घर की खुनुस औ ज्वर की भूख, छोट दमाद बराहे ऊख।
पातर खेती भकुवा भाय, घाघ कहैं दुख कहाँ समाय।।
शब्दार्थ- खुनुस-कलह, क्रोध। बराहे-रास्ता। भकुआ-मूर्ख।
भावार्थ- घर में दिन-रात की कलह, बुखार के बाद की भूख, बेटी से छोटा दामाद, रास्ते की ऊख, हलकी खेती और मूर्ख भाई ये सभी कष्टकर हैं।
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