Posted on 24 Mar, 2010 11:43 AM बरद बिसाहन जाओ कंता। खैरा का जनि देखो दंता।। जहाँ परै खैरा की खुरी। तो कर डारै चापर पुरी।। जहाँ परै खैरा की लार। बढ़नी लेके बुहारो सार।।
Posted on 24 Mar, 2010 11:38 AM पतली पेंडुली मोटी रान। पूँछ होय भुइँ में तरियान।। जाके होवै ऐसी गोई। वाको तकैं और सब कोई।।
शब्दार्थ- गोई- बैलों की जोड़ी।
भावार्थ- जिस बैल की पेंडुली पतली हो, रान मोटी हो और पूँछ लम्बी तथा भूमि को छूती हुई हो, ऐसे बैल की जोड़ी जिस किसान के पास होगी उसकी ओर सबकी दृष्टि जायेगी।
Posted on 24 Mar, 2010 11:36 AM ना मोहि नाधो उलिया कुलिया, ना मोहिँ नाधो दायें। बीस बरस तक करौं बरदई, जो ना मिलिहैं गायें।।
भावार्थ- बैल को यदि छोटे-छोटे खेतों में न जोता जाये, न दाहिने जोता जाये और न गाय से मिलने दिया जाये, तो उससे बीस वर्ष तक खेत की जुताई कराई जा सकती है, ऐसा घाघ कहते हैं।
Posted on 24 Mar, 2010 10:38 AM डग डग डोलन फरका पेलन, कहाँ चले तुम बाँड़ा। पहिले खाबइ रान परोसी, गोसैयाँ कब छाँड़ा।।
शब्दार्थ- फरका- छप्पर।
भावार्थ- जो बैल कटी हुई पूँछ वाला हो, डगमगा कर चलने वाला हो और अपनी लम्बी सींगों से छप्पर को ढकेलने वाला हो, वह इतना अशुभ होता है कि अपने मालिक के साथ-साथ पड़ोसियों को भी खा जाता है।