पीपलकोटी पनबिजली परियोजना का काम रुका

राज्य में अन्य बड़े बांधों वाली परियोजनाओं के साथ ही पीपलकोटी प्रोजेक्ट का विरोध स्थानीय लोग बहुत समय से कर रहे थे। उनका कहना है कि इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और घपलेबाजी हुई है। उधर सामाजिक और जन संगठनों के लोग पर्यावरणीय नुकसान की दृष्टि से इस जैसी कई परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं और अगले मोर्चों के लिए लामबंद होने की कोशिश में हैं।

नई दिल्ली। राष्ट्रीय नदी गंगा की अविरलता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए सरकार ने उत्तराखंड की पीपलकोटी विष्णुगाड़ परियोजना का काम बंद करने का फरमान जारी कर दिया है। कुछ जगहों पर काम बंद हो गया है। कुछ जगह बाकी है। गंगा की उपनदी अलकनंदा पर बन रहे इस बांध का गंगा तपस्वी, पर्यावरण प्रेमी और स्थानीय लोग लंबे समय से जमकर विरोध कर रहे थे। इस बारे में अंतिम फैसले के लिए केंद्र सरकार ने 17 अप्रैल को एक बैठ बुलाई है। बैठक में सामाजिक संगठनों के अलावा पर्यावरणविदों भूवैज्ञानिकों और साधु-संतों को भी आमंत्रित किया गया है। गंगा सर्वे समिति के प्रभारी और पीपल्स साइंस इंस्टीट्यूट (पीएसआई), देहरादून के अनिल गौतम ने इस बात की पुष्टि की है कि सरकारी आदेश कल आया है। कई जगहों पर काम बंद हो गया है। कुछ जगह बाकी है। गौतम ने नेशनल दुनिया को बताया कि, ‘अभी सरकारी आदेश सब जगहों पर नहीं पहुंचा है इसलिए काम जारी है लेकिन शेष जगहों पर संदेश पहुंचने के बाद हम काम बंद हो जाने की उम्मीद कर रहे हैं।’

जल बिरादरी के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह के अनुसार, ‘पीपलकोटी परियोजना पर काम बंद करने का आदेश देकर सरकार और खासतौर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गंगा ही नहीं समूचे पर्यावरण के प्रति अपना सकारात्मक दृष्टिकोण दर्शाया है। हम इसका स्वागत करते हैं। इस फैसले से पर्यावरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता झलकती है। बाकी 17 तारीख की बैठक में स्पष्ट हो जाएगा।’

गंगा को प्रदूषण और बांधों के अतिक्रमण से बचाने के लिए पांच लोगों के नेतृत्व में गंगा सागर (कोलकाता) से गंगा तपस्या यात्रा शुरू की गई थी। 14 जनवरी से शुरू हुई इस यात्रा का नेतृत्व स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, राजेंद्र सिंह, गंगा प्रेमी भिक्षु और कृष्णाप्रिय आनंद ब्रह्मचारी ने किया था। इसके बाद राजेंद्र सिंह ने 9 मार्च को एक पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से इस मामले में सक्रियता दिखाने और अपने वायदे को पूरा करने का आग्रह किया था। प्रख्यात पर्यावरणविद प्रो. जीडी अग्रवाल भी पिछले दिनों गंगा की रक्षा के लिए आमरण अनशन पर बैठे थे। लेकिन जब उनकी हालत खराब होने लगी तो उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया और सरकार ने उनकी कुछ मांगे मानने के बाद अनशन खत्म करा दिया था। पीपलकोटी परियोजना में केंद्र और राज्य सरकार की भागीदारी है। सरकार के इस फैसले को लेकर पर्यावरण प्रेमी संतुष्ट तो हैं लेकिन वे इसे अपनी जीत तभी मानेंगे जब 444 मेगावाट की इस प्रस्तावित पनबिजली परियोजना पर काम पूरी तरह से बंद हो जाएगा और परियोजना रद्द कर दी जाएगी। राजेंद्र सिंह कहते हैं कि राष्ट्रीय नदी की आत्मा, इसकी प्रकृति और पर्यावरण बचाने के लिए बड़े-बड़े बांधों वाली सभी परियोजनाएं रद्द होनी चाहिए।

राज्य में अन्य बड़े बांधों वाली परियोजनाओं के साथ ही पीपलकोटी प्रोजेक्ट का विरोध स्थानीय लोग बहुत समय से कर रहे थे। उनका कहना है कि इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और घपलेबाजी हुई है। उधर सामाजिक और जन संगठनों के लोग पर्यावरणीय नुकसान की दृष्टि से इस जैसी कई परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं और अगले मोर्चों के लिए लामबंद होने की कोशिश में हैं।

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