छी उपज पा सकते हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह विधि अपनाकर अमूल्य प्राकृतिक जल की बचत करते हुए पैदावार में क्रान्तिकारी बढ़त हासिल कर देश को प्रगति के मार्ग पर ले जा सकते हैं।
1. भारत सरकार, दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002-2007, vol. I से vol. II, योजना आयोग, नई दिल्ली (2002).
2. प्रीचार्ड टेरी एल, मृदा नमी मापीय तकनीकी, कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय डेविस. पी.डी.एफ. फाइल (ucce=ucdavis.edu/files/file library/40/975.pdf.)
3. जाकहेन सेन्क एच एवं राबर्ट बी जैकसन, रूटिंग डेप्थ्स, लेटरल रूट स्प्रेड्स एण्ड बिलो ग्राउन्ड/एबोब ग्राउन्ड एलोमिट्रीज ऑफ प्लान्ट्स इन वाटर लिमिटेड इकोसिस्टम, जर्नल ऑफ इकोलॅाजी, 90 (2002) 480-494
4. समजस्ट्रला ए जी एवं हरीशन डी एस, टेन्सियोमीटर फॉर सॉयल मॉयस्चर मेजरमेन्ट एण्ड इरिगेशन सिड्यूलिंग डॉक्यूमेन्ट नं. CIR487, एग्रीकल्चरल एण्ड बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेन्ट, फ्लोरिडा कोआपरेटिव एक्सटेशन सर्विस, इन्सटीटयूट ऑफ फूड एण्ड एग्रीकल्चरल साइंसेज, यूनीवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा (1998).
5. वेरनर एच, इरिगेशन वाटर मैनेजमेंटः मेजरिंग सॉयल मॉयस्चर, पब्लिकेशन नं. FS876 कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड बायोलॉजिकल साइंसेज, साउथ डकोटा स्टेट यूनीवर्सिटी, ब्रूकिंग्स (2002).
जयवीर त्यागी, एस एल श्रीवास्तव एवं राजदेव सिंह, (Jaivir Tyagi, SL Srivastava & RD Singh)
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, (National Institute of Hydrology, Roorkee 247 667 (Uttarakhand))
भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012
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किसी समय पर फसल को कितना मृदा जल उपलब्ध है तथा कब और कितनी सिंचाई करनी है, की जानकारी के लिए मृदा नमी का आंकलन बहुत उपयोगी है। सिंचाई में मृदा नमी आंकड़ों का उपयोग जल और ऊर्जा के संरक्षण, सतही और भूमिगत जल के प्रदूषण को कम करने तथा फसलों की इष्टतम पैदावार बनाए रखने में भी सहायक है। मृदा नमी को मापने की बहुत सारी विधियाँ व उपकरण उपलब्ध हैं जिनका चयन उपकरणों की लागत एवं उपयोगिता पर निर्भर करता है। इस प्रपत्र का मुख्य उद्देश्य मृदा नमी के मापन को विभिन्न कर सिंचाई के क्षेत्र में पानी की उपयोग दक्षता को सुधारने पर बल दिया गया है।
सिंचाई जल उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिये मृदा नमी आकलन की तकनीकें (Techniques of soil moisture measurement for enhancing irrigation Water use efficiency)
सारांश
भारत के सिंचित कृषि क्षेत्र में पानी का बेहतर उपयोग न होना एक चिन्ता का विषय है। अन्य क्षेत्रों में पानी की बराबर बढ़ती मांग के कारण सन 2025 तक सिंचाई क्षेत्र में पानी की वर्तमान हिस्सेदारी 84 प्रतिशत से घटकर 74 प्रतिशत तक होने का अनुमान है। इसलिये सिंचाई जल उपयोग की दक्षता के वर्तमान स्तर में सुधार लाना जल प्रबंधन क्षेत्र का आज एक महत्त्वपूर्ण शोध का विषय है। इस परिप्रेक्ष्य में मृदा नमी की माप और उसका सिंचाई के निर्धारण में उपयोग एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। मृदा सतह के नीचे मृदा नमी की जानकारी के अभाव में फसलों की ज्यादा या कम सिंचाई करने की परम्परा है। सिंचाई जल का सही समय पर उचित मात्रा में उपयोग न केवल फसलों द्वारा पानी उपयोग की उच्च दक्षता को सुनिश्चित करता है बल्कि पोषक तत्वों के निक्षालन (leaching) को भी कम करता है। परिणामस्वरूप मिट्टी में बेहतर वायु संचरण से फसलों की पैदावार एवं कृषि उत्पादकता में महत्त्वपूर्ण सुधार होता है किस समय पर फसल को कितना मृदा जल उपलब्ध है तथा कब और कितनी सिंचाई करनी है, की जानकारी के लिये मृदा नमी का आकलन बहुत उपयोगी है। सिंचाई में मृदा नमी आँकड़ों का उपयोग जल और ऊर्जा के संरक्षण, सतही और भूमिगत जल के प्रदूषण को कम करने तथा फसलों की इष्टतम पैदावार बनाये रखने में भी सहायक हैं। मृदा नमी को मापने की अनेक विधियाँ व उपकरण उपलब्ध हैं जिनका चयन उपकरणों की लागत एवं उपयोगिता पर निर्भर करता है। इस प्रपत्र का मुख्य उद्देश्य मृदा नमी के मापन की विभिन्न उपलब्ध तकनीकों एवं उपकरणों की जानकारी देना तथा मृदा नमी के आँकड़ों को बेहतर उपयोग कर सिंचाई के क्षेत्र में पानी की उपयोग दक्षता को सुधारने पर बल दिया गया है।
Abstract
One of the major concerns in irrigated agriculture in India is the poor water use efficiency. The share of irrigation water in the total demand is bound to decrease from the present 84% to 74% due to more pressing and competing demands from other sectors by 2025 AD. As such, the research on improving the present level of water use efficiency in irrigation assumes a great significance in water resource management. In this perspective soil moisture measurement and its use in irrigation scheduling can play a vital role in increasing the water use efficiency. A tendency to over or under irrigate the cropped fields results due to absence of information about the soil moisture status down the soil profile. Application of precise quantities of irrigation water at the right time not only ensure a high efficiency of water use by the crops, but also reduces nutrient losses through leaching results in better aeration of the soil, and significantly improves crop yields and farm productivity. Soil moisture readings are useful in determining how much water is available for the crop, when to start irrigation and how much water to apply. Soil moisture monitoring, therefore, helps conserve water and energy, minimize pollution of surface and ground water, and produce optimum crop yields. A variety of methods are available for measuring soil moisture. The selection of method and equipment will depend on ease of use, cost of equipment, applicability to drier conditions, and desire to monitor continuous changes in soil moisture. The present paper aims at disseminating the knowledge of the available techniques and instrumentation for soil moisture measurement and its use in efficient scheduling of irrigation water applications that gives the highest return for the least amount of water.
प्रस्तावना
भारत में कुल निष्कासित जल का 84 प्रतिशत भाग सिंचाई उपयोग में लाया जाता है। लेकिन सिंचित कृषि क्षेत्र में जल का बेहतर उपयोग न होना प्रमुख चिंता का कारण है, जैसे नहर सिंचाई की सिंचन दक्षता मात्र 38 से 40 प्रतिशत तथा भूजल सिंचाई की सिंचन दक्षता 60 प्रतिशत आंकी जाती है इसलिये पानी उपयोग की वर्तमान दक्षता के स्तर को सुधारना सिंचाई जल प्रबंधन के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सही मात्रा में सही समय पर सिंचाई करने से फसलों द्वारा जल उपयोग की उच्च दक्षता सुनिश्चित करता है साथ ही पोषक तत्वों का निक्षालन कम होने तथा मृदा में वायु संचरण बेहतर होने के परिणामस्वरूप फसल की पैदावार एवं कृषि उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होता है।
मृदा सतह के नीचे मृदा नमी की जानकारी के अभाव में फसल की ज्यादा या कम सिंचाई करने की परम्परा है इसलिये हमें सिंचाई जल प्रबंधन को तकनीकी रूप से समर्थ बनाना होगा। हमें मृदा नमी का आकलन कर सही मात्रा में सही समय पर सिंचाई अनुसूची तैयार करने की जानकारी विकसित करनी होगी। मृदा नमी को मापने की अनेक विधियाँ एवं उपकरण उपलब्ध है जिनका चयन उपकरणों की लागत एवं उपयोगिता पर निर्भर करता है। इस शोध पत्र का मुख्य लक्ष्य मृदा नमी के आंकलन की विभिन्न उपलब्ध तकनीकों एवं उपकरणों की जानकारी देना तथा मृदा नमी के आकलन का बेहतर उपयोग कर सिंचाई के क्षेत्र में पानी की उपयोग दक्षता को सुधारने पर बल दिया गया है।
मृदा जल मापन
मृदा नमी के स्तर को मृदा जल की मात्रा तथा मृदा जल चूषण (soil suction) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
मृदा जल की मात्रा (Soil water content)
मृदा जल को सामान्य रूप से आयतन के प्रतिशत में भार के प्रतिशत में या प्रति फुट मिट्टी में जल की इंचों में मात्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है। मृदा जल धारण की क्षमता मृदा की बनावट एवं संरचना पर निर्भर करती है। (चित्र 1)।
मृदा जल चूषण (Soil water potential/suction)
मृदा जल चूषण यह इंगित करता है कि पौधों द्वारा मृदा जल उपयोग के लिये कितना कठिन परिश्रम करना होगा। मिट्टी जितनी ही सूखी होगी मृदा जल चूषण उतना ही ज्यादा होगा और उतना ही कठिन होगा पौधों को मृदा से पानी खींचना। मृदा जल चूषण को मृदा जल मात्रा में परिवर्तित करने के लिये मृदाजल एवं मृदा तनाव की जानकारी चाहिए जैसा कि चित्र 2 में दर्शाया गया है।
मृदा जल मापने की तकनीक
मृदा जल को दो अलग-अलग तरीकों से मापा जाता है।
1. मात्रात्मक विधियाँ जो मृदा जल की मात्रा दर्शाती हैं व
2. गुणात्मक विधियाँ जो मृदा जल चूषण दर्शाती है।
मात्रात्मक विधियाँ
मृदा नमी मापने की मात्रात्मक विधियों में भारात्मक (gravimetric) विधि, न्यूट्रॉन प्रकीर्णन (neutron scattering) विधि तथा द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि (dielectric constant) मुख्य रूप से हैं। इन विधियों से प्रति फुट मृदा में नमी की मात्रा निकाली जा सकती है। मृदा के जड़ क्षेत्र में एक फुट के अंतराल पर मृदा नमी की बहु माप ली जा सकती है तथा प्रत्येक अलग-अलग फुट गहराई पर ली गई माप का जोड़ करने से जड़ क्षेत्र में कुल मृदा नमी ज्ञात कर सकते है। दो अलग-अलग समयों पर मापी गयी मृदा नमी की तुलना एवं विश्लेषण कर उस समय अन्तराल में मृदा नमी में आयी कमी या पुनर्भरण को इंचों में ज्ञात किया जा सकता है।
भारात्मक विधि: यह विधि कुल मृदा जल मात्रा निकालने की सीधी एवं सरल तकनीक है इस विधि में मृदा नमूनों को भट्टी में 105डिग्री C पर लगभग 24 घण्टे के लिये सुखाया जाता है तथा मृदा के प्रारम्भिक वजन से सूखे वजन को घटाकर मृदा जल का वजन ज्ञात किया जाता है। मृदा जल के वनज को सूखी मृदा के वजन से भाग देने पर मृदा जल को भार के प्रतिशत के रूप में ज्ञात कर सकते हैं। और अगर मृदा नमूनों के ज्ञात आयतन का प्रयोग किया जाए तो मृदा जल को आयतन के प्रतिशत रूप में निकाला जा सकता है। इस विधि को न्यूट्रॉन प्रोब एवं द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि को अप्रत्यक्ष रूप में अंशांकन के लिये भी प्रयोग किया जाता है। यह विधि अत्यन्त सरल, व्यावहारिक एवं सस्ती तथा सटीक है। लेकिन हम विधि में समय और श्रम ज्यादा लगता है तथा चट्टानी मृदा में यह तकनीक कठिनाई पैदा करती है। इस विधि के लिये लैब भट्ठी, मृदा नमूनों को एकत्रित करने के उपकरण, भार तुला इत्यादि आवश्यक है।
न्यूट्रॉन प्रकीर्णन विधि: मृदा के अंदर पाये जाने वाले यौगिकों में जल सबसे ज्यादा हाइड्रोजन युक्त यौगिक है। इसी आधार पर न्यूट्रॉन प्रोब द्वारा मृदा के ज्ञात आयतन में हाइड्रोजन की मात्रा को मापकर मृदा जल आयतन का प्रतिशत रूप में परिकलन किया जाता है। न्यूट्रॉन प्रोब यूनिट जिसमें तेज एवं उच्च ऊर्जा युक्त न्यूट्रॉन होते हैं, को मृदा में पहले से स्थापित पाइप में नीचे पहुँचाया जाता है। प्रोब यूनिट एक केबल द्वारा भूमि सतह पर रखे एक नियंत्रण यूनिट से जुड़ा होता है। प्रोब को जड़ क्षेत्र की गहराई तक जहाँ-जहाँ प्रेक्षण/रीडिंग लेना होता है पहुँचाया जाता है। स्रोत से तेज गति से उत्सर्जित न्यूट्रॉन स्थापित पाइप से होकर मिट्टी के चारों तरफ मृदा जल के हाइड्रोजन अणु से टकराकर अपनी ऊर्जा में कमी करते हैं। हाइड्रोजन अणु से टकराने के परिणामस्वरूप कम उर्जा से युक्त धीमी गति के न्यूट्रॉन समूह वापस पहुँच कर नियन्त्रण यूनिट द्वारा मापे जाते हैं। न्यूट्रॉन की ऊर्जा, मृदा समूह के आकार एवं घनत्व मृदा के प्रकार मृदा जल की मात्रा तथा स्थापित टयूब के पदार्थ पर निर्भर करता है। विशिष्ट समयान्तराल में मापे गये धीमी गति के न्यूट्रॉनों की संख्या कुल आयतनिक मृदा जल के साथ रेखीय संबंध में होती है। न्यूट्रॉनों की संख्या एवं आयतनिक मृदा जल मात्रा के संबंध का अंशांकन दूसरे पदार्थ की बनी ट्यूब का प्रयोग करने पर आवश्यक होता है।
न्यूट्रॉन प्रोब द्वारा मृदा जल मात्रा की जाँच अलग-अलग स्थानों एवं गहराइयों पर तेज गति से दोहरायी जा सकती है। अंशांकित न्यूट्रॉन प्रोब द्वारा कुल मृदा जल मात्रा की माप अत्यंत सही विधि है। इस विधि का हानिकारक पक्ष यह है कि इसमें उपयोग होने वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ के कारण एक अनुज्ञापित व अनुभवी प्रचालक की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त यह उपकरण महँगा भी होता है तथा इसके सघन अंशाकंन की आवश्यकता होती है। साथ ही यह उपकरण सतह से आठ इंच की गहराई तक का माप सही नहीं कर पाता क्योंकि ऊपरी सतह से न्यूट्रॉन निकल जाते हैं।
द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि : द्वि-विद्युत स्थिरांक विधि द्वारा कुचालक मृदा में प्रेषित उच्च तीव्रता की विद्युत चुम्बकीय तरंगों की प्रेषण क्षमता को मापा जाता है। प्रेक्षण क्षमता के आधार पर मृदा नमी की मात्रा का आकलन किया जाता है। इस विधि के उपयोग का आधार यह है कि 30 MHz और 1 GHz के बीच सूखी मृदा का द्वि-विद्युत स्थिरांक 2 से 5 के बीच तथा पानी का 80 होता है।
टाइम डोमेन रिफ्लेक्ट्रोमीटर (टी.डी.आर.) सबसे साधारण एवं उपयोगी यंत्र है जिससे मृदा जल माध्यम का द्वि-विद्युत स्थिरांक माप कर मृदा जल के आयतनिक मात्रा का अनुमान लगाया जाता है। टीडीआर में एक इलेक्ट्रॉनिक मीटर होता है। जो दो समानान्तर छड़ों से एक तार द्वारा जुड़ा होता है। समानांतर छड़ें मिट्टी में माप लेने के लिये गहराई तक धँसायी जाती है। यह उपकरण बहुत उच्च तीव्रता की अनुप्रस्थ विद्युत चुम्बकीय तरंगों को केवल एवं प्रोब द्वारा मृदा में पहुँचाता है। विद्युत चुम्बकीय तंरगों का सिग्नल प्रोब की एक छड़ से दूसरी छड़ तक होते हुए वापस मीटर में पहुँचता है जो भेजे गये पल्स सिग्नल तथा वापस परावर्तित सिग्नल के पल्स के समय को मापता है। छड़ों एवं केबल की लम्बाई के आधार पर संचरण वेग का परिकलन किया जाता है। संचरण वेग जितना तीव्र होगा, द्वि-विद्युत स्थिरांक उतना ही कम होगा और उसी अनुसार मृदा नमी कम होगी।
टी.डी.आर. के लाभदायक पक्ष हैं कि यह उपकरण सापेक्ष रूप में मृदा जल की सही मात्रा (±1 से 20%) दर्शाता है तथा सीधे आयतनिक मृदा नमी की माप को दर्शाता है और आँकड़ों को लगातार संग्रह कर सकता है। इसमें अंशांकन की आवश्यकता नहीं होती तथा मृदा में नमक की उपस्थिति इस यंत्र को प्रभावित नहीं करती है। टी.डी.आर. यूनिट महँगा (3 से 5 लाख रुपये) होता है तथा प्रोब की छड़ों का मृदा से सम्पर्क ठीक न होने की दशा में रीडिंग प्रभावित होती है। छड़े कठोर तथा चट्टानी मिट्टी में क्षतिग्रस्त हो जाती है।
गुणात्मक विधियाँ: गुणात्मक विधियों में विद्युत प्रतिरोधक ब्लॉकों एवं टेन्सियोमीटरों का प्रयोग कर मृदा जल चूषण का अनुमान लगाया जाता है। इन विधियों में सीधे तौर पर मृदा जल की मात्रा न मापकर पौधों के लिये जल उपलब्धता की कठिनता को मापा जाता है इस प्रकार गुणात्मक विधि हमें सिंचाई कितनी करनी है न बताकर यह बताती है कि सिंचाई कब प्रारम्भ करनी है चूँकि सामान्य रूप से पोरस ब्लॉक और टेन्सियोमीटर एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाये जा सकते हैं, इसलिये केवल एक ही बिन्दु पर मापने के लिये उपयोगी होते हैं जड़ क्षेत्र में प्रतिनिधित्व नमी के माप के लिये कई गहराइयों पर माप आवश्यक है। मृदा जल मापन साइटों की संख्या क्षेत्र के आकार एवं मिट्टी की परिवर्तनशीलता पर निर्भर करती हैं।
विद्युत प्रतिरोधक ब्लॉक
पोरस ब्लॉक के प्रयोग का सिद्धांत यह है कि पोरस ब्लॉक की विद्युत चालकता उसमें उपलब्ध नमी के अनुपाती होती है। पोरस ब्लॉक जिप्सम, ग्लास जिप्सम, मैट्रिक्स, चीनी मिट्टी, नायलॉन या फाइबर ग्लास का बना होता है। दो इलेक्ट्रोड को ब्लॉक के अंदर स्थापित किया जाता है और दो तारों के जरिये इन इलेक्ट्रोडो को जोड़कर तारों को सतह तक पहुँचाया जाता है। ब्लॉक को मिट्टी में वांछित गहराई पर माप के लिये लगाया जाता है मृदा जल ब्लॉक के अंदर एवं बाहर मृदा नमी से संतुलित होकर गतिशील रूप से व्यवस्थित हो जाता है। जब ब्लॉक में मृदा नमी का संचरण मिट्टी में चारो तरफ से संतुलित हो जाता है, तब मीटर द्वारा ब्लॉक में लगे इलेक्ट्रोड के विद्युत प्रतिरोध को मापते हैं। विद्युत प्रतिरोध की माप मृदा जल तनाव को दर्शाती है। उपकरण निर्माता आमतौर पर मीटर रीडिंग को मृदा जल तनाव में परिवर्तित करने का अंशांकन उपलब्ध कराते हैं।
यह विधि बार-बार शीघ्रता से दोहरायी जा सकती है और अपेक्षाकृत सस्ती है। विश्वसनीय आकलन के लिये यह आवश्यक है। कि ब्लॉक मृदा में अच्छी तरह स्थापित किया गया हो जिसने मिट्टी से अच्छी तरह प्राकृतिक सम्पर्क बना लिया हो। जिप्सम ब्लॉक क्षारीय भूमि में ज्यादातर नष्ट हो जाते हैं, जिन्हें बदलने की जरूरत होती है। मिट्टी में घुलनशील लवण मिट्टी की चालकता एवं प्रतिरोधों को प्रभावित करते हैं जिसके कारण मीटर रीडिंग प्रभावित होती है। जिप्सम ब्लॉक बारीक बनावट वाली मिट्टी के लिये बेहतर होता है क्योंकि सामान्यतया बारीक संरचना वाली मिट्टी 100 सेन्टीबार तक संवेदनशील नहीं होती है। रेतीली मिट्टी में उपलब्ध मृदा जलस्तर ब्लॉक की मापन सीमा के बाहर होता है। इस उपकरण की कीमत निर्माता एवं ब्लॉक के प्रकार पर निर्भर करती है। जो लगभग 5000 रुपये है।
टेन्सियोमीटर
टेन्सियोमीटर पानी से भरा एक प्लास्टिक टयूब होता है जिसके एक सिरे पर पोरस कप एवं दूसरे सिरे पर एक वैक्यूम गेज लगा होता है। इस उपकरण को मिट्टी में वांछित गहराई पर पोरस कप से मिट्टी का अच्छा संपर्क बनाते हुए लगाया जाता है। टेन्सियोमीटर में पानी पोरस कप के माध्यम से मृदा जल के साथ संतुलित अवस्था में आ जाता है। जब मिट्टी सूखती है तो पोरस कप से पानी मिट्टी में संचरित होता है और फलस्वरूप टयूब में वैक्यूम एवं तनाव उत्पन्न होता है, वहीं जब मिट्टी गीली हो जाती है, तो मिट्टी से पानी पोरस कप से टयूब में चला जाता है जो तनाव एवं वैक्यूम को कम कर देता है। इसी तनाव को वैक्यूम गेज एक सूचकांक के रूप में मापता है। मिट्टी के नमूने एकत्रित कर विभिन्न तनावों पर मृदा नमी बनाये रखने का वक्र विकसित किया जाता है। जिसकी मदद से मृदा जल की मात्रा का परिकलन होता है।
ज्यादातर टेन्सियोमीटर में 0-100 सेन्टीबार स्केल होता है जहाँ 0 सेटीबार रीडिंग पूर्ण रूप से संतृप्त अवस्था को दर्शाती है पूरी मृदा प्रोफाइल की मृदा नमी की बेहतर जानकारी के लिये पौधों के जड़ क्षेत्र में पोरस कप स्थापित किया जाता है क्योंकि पौधों की 70% जड़ मृदा के जड़ क्षेत्र के 50% ऊपरी सतह पर होती है। प्रत्येक बिन्दु पर कम से कम दो टेन्सियोमीटर जड़ क्षेत्र के 1/3 एवं 2/3 भाग गहराई पर लगाया जाना चाहिए। ऊपरी सतह पर लगाया गया टेन्सियोमीटर हमें सिंचाई कब प्रारम्भ करनी है, की बेहतर जानकारी देता है वहीं गहरे टेन्सियोमीटर कितनी सिंचाई करनी है, की जानकारी देता है। गहरे टेन्सियोमीटर की रीडिंग ऊपरी सतह से ज्यादा होने पर हमें सिंचाई ज्यादा करनी चाहिए। अगर गहरे टेन्सियोमीटर की रीडिंग अवस्था की है तो इस अवस्था में पोषक तत्वों एवं जल के निक्षालन की सम्भावना बढ़ जाती है।
सिंचाई की गहराई का आकलन
सिंचाई जल की मात्रा विभिन्न फसलों की जड़ों की गहराई पर निर्भर करती है कि कितनी गहराई तक सिंचाई जल पहुँचाया जाए। विभिन्न प्रकार कि मृदाओं में 50% मृदा जल की उपलब्धता पर प्रत्येक एक मीटर गहरी मृदा की सिंचाई के लिये आवश्यक जल की मात्रा को सारणी 1 में दर्शाया गया है।
सारणी 1 विभिन्न मृदाओं के लिये सिंचाई की गहराई का विवरण | |
मृदा का प्रकार | सिंचाई जल (मिमी) प्रति मीटर गहराई (मृदा नमी की 50 प्रतिशत उपलब्धता पर) |
रेतीली | 25 से 50 |
रेतीली दोमट | 45 से 80 |
मृत्तिका दोमट | 80 से 120 |
मृत्तिका | 100 से 140 |
मृदा जल माप का सिंचाई अनुसूची में उपयोग
सिंचाई अनुसूची के विकास में मृदा नमी के आकलन की अहम भूमिका होती है। मृदा नमी की माप स्वतः ही सिंचाई प्रारम्भ करने की सूचना देती है लेकिन यह तब और महत्त्वपूर्ण हो जाती है जब मृदा जल के आँकड़े अन्य सिंचाई अनुसूची विकास की विधियों जैसे चेकबुक संगणक निदर्श के साथ प्रयोग किये जाते हैं। मृदा नमी के आँकड़ो की मदद से प्रारम्भिक मृदा जल संतुलन निकाला जाता है तथा पूरे सिंचाई काल में पुनः मृदा जल संतुलन को परिमार्जित किया जात है जहाँ सिंचाई अनुसूची के विकास में मृदा नमी का प्रयोग होता है वहाँ हमें कम से कम दो दिन में एक बार मृदा नमी की रीडिंग अवश्य लेनी चाहिए। जहाँ मृदा नमी की रीडिंग का प्रयोग अन्य अनुसूची की विधियों में किया जाता है। वहाँ पर हमें सप्ताह में एक या दो बार अवश्य रीडिंग लेनी चाहिए। सिंचाई के मार्गदर्शन के लिये टेन्सियोमीटर एवं प्रतिरोधक ब्लॉक के आँकड़ों का प्रयोग सारणी 2 में दर्शाया गया है। मृदा नमी, वर्षा, सिंचाई मात्रा और फसल की स्थिति के आँकड़े भविष्य में सिंचाई जल प्रबन्धन की योजना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
सारणी 2 - मृदा जल की उपलब्धता के अनुसार मृदा तनाव रीडिंग | |||
मृदा के प्रकार | क्षेत्रजल धारण क्षमता | मृदा चूषण मृदा नमी की उपयुक्त सीमा | सेन्टीबार 50 प्रतिशत मृदा नमी पर (सिंचाई आवश्यक) |
रेतीली दोमट | 10-15 | 30-50 | 45-60 |
दोमट/गाद दोमट | 10-20 | 35-55 | 50-70 |
मृत्तिका दोमट/ मृत्तिका | 15-20 | 40-60 | 60-100 |
निष्कर्ष
सार रूप में हम यह कह सकते हैं कि मृदा नमी को मापने की अनेक विधियाँ एवं उपकरण उपलब्ध हैं। उपकरणों का चयन इनकी लागत व उपयोगिता पर निर्भर करता है कि क्या हम लगातार मृदा नमी के आँकड़े एकत्रित करना चाहते हैं। तथा किस तरह की मृदा की क्षेत्र स्थिति है? जैसे ज्यादा सूखी, ज्यादा नम या कठोर इत्यादि? मृदा नमी के आँकड़े, फसल के लिये उपलब्ध जल की जानकारी तथा सिंचाई कब और कितनी करनी है, के निर्णय में लाभदायक होते हैं। मिट्टी की नमी की जाँच की निगरानी रखने से हम जल संरक्षण कर ऊर्जा की बचत कर सकते हैं तथा कुशल सिंचाई अनुसूची का प्रयोग कर बहुत थोड़े जल से ही अच्छी उपज पा सकते हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह विधि अपनाकर अमूल्य प्राकृतिक जल की बचत करते हुए पैदावार में क्रान्तिकारी बढ़त हासिल कर देश को प्रगति के मार्ग पर ले जा सकते हैं।
संदर्भ
1. भारत सरकार, दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002-2007, vol. I से vol. II, योजना आयोग, नई दिल्ली (2002).
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4. समजस्ट्रला ए जी एवं हरीशन डी एस, टेन्सियोमीटर फॉर सॉयल मॉयस्चर मेजरमेन्ट एण्ड इरिगेशन सिड्यूलिंग डॉक्यूमेन्ट नं. CIR487, एग्रीकल्चरल एण्ड बायोलॉजिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेन्ट, फ्लोरिडा कोआपरेटिव एक्सटेशन सर्विस, इन्सटीटयूट ऑफ फूड एण्ड एग्रीकल्चरल साइंसेज, यूनीवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा (1998).
5. वेरनर एच, इरिगेशन वाटर मैनेजमेंटः मेजरिंग सॉयल मॉयस्चर, पब्लिकेशन नं. FS876 कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड बायोलॉजिकल साइंसेज, साउथ डकोटा स्टेट यूनीवर्सिटी, ब्रूकिंग्स (2002).
सम्पर्क
जयवीर त्यागी, एस एल श्रीवास्तव एवं राजदेव सिंह, (Jaivir Tyagi, SL Srivastava & RD Singh)
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, (National Institute of Hydrology, Roorkee 247 667 (Uttarakhand))
भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान पत्रिका, 01 जून, 2012
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