मीनाक्षी अरोरा और शिराज केसर

मीनाक्षी अरोरा और शिराज केसर
विष रस भरा कनक घट जैसे
Posted on 10 Apr, 2012 10:15 AM

संदर्भ : ‘राष्ट्रीय जल-नीति 2012’


मसौदे का ‘पॉल्यूटर पेज’ का सिद्धांत भी इस बात की तरफ साफ इशारा करता है कि अपना मुनाफा ज्यादा से ज्यादा करने के लिए जितना चाहे पानी प्रदूषित करो, बस थोड़ा सा जुर्माना भरो और काम करते रहो। मसौदे में कहीं भी किसी भी ऐसे सख्त कानून या कदम की बात नहीं की गई है या ऐसे प्रयासों की बात नहीं की गई है कि अपशिष्ट और प्रदूषक पैदा ही न हों।

हाल ही में भारत के जल संसाधन मंत्रालय ने नई ‘राष्ट्रीय जल-नीति 2012’ का मसौदा जल विशेषज्ञों और आम नागरिकों के लिए प्रस्तुत किया है। यूं तो ये मसौदा सभी लोगों के लिए सुझाव आमंत्रित करता है लेकिन इसके पीछे की वास्तविकता कुछ और ही है। कई रहस्यों पर पर्दा डालती हुई और शब्दों से खेलती हुई यह जल-नीति इस बात की तरफ साफतौर पर इशारा करती है कि सरकार अब जलापूर्ति की जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ रही है। और यह काम बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं को सौंपना चाहती है। जलनीति के इस मसौदे को अगर देखा जाय तो पहली नजर में मन खुश हो जाता है। जलनीति में पहली बार जल-संकट से निजात के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण को महत्ता दी गई है। ऐसा लगता है कि साफ पेयजल और स्वच्छता के साथ-साथ पारिस्थितिकीय जरूरतों को भी प्राथमिकता दी गई है। पर जब इस मसौदे को हम गहराई से परखते हैं, तो साफ हो जाता है कि किस तरह से इसमें लच्छेदार भाषा का इस्तेमाल करके शब्दों का एक खेल खेला गया है।
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