बदलते वातावरण में जल की भूमिका और प्रबंधन

जल आदिकाल से मानव जीवन का अभिन्न अंग रहा हैं। अभिन्न अंग होने के बावजूद भी जल को वह महत्व नहीं मिला, जिसका वह हकदार रहा है। जीवन के वहन में जल को पिछली सदी के आखिरी चातुरांश तक पीछे की सीटों में स्थान दिया जाता रहा है। लेकिन इसके बाद से जल को महत्व का स्थान दिया जाने लगा है और नये मिल्लेनियम की प्रथम सदी में तो जल को बहुत ही महत्व दिया जाने लगा है, अब तो जल आगे की सीटों में सम्मान के साथ बैठ रहा है। इस सम्मान के मिलते ही जल संसाधनों को आदर से देखा जाने लगा है। यहाँ तक कि जल संसाधनों का महत्व आँका जाना, योग्य देख-रेख, भंडार बनाना, मितव्ययी उपयोग और जल की समय और स्थान संबंधी असमानता को दूर करने की तरफ खूब ध्यान दिया जाने लगा है, जिसे देखा और महसूस भी किया जा रहा है। जल के प्रबंधन की तरफ बढ़ते हमारे कदम तब ही पूर्ण कहलायेंगे जब हम जल, वातावरण और प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को समुचित तौर पर समझने का प्रयास करेंगे। जल का प्रबंधन एक हाथ की कला और हथियार नहीं है इस प्रबंधन में तो बहुत सी संस्थाओं , विविध ज्ञान का संगम और लोगों का सहयोग लेना जरूरी होता है।

हमारे जल संसाधन प्रकृति की गोद में स्थित हैं और इसके आस-पास के वातावरण को सीधे प्रभावित करते हैं, जल संसाधनों के आस-पास का मौसम एक लंबे समय के बाद, वहां के वातावरण को बनाता है और एक आखरी स्वरुप देता है। मौसम स्थानिक है और जो अंतिम चरण में वातावरण को प्रभावित करता है। मानव की दिनचर्या, जीवन निर्वाह, जिससे वो स्थानिक जगह को प्रदूषित करता है, यह स्थानिक प्रदूषण एक बड़ा आकार लेकर वातावरण को प्रभावित करता है। वातावरण फिर जल संसाधनों को अपने प्रभाव में ले लेता है। इस तरह मानव जल संसाधनों को प्रभावित करता है। ग्लोबल वार्मिंग जिसका एक ज्वलंत उदाहरण है। एक उत्तम प्रकार के जल प्रबंधन के लिए एक ठोस योजना की जरूरत है। जिसके प्रथम चरण में डेटा-बेस बनाना, जल संबंधी जानकारियों को एकत्रित करना होगा। दूसरे चरण में एकत्रित जानकारियों का विश्लेषण करना होगा और अंतिम चरण में एक ऐसी प्रबंध व्यवस्था का विकास करना पड़ेगा जो बदलते वातावरण के सामने, जल संसाधनों को बचाकर उन्हें और ज्यादा जन उपयोगी बना सकें। जल स्रोत यात्रा की शुरूआत से अंतिम पड़ाव तक, विभिन्न रास्तों से और सभ्यताओं से गुजरते हुऐ अपने साथ विविधता निहित करते हैं, जिस कारण उपभोक्ताओं को जल संबंधी जानकारी से परिचित करवाने का अभियान भी चलाना जरूरी है। अतः हमारी जल संस्थाओं को और भी मजबूत और स्वतंत्र करना पड़ेगा।

भारत में जल की कमी नहीं है। आज की तारीख में वातावरण जल पर बहुत हावी भी नहीं है। परंतु हमें एक सम्पूर्ण जल प्रबंध व्यवस्था को स्थानिक परिवेश में विकसित करना पड़ेगा, जिससे कि हम भविष्य में आने वाली वातावरण संबंधी समस्याओं से जूझने के लिए अपने जल संस्थानों को तैयार कर सकें। सामान्यतः अनुभव से देखा गया है कि जल संस्थानों के प्रबंधन, रख-रखाव व देख-रेख के सम्बन्ध में आने वाले समय के लिए तब्बकावार आयोजन की जरूरत रहेगी, आधुनिक तकनीकों जैसे की सुदूर संवेदन, भौगोलिक सूचना पद्धति का उपयोग, नवीनतम उपकरणों का उपयोग, कार्बन पदचिन्ह और जल संसाधनों की गुणवत्ता वगैरह को बढ़ावा देना पड़ेगा। प्रबंधन से जुड़े मुद्दे जैसे कि जल को प्राथमिकता देना, पर्यावरण को राष्ट्रीय मुद्दा बनाना, कानून में सुधार करना, विभिन्न स्तरों पर उचित जानकारी देना। जल के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाकर सामूहिक सोच में बदलाव लाना होगा।

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