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बाँसड़ औ मुँह धौरा
Posted on 24 Mar, 2010 11:47 AM
बाँसड़ औ मुँह धौरा।
उन्हें देखि चरवाहा रौरा।।


भावार्थ- उभरी हुई रीढ़ वाला और सफेद मुँह वाला बैल अत्यधिक सुस्त होता है इन्हें देख चरवाहा भी चिल्ला उठता है।

बाँधा बछड़ा जाय मठाय
Posted on 24 Mar, 2010 11:45 AM
बाँधा बछड़ा जाय मठाय।
बैठा ज्वान जाय तुँदियाय।।


भावार्थ- यदि बछड़ा बराबर बँधा रहे तो वह सुस्त हो जाता है अर्थात् आलसी हो जाता है और जवान व्यक्ति बराबर बैठा रहे तो उसकी तोंद निकल आती है।

बरद बिसाहन जाओ कंता
Posted on 24 Mar, 2010 11:43 AM
बरद बिसाहन जाओ कंता। खैरा का जनि देखो दंता।।
जहाँ परै खैरा की खुरी। तो कर डारै चापर पुरी।।
जहाँ परै खैरा की लार। बढ़नी लेके बुहारो सार।।

पूँछ झंपा औ छोटे कान
Posted on 24 Mar, 2010 11:40 AM
पूँछ झंपा औ छोटे कान।
ऐसे बरद मेहनती जान।।


भावार्थ- जिस बैल की पूँछ गुच्छेदार हो, कान छोटे हों, उसे अत्यधिक मेहनती समझना चाहिए।

पतली पेंडुली मोटी रान
Posted on 24 Mar, 2010 11:38 AM
पतली पेंडुली मोटी रान। पूँछ होय भुइँ में तरियान।।
जाके होवै ऐसी गोई। वाको तकैं और सब कोई।।


शब्दार्थ- गोई- बैलों की जोड़ी।

भावार्थ- जिस बैल की पेंडुली पतली हो, रान मोटी हो और पूँछ लम्बी तथा भूमि को छूती हुई हो, ऐसे बैल की जोड़ी जिस किसान के पास होगी उसकी ओर सबकी दृष्टि जायेगी।

ना मोहि नाधो उलिया कुलिया
Posted on 24 Mar, 2010 11:36 AM
ना मोहि नाधो उलिया कुलिया, ना मोहिँ नाधो दायें।
बीस बरस तक करौं बरदई, जो ना मिलिहैं गायें।।


भावार्थ- बैल को यदि छोटे-छोटे खेतों में न जोता जाये, न दाहिने जोता जाये और न गाय से मिलने दिया जाये, तो उससे बीस वर्ष तक खेत की जुताई कराई जा सकती है, ऐसा घाघ कहते हैं।

निटिया बरद छोटिया हारी
Posted on 24 Mar, 2010 11:33 AM
निटिया बरद छोटिया हारी।
दूब कहै मोर काह उखारी।।


शब्दार्थ- निटिया- नाटा या छोटा। हारी- हलवाहा।

भावार्थ- छोटी पूँछ अथवा छोटे कद का बैल और नाटे हलवाहे को देख कर दूब कहती है कि ये मुझे क्या उखाड़ पायेंगे?

नीला कंधा बैंगन खुरा
Posted on 24 Mar, 2010 11:31 AM
नीला कंधा बैंगन खुरा।
कबहूँ न निकले कंता बुरा।।


भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जिस बैल का कंधा नीला और खुर बैंगनी रंग का हो, वह मालिक के लिए कभी बुरा नहीं निकलता है।

नाटा खोटा बेंचि के
Posted on 24 Mar, 2010 10:39 AM
नाटा खोटा बेंचि के, चारि धुरंधर लेहु।
आपन काम निकारि के, औरहु मँगनी देहु।।


भावार्थ- घाघ कहते हैं कि हे किसान! छोटे-मोटे बैल बेंच कर चार बड़े-बड़े बैल खरीद लो। उनसे अपनी भी खेती हो जायेगी और दूसरों को भी उधार दे सकोगे।

डग डग डोलन फरका पेलन
Posted on 24 Mar, 2010 10:38 AM
डग डग डोलन फरका पेलन, कहाँ चले तुम बाँड़ा।
पहिले खाबइ रान परोसी, गोसैयाँ कब छाँड़ा।।


शब्दार्थ- फरका- छप्पर।

भावार्थ- जो बैल कटी हुई पूँछ वाला हो, डगमगा कर चलने वाला हो और अपनी लम्बी सींगों से छप्पर को ढकेलने वाला हो, वह इतना अशुभ होता है कि अपने मालिक के साथ-साथ पड़ोसियों को भी खा जाता है।

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