घाघ बात अपने मन गुनहीं,
ठाकुर भगत न मूसर धनुहीं।
भावार्थ- घाघ का मानना है कि जिस प्रकार मूसर (अनाज कूटने वाला उपकरण) झुककर धनुहीं नहीं बन सकता, ठीक उसी प्रकार ठाकुर कभी भगत नहीं बन सकता, न ही झुक सकता है।
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