सेंद्रिय खाद-द्रव्य मिलने के आदमी के बस के जरिये हैं- गोबर खाद और सोन-खाद। उनका महत्व और गोबर-खाद बनाने का तरीका-कम्पोस्ट-देखने के बाद, अब सोन-खाद के तरीकों को देखना ठीक होगा। मल-सफाई के लिए हमें जो तरीका अपनाना है, वह ऐसा हो, जिसे कोई भी बिना घृणा के और कम-से-कम मेहनत में कर सके। साथ ही उसकी खाद भी हो। मैले की खाद बनने के लिए और गन्दगी न फैलने के लिए मैले को तुरन्त ही ढँक देना जरूरी होता है। घर में छोटे बच्चे के मैलो को तुरन्त ही ढँकते हुए हम सतत देखते हैं। बिल्ली अपने मैले को तुरन्त ढँकती है। यह जरूरी नहीं है कि मैले को खूब गहरा गाड़ा जाय। विज्ञान कहता है कि जमीन की ऊपरी नौ इंच की सतह में किसी चीज को सड़ाकर खाद-बनानेवाले जन्तु काफी संख्या में होते हैं। जितना हम नीचे जाते हैं, उतने ही वे कम प्रमाण में होते हैं और चार फुट के नीचे करीब-करीब नहीं ही होते। मैल को जितना ऊपर गाड़ा जाय, उतना ही अच्छा है, बशर्ते उसकी बदबू न आये और मक्खियाँ न बैठने पायें। 3-4 इंच से लेकर 8-9 इंच तक की गहराई काफी है।
मैले की खाद बनने के बाद उसको हमें खेत में ले जाना है। इसलिए यदि खेत में ही हम शौच के लिए जायँ, तो सबसे अच्छा। शौच के लिए दूर जाने के रिवाज के मूल में यही बात थी। लेकिन आज न तो हम आम तौर से खेत में जाते हैं, न उस मैले को ढाँकते हैं। लोग शौच के लिए दूर खेत में जायँ और अपने साथ एक छोटी खुरपी लेते जायँ। खुरपी से तीन-चार इंच गढ़ा बनाकर उसमें शौच फिरें और फिर गढ़े में से निकली हुई मिट्टी से शौच को ठीक ढाँक दें। ऊपर से जरा दबा दें। जिस तरह बिना पानी लिए शौच जाना हम अशिष्टता या जंगलीपन समझते हैं, वैसे ही शौच को ढँकने के लिए खुरपी या कोई साधन लिए बगैर बाहर शौच को जाना अशिष्टता समझनी चाहिए। खुरपी का चित्र यहां है।
मल-सफाई के लिए खुरपी बहुत सादा और आसान साधन है। लेकिन हर कोई दूर या खेत में जा नहीं सकता। रात, बारिश आदि में भी दिक्कत होती है। इसलिए पाखाना घर के आसपास ही कहीं होना चाहिए। बाद में उसमें का मैला कहीं जमीन में गाड़ देने का उपाय निकला। इसके लिए बाल्टी-पाखाना काफी अच्छा होता है। बाल्टी-पाखाने का चित्र यहां दिया है। बैठने के लिए चौखट और उसके नीचे दो बाल्टियां हैं। एक पेशाब-पानी के लिए, दूसरी मैले के लिए। पास ही किसी बरतन में सूखी मिट्टी रखी रहती है। शौच जानेवाला अपने मैले को मिट्टी से ढँक देता है। मैले को ढाँकने के लिए मिट्टी के बजाय राख का उपयोग किया जा सके, तो अधिक अच्छा है। राख से ढँके मैले पर मक्खियाँ नहीं बैठतीं। मिट्टी से ढँके मैले पर बैठकर वे अपने अंडे भी वहाँ रख सकती हैं। आध इंच मोटी तह से कम मिट्टी से मैले को ढंकने में मक्खियों का अंडे देने का खतरा बना रहता है। रह रोज गढ़ा खोदकर या लंबी खाई में या पक्के बाँधे हुए टाँके में मल-मूत्र को दबा दिया जाता है। बाल्टियां, चौखट आदि धोकर फिर से उपयोग में ली जाती हैं। कहीं-कहीं बाल्टी, चौखट आदि के दो जोड़ रखे जाते हैं, जिससे एक दिन उपयोग में लायी हुई बाल्टी आदि, दूसरे दिन धोने के बाद सूखती रहती है। चौखट की ऊँचाई आमतौर से 18 से 20 इंच और लम्बाई 2.25 से 2.5 फुट होती है। चौखटे को मजबूती देने की दृष्टि से निचले हिस्से में आड़ी पट्टियाँ देकर पैरों को जकड़ दिया गया है।
बाल्टियां जरूरत के अनुसार 10 इंच से 13 इंच तक ऊँचाई की होती हैं। इससे बड़ी बाल्टियों का उपयोग सुविधाजनक नहीं होता। क्योंकि मैले-मिट्टी से भरने के बाद उन्हें उठाना आसान नहीं होता। पेशाब-पानी की बाल्टी पर, बीच में छेदवाला ढक्कन होता है। दोनों बाल्टियां ठीक दीख सकें, इसलिए चित्र में वह नहीं बताया गया है।
ऊपर के तरीके एक तरह से बड़ों के ही काम के हैं। छोटे बच्चे, जो बड़ों के पाखाने आदि का उपयोग नहीं कर सकते, उनके लिए कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। बचपन से ही सफाई की आदत डालना अच्छा है। बच्चों के लिए ओगर से किए हुए गढ़े बहुत अच्छा काम देते हैं, ऐसा अनुभव है। ओगर की कल्पना चित्र में स्पष्ट है। ओगर से आमतौर से 8 इंच चौड़ा और 2 से 2.5 फुट गहरा गोल गढ़ा हो सकता है। उसके ऊपर बैठने के लिए न चौखट की जरूरत होती है, न उसके किनारे के ढहने का डर रहता है। गोल और कम चौड़ाई का गढ़ा होने से मैला ठीक ढँक भी जाता है। पेशाब के लिए सामने की ओर पास ही दूसरा गढ़ा बना सकते हैं। बच्चों के लिए ही नहीं, बीमारों के लिए रात के समय दूर जाना न पड़े, इसलिए भी, ओगर के गढ़े घर के पास या मुहल्ले के कोने में किए जायँ, तो उपयोगी है। गढ़ा भर जाने के बाद बन्द कर दिया जाय। कुछ महीनों के बाद ओगर से ही उसमें की खाद निकाल ली जाय और उस गढ़े का फिर से उपयोग किया जाय।
खुरपी
मैले की खाद बनने के बाद उसको हमें खेत में ले जाना है। इसलिए यदि खेत में ही हम शौच के लिए जायँ, तो सबसे अच्छा। शौच के लिए दूर जाने के रिवाज के मूल में यही बात थी। लेकिन आज न तो हम आम तौर से खेत में जाते हैं, न उस मैले को ढाँकते हैं। लोग शौच के लिए दूर खेत में जायँ और अपने साथ एक छोटी खुरपी लेते जायँ। खुरपी से तीन-चार इंच गढ़ा बनाकर उसमें शौच फिरें और फिर गढ़े में से निकली हुई मिट्टी से शौच को ठीक ढाँक दें। ऊपर से जरा दबा दें। जिस तरह बिना पानी लिए शौच जाना हम अशिष्टता या जंगलीपन समझते हैं, वैसे ही शौच को ढँकने के लिए खुरपी या कोई साधन लिए बगैर बाहर शौच को जाना अशिष्टता समझनी चाहिए। खुरपी का चित्र यहां है।
बाल्टी-पाखाना
मल-सफाई के लिए खुरपी बहुत सादा और आसान साधन है। लेकिन हर कोई दूर या खेत में जा नहीं सकता। रात, बारिश आदि में भी दिक्कत होती है। इसलिए पाखाना घर के आसपास ही कहीं होना चाहिए। बाद में उसमें का मैला कहीं जमीन में गाड़ देने का उपाय निकला। इसके लिए बाल्टी-पाखाना काफी अच्छा होता है। बाल्टी-पाखाने का चित्र यहां दिया है। बैठने के लिए चौखट और उसके नीचे दो बाल्टियां हैं। एक पेशाब-पानी के लिए, दूसरी मैले के लिए। पास ही किसी बरतन में सूखी मिट्टी रखी रहती है। शौच जानेवाला अपने मैले को मिट्टी से ढँक देता है। मैले को ढाँकने के लिए मिट्टी के बजाय राख का उपयोग किया जा सके, तो अधिक अच्छा है। राख से ढँके मैले पर मक्खियाँ नहीं बैठतीं। मिट्टी से ढँके मैले पर बैठकर वे अपने अंडे भी वहाँ रख सकती हैं। आध इंच मोटी तह से कम मिट्टी से मैले को ढंकने में मक्खियों का अंडे देने का खतरा बना रहता है। रह रोज गढ़ा खोदकर या लंबी खाई में या पक्के बाँधे हुए टाँके में मल-मूत्र को दबा दिया जाता है। बाल्टियां, चौखट आदि धोकर फिर से उपयोग में ली जाती हैं। कहीं-कहीं बाल्टी, चौखट आदि के दो जोड़ रखे जाते हैं, जिससे एक दिन उपयोग में लायी हुई बाल्टी आदि, दूसरे दिन धोने के बाद सूखती रहती है। चौखट की ऊँचाई आमतौर से 18 से 20 इंच और लम्बाई 2.25 से 2.5 फुट होती है। चौखटे को मजबूती देने की दृष्टि से निचले हिस्से में आड़ी पट्टियाँ देकर पैरों को जकड़ दिया गया है।
बाल्टियां जरूरत के अनुसार 10 इंच से 13 इंच तक ऊँचाई की होती हैं। इससे बड़ी बाल्टियों का उपयोग सुविधाजनक नहीं होता। क्योंकि मैले-मिट्टी से भरने के बाद उन्हें उठाना आसान नहीं होता। पेशाब-पानी की बाल्टी पर, बीच में छेदवाला ढक्कन होता है। दोनों बाल्टियां ठीक दीख सकें, इसलिए चित्र में वह नहीं बताया गया है।
ओगर
ऊपर के तरीके एक तरह से बड़ों के ही काम के हैं। छोटे बच्चे, जो बड़ों के पाखाने आदि का उपयोग नहीं कर सकते, उनके लिए कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। बचपन से ही सफाई की आदत डालना अच्छा है। बच्चों के लिए ओगर से किए हुए गढ़े बहुत अच्छा काम देते हैं, ऐसा अनुभव है। ओगर की कल्पना चित्र में स्पष्ट है। ओगर से आमतौर से 8 इंच चौड़ा और 2 से 2.5 फुट गहरा गोल गढ़ा हो सकता है। उसके ऊपर बैठने के लिए न चौखट की जरूरत होती है, न उसके किनारे के ढहने का डर रहता है। गोल और कम चौड़ाई का गढ़ा होने से मैला ठीक ढँक भी जाता है। पेशाब के लिए सामने की ओर पास ही दूसरा गढ़ा बना सकते हैं। बच्चों के लिए ही नहीं, बीमारों के लिए रात के समय दूर जाना न पड़े, इसलिए भी, ओगर के गढ़े घर के पास या मुहल्ले के कोने में किए जायँ, तो उपयोगी है। गढ़ा भर जाने के बाद बन्द कर दिया जाय। कुछ महीनों के बाद ओगर से ही उसमें की खाद निकाल ली जाय और उस गढ़े का फिर से उपयोग किया जाय।
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