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अद्रा धान पुनर्बसु पैया
Posted on 23 Mar, 2010 09:08 AM
अद्रा धान पुनर्बसु पैया।
गया किसान जो रोप चिरैया।।


भावार्थ- धान को आर्द्रा नक्षत्र में रोपने से फसल अच्छी होती है। पुनर्वसु नक्षत्र में रोपने पर केवल पैया (बिना चावल का धान) ही हाथ आयेगा और जो किसान धान की रोपाई पुष्य नक्षत्र में करते हैं तो कुछ भी हाथ नहीं लगता है।

अद्रा रेड़ पुनर्बसु पाती
Posted on 23 Mar, 2010 08:58 AM
अद्रा रेड़ पुनर्बसु पाती।
लाग चिरैया दिया न बाती।।


शब्दार्थ- रेड़-धान का उस स्थिति में पहुँचना जब बालें निकलती हैं। पाती-पत्ती।
आगिल खेती आगे आगे
Posted on 22 Mar, 2010 05:00 PM
आगिल खेती आगे आगे।
पाछिल खेती भागे जोगे।।


भावार्थ- घाघ का कहना है कि आगे बोई जाने वाली फसल पहले ही तैयार हो जाती है और समय निकल जाने पर पीछे बोई जाने वाली फसल भाग्य के ही भरोसे होती है।

बोवाई सम्बन्धी कहावतें
Posted on 22 Mar, 2010 04:55 PM
अगहर खेती अगहर मार।
घाघ कहैं तौ कबहुँ न हार।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि खेती और मारपीट के मामले में पहल करने वाला व्यक्ति कभी हारता नहीं है। लड़ाई-झगड़े में पहले मारने की नीति को सर्वत्र श्रेय दिया जाता है लेकिन खेती के मामले में हमेशा अगहर होना लाभदायक नहीं होता, फिर भी लाभ की सम्भावना अधिक होती है।

हर लगा पताल
Posted on 22 Mar, 2010 04:52 PM
हर लगा पताल।
तो टूट गया काल।।


भावार्थ- यदि हल खूब गहराई तक चला गया अर्थात् जुताई अच्छी हुई तो अकाल का भय समाप्त हो जाता है।

मैदे गेहूँ ढेले चना
Posted on 22 Mar, 2010 04:48 PM
मैदे गेहूँ ढेले चना।

भावार्थ- गेहूँ के खेत की मिट्टी मैदे की तरह बारीक होनी चाहिए एवं चने के खेत में ढेले हों, तभी पैदावार अच्छी होती है।

माघ में झारै जेठ में जारै
Posted on 22 Mar, 2010 04:46 PM
माघ में झारै जेठ में जारै,
भादौं सारै-तेकर मेहरी डेहरी पारै।।


शब्दार्थ- जारै-जलना। सारै-सड़ना। मेहरी-पत्नी। डेहरी-कोठिला (मिट्टी का बड़ा पात्र)
मेड़ बाँध दस जोतन दे
Posted on 22 Mar, 2010 04:44 PM
मेड़ बाँध दस जोतन दे।
दस मन बिगहा मोसे ले।।


भावार्थ- यदि खेत की मेड़ बाँधकर अच्छी तरह से जुताई कर दी जाये तो घाघ का कहना है कि दस मन बीघा पैदावार मुझसे ले लो।

माघ महीना बोइये झार
Posted on 22 Mar, 2010 04:43 PM
माघ महीना बोइये झार।
फिर राखौ रब्बी की डार।।


शब्दार्थ- झार-झाड़ – बुहारकर।

भावार्थ- माघ मास तक उड़द के बीज चुनकर रखो। फिर खेत को रबी की फसल के लिए जोत कर तैयार करो।

बिड़रै जोत पुराने बिया
Posted on 22 Mar, 2010 04:31 PM
बिड़रै जोत पुराने बिया।
ताकी खेती छिया-बिया।।


भावार्थ- जिस खेत की जुताई घनी न हुई हो और बीज पुराना डाला गया हो, वह खेती नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगी अर्थात् उसमें कुछ भी पैदा नहीं होगा।

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