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देश की नदियों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा!
Posted on 10 Apr, 2012 11:24 AM

जल योजना के तहत अभी इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों पर अपना कब्जा जमा लिया है। हमार

विष रस भरा कनक घट जैसे
Posted on 10 Apr, 2012 10:15 AM

संदर्भ : ‘राष्ट्रीय जल-नीति 2012’


मसौदे का ‘पॉल्यूटर पेज’ का सिद्धांत भी इस बात की तरफ साफ इशारा करता है कि अपना मुनाफा ज्यादा से ज्यादा करने के लिए जितना चाहे पानी प्रदूषित करो, बस थोड़ा सा जुर्माना भरो और काम करते रहो। मसौदे में कहीं भी किसी भी ऐसे सख्त कानून या कदम की बात नहीं की गई है या ऐसे प्रयासों की बात नहीं की गई है कि अपशिष्ट और प्रदूषक पैदा ही न हों।

हाल ही में भारत के जल संसाधन मंत्रालय ने नई ‘राष्ट्रीय जल-नीति 2012’ का मसौदा जल विशेषज्ञों और आम नागरिकों के लिए प्रस्तुत किया है। यूं तो ये मसौदा सभी लोगों के लिए सुझाव आमंत्रित करता है लेकिन इसके पीछे की वास्तविकता कुछ और ही है। कई रहस्यों पर पर्दा डालती हुई और शब्दों से खेलती हुई यह जल-नीति इस बात की तरफ साफतौर पर इशारा करती है कि सरकार अब जलापूर्ति की जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ रही है। और यह काम बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं को सौंपना चाहती है। जलनीति के इस मसौदे को अगर देखा जाय तो पहली नजर में मन खुश हो जाता है। जलनीति में पहली बार जल-संकट से निजात के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण को महत्ता दी गई है। ऐसा लगता है कि साफ पेयजल और स्वच्छता के साथ-साथ पारिस्थितिकीय जरूरतों को भी प्राथमिकता दी गई है। पर जब इस मसौदे को हम गहराई से परखते हैं, तो साफ हो जाता है कि किस तरह से इसमें लच्छेदार भाषा का इस्तेमाल करके शब्दों का एक खेल खेला गया है।
‘जोड़ने’ में न टूटें लक्ष्मण रेखाएं
Posted on 09 Apr, 2012 06:04 PM

हिमालय का नक्शा ऊपर से देखें तो गंगा और यमुना का उद्गम बिल्कुल पास-पास दिखाई देगा लेकिन यह पर्वत का भूगोल ही है कि दोनों नदियों को प्रकृति ने अलग-अलग घाटियों में बहाया और फिर बहुत धीरज के साथ पर्वत को काट-काटकर प्रयाग तक पहुंच कर इनको मिलाया। न्याय देने वाला पक्ष-विपक्ष की लंबी-लंबी दलीलें सुनता है और तब वह नीर, क्षीर, विवेक के अनुसार फैसला सुनाता है। दूध का दूध और पानी का पानी। लेकिन नदी जोड़ो प्रसंग में अदालत ने दोनों बार दूध भुला दिया और पानी को पानी से जोड़ने का आदेश दे दिया है।

लगता है लक्ष्मण रेखाएं तोड़ने का यह स्वर्ण-युग आ गया है। जिसे देखो वह अपनी मर्यादाएं तोड़कर न जाने क्या-क्या जोड़ना चाहता है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने नदी जोड़ने के लिए सरकार को आदेश दिया है। एक समिति बनाने को कहा है और उसकी संस्तुतियां भी एक निश्चित अवधि में सरकार के दरवाजे पर डालने के लिए कहा है और शायद यह भी कि सरकार संस्तुतियां पाते ही तुरंत सब काम छोड़कर देश की नदियां जोड़ने में लग जाए! यह दूसरी बार हुआ है। इससे पहले एनडीए के समय में बड़ी अदालत ने अटलजी की सरकार को कुछ ऐसा ही आदेश दिया था, तब विपक्ष में बैठी सोनिया जी और पूरी कांग्रेस उनके साथ थी। एनडीए के भीतरी ढांचे में आज की तरह किसी भी घटक ने इसका कोई विरोध नहीं किया था। सबसे ऊपर बैठे राष्ट्रपति भी इस योजना को कमाल का मानते थे।
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पीपलकोटी पनबिजली परियोजना का काम रुका
Posted on 09 Apr, 2012 10:15 AM

राज्य में अन्य बड़े बांधों वाली परियोजनाओं के साथ ही पीपलकोटी प्रोजेक्ट का विरोध स्थानीय लोग बहुत समय से कर रहे

300 करोड़ रुपए खर्च, नदी जोड़ो योजना अब तक सिर्फ कागजों में
Posted on 05 Apr, 2012 10:22 AM

इस योजना के तहत देश की प्रमुख नदियों को 2015 तक एक-दूसरे से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। नदियों को जोड़ने के संब

जीडी की जिद, क्या बहेगी गंगा
Posted on 04 Apr, 2012 04:04 PM

नदी नहीं गधेरे


बड़े बांधों के खिलाफ नारा ‘गंगा को अविरल बहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो’ यह दो दशक पुराना नारा है। पुराना संघर्ष तो पानी पर लिखा इतिहास हो चुका है। उसको समझने के लिए ‘पानी की दृष्टि’ चाहिए। पुराना तो छोड़िए नए में देश के उत्तर पूर्व के एक राज्य असम के लखीमपुर जिले में निर्माणाधीन लोअर सुबानसिरी को वहां के जनसंगठनों की तरफ से नवम्बर-दिसम्बर 2011 से हजारों की संख्या में चक्का जाम कर बांध निर्माण को रोक दिया गया है।

भागीरथी, धौलीगंगा, ऋषिगंगा, बालगंगा, भिलंगना, टोंस, नंदाकिनी, मंदाकिनी, अलकनंदा, केदारगंगा, दुग्धगंगा, हेमगंगा, हनुमानगंगा, कंचनगंगा, धेनुगंगा आदि ये वो नदियां हैं जो गंगा की मूल धारा को जल देती हैं या देती थीं। देती थीं इसलिए कहना पड़ रहा है कि गंगा को हरिद्वार में आने से पहले 27 प्रमुख नदियां पानी देती थीं। जिसमें से 11 नदियां तो धरा से ही विलुप्त हो चुकी हैं और पांच सूख गई हैं। और ग्यारह के जलस्तर में भी काफी कमी हो गई है। यह हाल है देवभूमि उत्तराखंड में गंगा और गंगा के परिवार की। नदी निनाद कर बहती है। उसके तीव्र वेग के कारण ही वह नदी कहलाती है। यदि किसी धारा में कलकल और उज्जवल जल नहीं तो वह उत्तराखंड में गधेरा कहा जाता है उसको नदी का दर्जा प्राप्त नहीं होता।
घटती भूमि: बढ़ती चिंता
Posted on 04 Apr, 2012 12:32 PM

आर्थिक विकास एवं सकल घरेलु उत्पादन (जीडीपी) में वृद्धि प्राकृतिक संसाधनों पर भी आधारित है। आर्थिक मंदी से निजात

natural resources
औद्योगिक कॉरिडोर: विध्वंस का नया हथियार
Posted on 04 Apr, 2012 11:44 AM

पश्चिमी घाट की 600 मीटर की ऊंचाई को लांघकर गोदावरी, कृष्णा जैसी नदियों का पानी कॉरीडोर परियोजना के लिए सुझाया है

पड़त भूमि की समस्याएं
Posted on 04 Apr, 2012 09:18 AM

भूक्षरण से जमीन के कटाव को होने वाली क्षति का मूल्यांकन कर पाना असंभव है क्योंकि भूमि की उपजाऊ सतह को एक इंच परत

परम्परा, ज्ञान और धरोहर का व्यापार
Posted on 03 Apr, 2012 04:05 PM

मानव जिंदगी के लिए जिस तरह जमीन, हवा, पानी जरूरी है, उसी तरह वनस्पति और प्राणी भी जरूरी हैं। किन्हीं कारणों से य

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