दुष्यंत शर्मा

दुष्यंत शर्मा
परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने की चुनौती
Posted on 04 Jan, 2013 11:21 AM
अभी दुनिया भर के बहुत से देशों में परमाणु कचरा संयंत्रों के पास ही गहराई में पानी के पूल में जमा किया जाता है। इसके बाद भी कचरे से भरे कंटेनर्स की सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है। परमाणु कचरे से उत्पन्न विकिरण हजारों वर्ष तक समाप्त नहीं होता। विकिरण से मनुष्य की सेहत और पर्यावरण पर पड़ने वाले घातक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। परमाणु उर्जा का लंबा इतिहास रखने वाले कई विकसित देशों में भी इस कचरे को स्थायी रूप से ठिकाने लगाने की तैयारियाँ चल रही हैं, प्रयोग चल रहे हैं। बीच में एक विचार यह भी आया था कि इस कचरे को अंतरिक्ष में रखा जाए लेकिन मामला बेहद ख़र्चीला व जोखिम भरा होने के कारण वह विचार त्याग दिया गया।। परमाणु ऊर्जा के पक्ष-विपक्ष में तमाम तरह की चर्चाओं के बीच ब्रिटेन से खबर आई है जो भारतीय संदर्भ में निश्चय ही अत्यंत प्रासंगिक है। खबर के मुताबिक ब्रिटेन में परमाणु कचरे को साफ करने में 100 बिलियन, पौंड जैसी भारी-भरकम राशि खर्च होगी। इससे भी बड़ी बात यह कि इस काम को अंजाम तक पहुंचाने में 120 साल लगेंगे। वहां के विशेषज्ञों ने परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने और इसकी सुरक्षा को लेकर भी चिंता व्यक्त की है।

ब्रिटेन में वर्ष 2005 में जब नेशनल डिकमिशनिंग अथॉरिटी (एनडीए) ने परमाणु कचरे के निस्तारण के तौर-तरीकों पर काम करना शुरू किया था तब अनुमान लगाया जा रहा था कि इस काम पर 56 बिलियन पौंड का ख़र्चा आएगा
सरकार ही करे पानी के साथ न्याय
Posted on 04 May, 2012 05:27 PM

राजस्थान में जब स्थानीय लोगों ने अपने अथक प्रयासों से सूखी नदियों को जीवित कर सदानीरा बना दिया तो स्थानीय प्रशासन की नजर उसके पानी पर टिक गई। जब तक नदी सूखी रही तब तक तो सरकार की ओर से उसे जीवित बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया लेकिन जैसे ही आम लोगों ने उसे पानीदार बना दिया तो मत्स्य विभाग के करिंदे उसके टेंडर बांटने के लिए आ पहुंचे। इस मामले में सामान्य व्यक्ति भी न्याय कर सकता है कि उस नदी और उसके पानी पर किसका हक होना चाहिए जिसे लोगों ने अपना खून-पसीना बहाकर जीवित किया हो।

जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल ने हाल ही में संसद के उच्च सदन को बताया कि बीते 65 साल में देश में पानी की उपलब्धता गिरकर एक-तिहाई रह गई है। उन्होंने यह भी कहा है कि यदि सिकुड़ते जल संसाधनों का न्यायसंगत तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो लोगों की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है। पानी की उपलब्धता में कमी का यह खुलासा निश्यच ही चौंकाने वाला तो नहीं है। पानी की कमी और इससे पाद होने वाली हिंसक स्थितियां जनता पिछले कई सालों से, खासतौर से गर्मियों में झेल रही है। 50 साल पहले देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5 हजार क्यूबिक मीटर/सालाना थी जो अब घटकर 15 सौ क्यूबिक मीटर के आसपास है। पानी की उपलब्धता में इसलिए कमी आई है क्योंकि जनसंख्या बढ़ने के साथ ही पानी मांग में वृद्धि हुई है। यह बात सहज समझी जा सकती है। कमी की वजहें और भी हैं।
पीपलकोटी पनबिजली परियोजना का काम रुका
Posted on 09 Apr, 2012 10:15 AM

राज्य में अन्य बड़े बांधों वाली परियोजनाओं के साथ ही पीपलकोटी प्रोजेक्ट का विरोध स्थानीय लोग बहुत समय से कर रहे

आबोहवा में घुलता जहर
Posted on 06 Dec, 2011 03:48 PM

हवा से राहत, पानी में आफत

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