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अधकचरी विद्या दहे राजा दहे अचेत
Posted on 25 Mar, 2010 08:43 AM
अधकचरी विद्या दहे राजा दहे अचेत।
ओछे कुल तिरिया दहे दहे कलर का खेत।।


शब्दार्थ- कलर-कपास।

भावार्थ- यदि व्यक्ति पढ़ा लिखा हो पर अनुभवहीन हो, राजा असावधान हो, स्त्री नीच कुल की हो और खेत कपास का हो, तो यह सब दुख दायी हैं, व्यर्थ हैं। खेत में कपास बोने से खेत कमजोर हो जाता है।

आठ गाँव का चौधरी बारह गाँव का राव
Posted on 25 Mar, 2010 08:41 AM
आठ गाँव का चौधरी बारह गाँव का राव।
अपने काम न आय तौ ऐसी-तैसी जाव।।


भावार्थ- यदि आठ गाँव का चौधरी और बारह गाँव का राव हो, फिर भी वक्त पड़ने पर काम न आये तो वह अपनी ऐसी-तैसी में जाए।

अम्बा नींबू बनिया गर दाबे रस देयँ
Posted on 24 Mar, 2010 04:59 PM
अम्बा नींबू बनिया गर दाबे रस देयँ।
कायथ कौवा करहटा मुर्दा हू सों लेयँ।।


भावार्थ- आम, नींबू और बनिया ये बिना दबाये रस नहीं देते और कायस्थ कौवा और किलहटा (एक पक्षी) ये मुर्दे से भी रस निकाल लेते हैं।

आपन-आपन सब कोउ होइ
Posted on 24 Mar, 2010 04:56 PM
आपन-आपन सब कोउ होइ, दुख माँ नाहिं सँघाती कोइ।
अन बहतर खातिर झगड़न्त, कहैं घाघ ई बिपत्ति क अन्त।।


भावार्थ- अपने-अपने के लिए हर कोई होता है लेकिन दुःख में कोई किसी का साथी नहीं होता। हर कोई अन्न वस्त्र के लिए झगड़ रहा है, इससे बढ़कर विपत्ति क्या हो सकती है, ऐसा घाघ का मानना है।

आलस नींद किसानै नासै चोरै नासै खाँसी
Posted on 24 Mar, 2010 04:52 PM
आलस नींद किसानै नासै चोरै नासै खाँसी।
अँखिया लीबर बेसवै नासै बाबै नासै दासी।।


शब्दार्थ- लीबर- कीचर।

भावार्थ- आलस्य और नींद किसान का, खाँसी चोर का, कीचर लगी मुचमुचाती आँख वेश्या का तथा दासी बाबा (साधु) का नाश करती है।

ओछो मंत्री राजै नासै
Posted on 24 Mar, 2010 04:50 PM
ओछो मंत्री राजै नासै, ताल बिनासै काई।
सान साहिबी फूट बिनासै, घग्घा पैर बिवाई।।


शब्दार्थ- ओछो-नीच प्रकृति।

भावार्थ- घाघ का कहना है कि नीच प्रकृति का मंत्री राजा का नाश करता है, काई तालाब का नाश करती है, आपसी बैर-भाव (फूट) शान शौकत का नाश करती है तथा पैर की बिवाई पैर का नाश करती है।

आठ कठौती माठा पीवै
Posted on 24 Mar, 2010 04:46 PM
आठ कठौती माठा पीवै, सोरह मकुनी खाइ।
उसके मरे न रोइये, घर के दलिद्दर जाय।।


भावार्थ- जो व्यक्ति आठ कठौता (काठ की परात) मट्ठा पीता हो, सोलह मकुनी (सत्तू भरी रोटी) खाता हो उसके मरने पर कभी भी रोना नहीं चाहिए क्योंकि उसके मरने से घर का दरिद्र ही चला जाता है।

नीति सम्बन्धी कहावतें
Posted on 24 Mar, 2010 04:43 PM
ओछे बैठक ओछे काम, ओछी बातें आठो याम।
घाघ बतायें तीन निकाम, भूलि न लीजौ इनकै नाम।।


शब्दार्थ- ओछे-नीच। आठोयाम- आठों पहर।

भावार्थ- घाघ का कहना है कि जो व्यक्ति आठों पहर ओछे अर्थात् बुरे लोगों की संगत में रहते हैं, नीच काम करते हैं, छोटी बातें करते हैं वे बिल्कुल बेकार होते हैं। भूल कर भी उनका नाम न लीजिए।

भैंस कन्देलिया पिय लाये
Posted on 24 Mar, 2010 12:34 PM
भैंस कन्देलिया पिय लाये।
माँगे दूध कहाँ से आये।।


भावार्थ- हे स्वामी! यदि कन्देलिया नस्ल की भैंस लाये हो, तब भला दूध कहाँ से मिले? अर्थात् कन्देलिया नस्ल की भैंस दूध कम देती है।

जब देखो पिय संपति थोड़ी
Posted on 24 Mar, 2010 12:29 PM
जब देखो पिय संपति थोड़ी।
बेसहो गाय बिआउरि घोड़ी।।

भावार्थ- हे स्वामी! यदि धन का अभाव हो तो बच्चा देने वाली गाय और घोड़ी खरीद लो।

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