सतही जल प्रबन्धन में वक्र संख्या का अनुप्रयोग

सतही जल प्रबन्धन से लेकर अभियांत्रिकी अभिकल्पन तक में जल विभाजक के गणितीय निदर्शनों का वृहत इतिहास है। क्षेत्रीय पैमाने पर निदर्शनों का प्रयोग मृदा संरक्षण पद्धतियों की योजना एवं अभिकल्पन, सिंचाई जल प्रबन्धन, नम जमीन पुनरोद्धार, सरिता पुनरोद्धार एवं जल स्तर प्रबन्धन इत्यादि के लिए किया जा रहा है। वृहत्त पैमाने पर निदर्शनों का प्रयोग बाढ़ बचाव परियोजनाओं, उम्रदराज बांधों का पुनर्वास, बाढ़ प्रबन्धन, बाढ़ गुणवत्ता मूल्यांकन एवं बाढ़ आपूर्ति पूर्वानुमान के लिए किया जा रहा है। इन विषयों का केन्द्र बिन्दू सतही जल प्रबन्धन है जो वर्षा-अपवाह निदर्शन की समस्याओं पर प्रकाश डालती है। विशिष्ट रुप से संसाधन निर्धारण, बाढ़ एवं सूखा बचाव, सिंचाई एवं निकासी अभियांत्रिकी एवं जल संसाधन योजना एवं प्रबन्धन में किया जाता है।

एस0सी0एस0 वक्र संख्या का विकास वर्ष 1954 में किया गया था तथा इसे 1956 में मृदा संरक्षण सेवा (वर्तमान में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण सेवा के रुप में प्रचलित) यू0 एस0 कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी हस्तपुस्तिका (NEH-4) के खण्ड 4 में प्रलेखित किया गया था। इस प्रलेख को 1964, 1965, 1971, 1972, 1985 एवं 1993 में संशोधित किया गया। यह लघु कृषि, वन एवं शहरी जल विभाजकों से प्राप्त वर्षा घटक के लिए सतही अपवाह के आयतन की गणना करता है (SCS 1986)।

अगस्त 1954 में जल विभाजक बचाव एवं बाढ़ निरोधक अधिनियम (लोक अधिनियम 83-566) से केन्द्रीय स्तर पर पद्धति को मान्यता प्राप्त हुई एवं इस पद्धति को सम्पूर्ण विश्व में असंख्य अनुप्रयोगों में प्रयोग किये जाने के प्रमाण उपलब्ध हैं। अपनी सरलता के कारण SCS-CN पद्धति का अनुप्रयोग जल विज्ञान एवं जल संसाधनों की अनेकों समस्याओं के समाधान में किया जा रहा है। इसका प्रयोग पुनः समस्याओं के समाधान के लिए भी किया जा रहा है जिनके समाधान हेतु मूलतः इस पद्धति का अन्वेषण नही किया गया था।

इस पद्धति में प्रत्यक्ष अपवाह आयतन के आंकलन के लिए मूल वर्णनात्मक अन्तर्देश, जिन्हे अंकीय मानों में परिवर्तित किया गया है, की आवश्यकता होती है। (बोन्टा 1997)। वक्र संख्या, जो जल विभाजक के अपवाह सम्भावना का वर्णनात्मक प्राचलन है, के एक मात्र प्राचल होने के कारण आंकलन किये जाने की आवश्यकता है। इस पद्धति का विस्तृत उपयोग अभियन्ताओं, जल विज्ञानिकों एवं जल विभाजक प्रबन्धकों द्वारा एक सरल जल विभाजक निदर्श के रुप में एवं अधिक जटिल जल विभाजक निदर्शों में अपवाह आंकलन घटक के रुप में किया गया है।

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