300 करोड़ रुपए खर्च, नदी जोड़ो योजना अब तक सिर्फ कागजों में

इस योजना के तहत देश की प्रमुख नदियों को 2015 तक एक-दूसरे से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। नदियों को जोड़ने के संबंध में कुछ राज्यों के बीच समझौते भी कर लिए गए। जल संसाधन मंत्रालय और दूसरे संबंधित सरकारी विभागों के अधिकारियों ने इस योजना को बनाने के पीछे तब यह तर्क दिया था कि नदियों को जोड़ने से देश को बाढ़-सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निजात मिलेगी। नदियों के पानी की बर्बादी भी रुकेगी। मगर, 2004 में केंद्र में सत्ता बदलने के साथ जैसे ही केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी वाजपेयी सरकार की यह योजना कागजों में दबती चली गई।

नई दिल्ली। नदियों को जोड़ने की परियोजना के तहत जमीन पर भले अब तक कोई नदी नहीं जुड़ पाई हो लेकिन कागजों में देश भर की नदियों का काम लगभग पूरा हो गया है। नदियों को जोड़ने के नाम पर विभिन्न सरकारी महकमों ने परियोजना रिपोर्ट बनाने और विभिन्न प्रकार के अध्ययन कार्यों पर ही तीन सौ करोड़ रुपए से अधिक की राशि फूंक डाली है। करोड़ो रुपए की इस राशि के हिसाब-किताब को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। जल संसाधन मंत्रालय ने 1980 में जल संसाधन विकास संबंधी एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की थी। इस योजना के तहत नदियों में जल की अधिकता वाले बेसिनों से जल की कमी वाली नदियों के बेसिन-क्षेत्रों तक जल को ले जाने की योजना पर काम शुरू किया जाना था। तकनीकी अध्ययन कराने के लिए 1982 में जल संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्लूडीए) का गठन किया। यह योजना नदियों को जोड़े जाने के नाम से अधिक जानी गई।

केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार ने इसे जोर-शोर से आगे बढ़ाने का काम शुरू किया लेकिन भाजपा सरकार के कार्यकाल में भी अध्ययन और रिपोर्ट तैयार करने का काम ही चला। एनडब्ल्यूडीए ने एनपीपी के अंतर्गत नदियों के संपर्क प्रस्तावों की पूर्व व्यवहार्यता रिपोर्ट, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने, अंतर्राज्यीय संपर्कों की व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने तथा इस संबंध में अन्य अध्ययन कार्य के लिए 1982-83 से लेकर जनवरी, 2010 तक 277.72 करोड़ रुपए का व्यय कर डाले। इसके अतिरिक्त सरकार ने दसवीं योजना 2007-12 में एनडब्ल्यूडीए द्वारा किए गए उपर्युक्त कार्यों के वास्ते 182.80 करोड़ रुपए का बजट परिव्यय भी जारी कर दिया, जिसमें से 76.50 करोड़ रुपए का व्यय किया जा चुका है। खास बात यह है कि व्यय का परियोजना वार लेखा-जोखा समयबद्ध ढंग से नहीं रखा गया। संसद में सवाल उठा तो जैसे–तैसे कुछ योजनाओं का ब्यौरा तैयार किया गया। व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करते समय सर्वेक्षण और अन्वेषण, जल विज्ञानीय विश्लेषण, शीघ्र सामाजिक आर्थिक और पर्यावरण प्रभाव आकलन आदि विभिन्न अध्ययन किए गए।

वर्तमान में केन-बेतवा की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार हुई है। एनडब्लूडीए ने हिमालय से निकलने वाली 14 और भारतीय प्रायद्वीप की 16 नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना व्यवहारिकता रिपोर्ट तैयार कर ली है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अभिकरण ने केन-बेतवा लिंक के लिए विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार कर ली है जबकि पार, तापी, नर्मदा और दमनगंगा, पिंजल लिंक योजनाओं के लिए रिपोर्ट भी तैयार है। पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने 1999 में नदियों को जोड़ने की योजना बनाई थी। इस योजना के तहत देश की प्रमुख नदियों को 2015 तक एक-दूसरे से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। नदियों को जोड़ने के संबंध में कुछ राज्यों के बीच समझौते भी कर लिए गए। जल संसाधन मंत्रालय और दूसरे संबंधित सरकारी विभागों के अधिकारियों ने इस योजना को बनाने के पीछे तब यह तर्क दिया था कि नदियों को जोड़ने से देश को बाढ़-सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निजात मिलेगी। नदियों के पानी की बर्बादी भी रुकेगी। मगर, 2004 में केंद्र में सत्ता बदलने के साथ जैसे ही केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार बनी वाजपेयी सरकार की यह योजना कागजों में दबती चली गई।

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