Posted on 25 Mar, 2010 09:08 AM खेत न जोतै राड़ी। न भैंस बेसाहै पाड़ी। न मेहरी मर्द क छाड़ी। क्यों न बिपदा गाढ़ी।।
भावार्थ- राढ़ी घास वाले खेत को नहीं जोतना चाहिए पाड़ी (भैंस का बच्चा) भैंस नहीं खरीदनी चाहिए और चाहे जितना बड़ा संकट हो दूसरे की छोड़ी हुई स्त्री से शादी नहीं करनी चाहिए।
Posted on 25 Mar, 2010 09:04 AM कोपे दई मेघ ना होई, खेती सूखति नैहर जोई। पूत बिदेस खाट पर कन्त, कहैं घाघ ई विपत्ति क अन्त।।
भावार्थ- ईश्वर कुपित हो गया है, बरसात नहीं हो रही है, खेती सूख रही है, पत्नी मायके चली गयी हैं, पुत्र परदेश में हैं, पति खाट पर बीमार पड़ा है, घाघ कहते हैं कि यह स्थिति विपत्ति की चरम सीमा है।
Posted on 25 Mar, 2010 09:00 AM कुतवा मूतनि मरकनी, सरबलील कुच काट। घग्घा चारौ परिहरौ, तब तुम पौढ़ौ खाट।।
शब्दार्थ- मरकनी-खाट। कुच। नस।
भावार्थ- घाघ कहते हैं कि जिस खाट पर कुत्ते मूत्ते हों, जो चरमराती हो, जो ढीली-ढाली हो और जो इतनी छोटी हो कि पैर की नस काटती हो, ऐसी खाट को छोड़कर दूसरी खाट पर सोना चाहिए।
Posted on 25 Mar, 2010 08:55 AM कलिजुग में दो भगत हैं, बैरागी औ ऊँट। वै तुलसी बन काटहीं, ये किये पीपर ठूँठ।।
भावार्थ- घाघ व्यंग्यात्मक रूप में कहते हैं कि कलियुग में दो ही भक्त हैं- एक बैरागी, दूसरा ऊँट। बैरागी तुलसी का वन काटता रहता है और ऊँट पीपल को ठूँठा करता रहता है।