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मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी
Posted on 28 May, 2010 12:23 PM

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में महिलाओं की भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी पुरुषों की। योजना के तहत महिलाओं के लिये क्या-क्या सुविधाएं उपलब्ध हैं और उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है आईये सुनते हैं सुश्री एनी राजा से, जो नेशनल फेडरेशन ऑव वीमेन की जनरल सेक्रेटरी हैं........

 

 

nrega
मल-व्यवस्था
Posted on 27 May, 2010 07:08 PM सेंद्रिय खाद-द्रव्य मिलने के आदमी के बस के जरिये हैं- गोबर खाद और सोन-खाद। उनका महत्व और गोबर-खाद बनाने का तरीका-कम्पोस्ट-देखने के बाद, अब सोन-खाद के तरीकों को देखना ठीक होगा। मल-सफाई के लिए हमें जो तरीका अपनाना है, वह ऐसा हो, जिसे कोई भी बिना घृणा के और कम-से-कम मेहनत में कर सके। साथ ही उसकी खाद भी हो। मैले की खाद बनने के लिए और गन्दगी न फैलने के लिए मैले को तुरन्त ही ढँक देना जरूरी होता है। घर म
कैसे करें जल संरक्षण
Posted on 27 May, 2010 06:50 PM

जल संरक्षण का क्या महत्व है और जल संरक्षण की विभिन्न पद्धतियां कौन कौन सी हैं बता रहे हैं अवध कुमार................

 

 

water harvesting
मनरेगाः कैसे करें शिकायत
Posted on 27 May, 2010 06:48 PM

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में शिकायतों का निवारण कैसे करें, मनरेगा में काम करने वाले और इसके तहत काम पाने के इच्छुक लोग इस तंत्र का इस्तेमाल कर सकते हैं मगर कैसे, सुनिये...........

 

nrega
कहां खो गए प्याऊ..
Posted on 27 May, 2010 08:39 AM
बदलते वक्त के साथ ऐसी कई छवियां स्मृति-पटल से ओझल होती जा रही हैं, जो एक समय तक हमारे लिए बेहद सामान्य थीं। सड़कों के किनारे चंद मटकों से सुसज्जित ‘प्याऊ’ भी उनमें से एक है। बोतलबंद और ढेरों खूबियों वाले मिनरल वॉटर के युग में मिट्टी के मटकों का सौंधी खुशबू वाला ठंडा और गला तर कर देने वाले पानी की उपलब्धता अब न्यून हो गई है। या यूं कह लें कि अब इनका चलन नहीं रहा। सदियों पुरानी ‘प्याऊ’ परम्परा
तृप्ति वो ही प्याऊ वाली
Posted on 26 May, 2010 09:45 PM
समाज में कई परंपराएँ जन्म लेती हैं और कई टूट जाती हैं। परंपराओं का प्रारंभ होना और टूटना विकासशील समाज का आवश्यक तत्त्व है। कुछ परंपराएँ टूटने के लिए ही होती हैं पर कुछ परंपराएँ ऐसी होती हैं, जिनका टूटना मन को दु:खी कर जाता है और परंपराएँ हमारे देखते ही देखते समाप्त हो जाती हैं, उसे परंपरा की मौत कहा जा सकता है।
कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया
Posted on 26 May, 2010 04:23 PM

कम्पोस्ट आमतौर से खाई के अंदर ही बनाना चाहिए, जिससे खाद में नमी बनी रहती है और नाइट्रोजन भी हवा में उड़ जाने से बचता है। खाई इतनी बड़ी होनी चाहिए, जिससे प्रतिदिन के कूड़े-कबाड़े, गोबर आदि से एक खाई लगभग तीन मास में भर जाय। यह नाप मुख्यतः ढोरों की संख्या पर अवलम्बित होगा। नीचे के तख्ते से इसका कुछ अन्दाज आयेगाः
 

खाद की दृष्टि से मल-मूत्र का महत्व
Posted on 25 May, 2010 04:02 PM प्राकृतिक जरियों के सिवा सेन्द्रिय द्रव्य मिलने के सोते हैं-प्रकृति से पैदा होनेवाली चीजों का अंश और उन चीजों को खाकर जानवर और आदमी जो कचरा बाहर डालते हैं वह, याने खली, मल-मूत्र आदि। भिन्न-भिन्न खली में खाद द्रव्य नीचे की मात्रा में होते हैं:
भूमि का खाद्य ‘खाद’ (भाग 2)
Posted on 25 May, 2010 09:56 AM भिन्न-भिन्न फसलें नाइट्रोजन आदि द्रव्य कितनी मात्रा में जमीन में से लेती हैं, उसके प्रयोग हमारे देश में कहीं हुए हों, तो मुझे मालूम नहीं है। भिन्न-भिन्न जमीन, वातावरण, काल वगैरह का भी इसमें असर होता होगा। फिर भी जानकारी के लिहाज से राथमस्टेड में किए गए प्रयोगों पर से कुछ आँकड़े दिये जाते हैं।

(फसल एक एकड़ में और वजन पौंडों में)

भूमि का खाद्य ‘खाद’
Posted on 25 May, 2010 09:12 AM सफाई की आर्थिक बाजू है, मैले आदि का खाद के तौर पर उपयोग करना। फसलों को याने जमीन को खाद की कितनी जरूरत है, यह सभी जानते हैं। खाद, खातर (गुजराती), खत (मराठी) आदि शब्द शायद ‘खाद्य’ शब्द से बने हैं। याने खाद, भूमाता का खाद्य-अन्न-है। जिस तरह गोमाता घास आदि खाद्य खाकर हमें मधुर दूध देती है, वैसे ही यह दूसरी गो याने पृथ्वी-माता खाद-रूपी खाद्य खाकर फसलों के रूप में हमें मधुर रस देती है।सभ्यता और सम्पत्ति, दोनों को कायम रखने वाला सफाई का जो तरीका हमें चाहिए, वह हमने देखा। पुरानी भाषा में धर्म और अर्थ, दोनों देने वाला तरीका हमें चाहिए। गांधीजी ने कहा है कि जो धर्म और अर्थ एक-दूसरे की कसौटी पर खरे नहीं उतरते, वे टिकने वाले नहीं है। सफाई की आर्थिक बाजू है, मैले आदि का खाद के तौर पर उपयोग करना। फसलों को याने जमीन को खाद की कितनी जरूरत है, यह सभी जानते हैं। खाद, खातर (गुजराती), खत (मराठी) आदि शब्द शायद ‘खाद्य’ शब्द से बने हैं। याने खाद, भूमाता का खाद्य-अन्न-है। जिस तरह गोमाता घास आदि खाद्य खाकर हमें मधुर दूध देती है, वैसे ही यह दूसरी गो याने पृथ्वी-माता खाद-रूपी खाद्य खाकर फसलों के रूप में हमें मधुर रस देती है। खाद का महत्व आदमी को खेती के आरम्भ-काल से ही अवश्य मालूम हुआ होगा।
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