माघ में झारै जेठ में जारै


माघ में झारै जेठ में जारै,
भादौं सारै-तेकर मेहरी डेहरी पारै।।


शब्दार्थ- जारै-जलना। सारै-सड़ना। मेहरी-पत्नी। डेहरी-कोठिला (मिट्टी का बड़ा पात्र)

भावार्थ- माघ में खेत साफ करना चाहिए, फिर जेठ में उसी हाल में छोड़ देना चाहिए जिससे घास और खेत की मिट्टी जल जाय। फिर भादों में खेत जोतकर सड़ने के लिए छोड़ दे, जिस किसान ने ऐसा किया उसकी पत्नी को अन्न रखने के लिए कोठिला बनाना पड़ेगा।

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Post By: tridmin
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