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सफाईः विज्ञान और कला
Posted on 15 May, 2010 06:09 PM
‘मल-मूत्र सफाई’ नाम से श्री बल्लभस्वामी की एक पुस्तक 1949 में प्रकाशित हुई थी। श्री धीरेन्द्र मजूमदार की किताब ‘सफाई-विज्ञान’, श्री कृष्णदास शाह के अनुभव और ‘मल-मूत्र सफाई’ तीनों का इस्तेमाल करके श्री बल्लभस्वामी ने ‘सफाईः विज्ञान और कला’ नाम से यह किताब लिखी जो 1957 में प्रकाशित हुई। भंगी-मुक्ति के गांधीजी के सेनानी श्री अप्पासाहब पटवर्धन के लेखन का भी उपयोग इस किताब में है।
बाण गंगा नदी सूखने के कगार पर पहुंची
Posted on 16 Apr, 2010 04:11 PM
कटरा (जम्मू और कश्मीर) ।। वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए बुरी खबर है। यहां सालों से बह रही बाण गंगा नदी इस साल

लगभग सूख चुकी है। यह नदी वैष्णो देवी मंदिर के पास ही बहती है। वैष्णो देवी जाने वाले श्रद्धालु बाण गंगा में जरूर डुबकी लगाते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर सोचिए
Posted on 10 Apr, 2010 08:43 AM
प्रकृति को कार्बन की विषाक्तकारी ताकत की जानकारी पहले ही हो जानी चाहिए थी : यह लाखों वर्षों से गोपनीय तरीके से धरती को विषाक्त करता रहा है। अब इसका उत्सर्जन उस प्राकृतिक निवास को अस्थिर करने लगा है, जिसमें हम सभी को रहना है। विवेकशील लोग कह सकते हैं कि यह उस तेजी से धरती को क्षति नहीं पहुंचा रहा, जितना कि बताया जा रहा है, लेकिन इस बारे में तो कोई मतभेद ही नहीं है कि यह पृथ्वी को नुकसान पहुंच
संकट में जल
Posted on 03 Apr, 2010 11:00 AM
ताजे पानी की घटती उपलब्धता आज की सबसे बड़ी समस्या है। पानी का संकट अनुमानों की सीमाओं को तोड़ते हुए दिन प्रतिदिन गंभीर होता जा रहा है। जहां एक ओर शहरी आबादी में हो रही वृद्धि से यहां जलसंकट विकराल रूप लेता जा रहा है वही दूसरी ओर आधुनिक कृषि में पानी की बढ़ती मांग स्थितियों को और स्याह बना रही है। आवश्यकता इस बात की है कि पानी को लेकर वैश्विक स्तर पर कारगार नीतियां बने और उन पर अमल भी हो।
सावन हर्रै भादों चीत
Posted on 26 Mar, 2010 11:04 AM
सावन हर्रै भादों चीत। क्वार मास गुड़ खायउ मीत।।
कातिक मूली अगहन तेल। पूस में करै दूध से मेल।।

माघ मास घिउ खींचरी खाय। फागुन उठि के प्रात नहाय।।
चैत मास में नीम बेसहनी। बैसाके में खाय जड़हनी।।

जेठ मास जो दिन में सोवै।
ओकर जर असाढ़ में रोवै।।

भुइयाँ खेड़े हर हो चार
Posted on 26 Mar, 2010 11:02 AM
भुइयाँ खेड़े हर हो चार, घर हो गिहथिन गऊ दुधार।
अरहर दाल, जड़हन का भात, गागल निबुआ औ घिउ तात।।

खाँड दही जो घर में होय, बाँके नयन परोसै जोय,
कहैं घाघ तब सबही झूठ, उहाँ छोड़ि इहँवै बैकूंठ।।


शब्दार्थ- भुइयाँ-जमीन। खेड़े-गाँव के नजदीक। गागल- रसदार। तात-गर्म।
प्रात समै खटिया स उठिकै
Posted on 26 Mar, 2010 10:59 AM
प्रात समै खटिया स उठिकै, पीवै ठंडा पानी।
ता घर वैद कबौ नहीं आवै, बात घाघ की मानी।।


भावार्थ- घाघ का मानना है कि जो व्यक्ति प्रातः काल खाट से उठते ही ठंडा पानी पीता है उसका स्वास्थ्य इतना अच्छा रहता है कि कभी डॉक्टर या वैद्य की जरूरत नहीं पड़ती।

जाको मारा चाहिए
Posted on 26 Mar, 2010 10:58 AM
जाको मारा चाहिए, बिन लाठी बिन घाव।
वाको यही बताइए, घुइयाँ पूरी खाव।।


भावार्थ- यदि किसी व्यक्ति को बिना लाठी या बिना हथियार के मारना चाहते हो तो उसे धुइयाँ (अरुई) और पूड़ी खाने की सलाह दो क्योंकि घुइयाँ और पूड़ी स्वास्थ्य के लिए हानिकारिक होती हैं।

चैते गुड़ बैसाखे तेल
Posted on 26 Mar, 2010 10:54 AM
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल।
सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही।।

अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना।
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय।।


शब्दार्थ- पन्थ-यात्रा, मही- माठा, धना-धनिया।
चइत सोवै रोगी
Posted on 26 Mar, 2010 10:52 AM
चइत सोवै रोगी, बइसाख सोवै जोगी।
जेठ सोवै राजा, असाढ़ सोवै अभागा।।

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