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जल गुणवत्ता अनुमापन
Posted on 23 Jun, 2010 12:00 PM जल के परीक्षण का मुख्य उद्देश्य जल की गुणवत्ता का आंकलन करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल स्वच्छ है।

नमूना लेने के स्थान का चयन
किसी स्थान से नमूना लेने से पहले उस स्थान की पूर्व जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है। नदी अथवा नहर के पानी का नमूना इस प्रकार लेना चाहिए कि वह उस पानी के प्रदूषण की पूरी दशा को दर्शायें।
पेयजल की गुणवत्ता मापन
Posted on 23 Jun, 2010 11:37 AM पेयजल के भौतिक एवं रासायनिक परिक्षणों के अतिरिक्त उन जल श्रोतों का स्वास्थ्य सम्बंधी सर्वेक्षण करना भी अति आवश्यक है, जहाँ से जल आता है।

पेयजल के परीक्षण का मुख्य उद्देश्य पेयजल की गुणवत्ता का आंकलन करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल पीने के योग्य है अथवा नहीं।

स्वास्थ्य सम्बंधी सर्वेक्षण के मुख्य कारण निम्न हैः-
प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारक
Posted on 23 Jun, 2010 11:35 AM • प्राकृतिक कारक

• मानवीय कारक

प्राकृतिक कारक


• भू-तलीय-किसी भी क्षेत्र में होने वाली वर्षा के सतही बहाव व उसके द्वारा नदी में पहुँचने वाले सेडीमेन्ट्स के लिए भूगर्भीय कारक महत्वपूर्ण हैं।

• जल ग्रहण की आकृति।

• जल ग्रहण का आकार।
जल
Posted on 23 Jun, 2010 11:32 AM पानी के मुख्यता दो स्रोत हैं। धरती की सतह पर बहने वाला पानी जैसे नदी, नाले, झरने, तालाब इत्यादि, तथा धरती के नीचे पाये जाने वाला पानी अर्थात भूजल, जैसे कुएँ, हैण्डपम्प इत्यादि का जल। सतही पानी की गुवत्ता मौसम, मिट्टी के प्रकार तथा आस-पास की प्रकृति पर निर्भर करती है। सामान्यता नदी नालों का पानी तब प्रदूषित होता है जब वह घनी आबादी के क्षेत्रों या कारखानों के इलाकों से होकर गुजरता है। भूजल के प्रदूष
जल गुणवत्ता प्रबंधक पर प्रशिक्षण पुस्तिका
Posted on 23 Jun, 2010 10:58 AM यह पुस्तिका पानी में होने वाले प्रदूषण के कारण, पेयजल की गुणवत्ता मापन के परीक्षणों के प्रकार और उनके परिक्षण के तरीके, पेयजल के परीक्षण के समय और उनके नमूना लेते समय आवश्यक सावधानियां और महत्वपूर्ण खास बातें इस पुस्तक में सामान्य-जन के हिसाब से बताई गयी हैं।
प्रदूषित जल एक समस्या
Posted on 14 Jun, 2010 03:30 PM आज गरीब देशों में 80 प्रतिशत बीमारियां अशुद्ध पेयजल और गन्दगी के कारण हैं तथा बढ़ती जनसंख्या, समस्या को और बढ़ा रही है। 1980 के दशक में सबसे गरीब देशों में शुद्ध जल सफाई व्यवस्था के तमाम प्रयासों के बाद भी आज 1.2 अरब लोग इन बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित हैं। आंकड़ों के अनुसार विश्व के विकासशील देशों की आधी से कम जनसंख्या को स्वच्छ जल की सुविधा प्राप्त है और पांच में से एक व्यक्ति को संतोषजनक सफाई सेवाएं उपलब्ध है। प्रतिदिन 35 हजार व्यक्ति अतिसार रोग के कारण मर जाते हैं। दुःख के साथ स्वीकारना पड़ता है कि नदियों से भरपूर, हमारे देश में भी पानी की कमी है तथा विश्व-स्तर पर देखा जाए तो विश्व का हर तीसरा प्यासा व्यक्ति भारतीय है। जिन गाँवों में पानी के लिए 1.6 किलोमीटर चलना पड़े, वे समस्याग्रस्त गांव कहलाते हैं और इन समस्याग्रस्त गांवों की संख्या बढ़ोत्तरी पर ही रही है। दुःख की बात तो यह है कि आज की स्थिति में भी 11,000 ऐसे गांव हैं जिनमें कि स्वच्छ पानी की बात छोड़िए, गंदा पानी भी उपलब्ध नहीं है। इन गाँवों में अगर कहीं पानी है भी तो वह इतना खारा है कि पीने के योग्य नहीं है।

सम्पूर्ण विश्व में उन्नति के साथ-साथ जो औद्योगिक विकास हुआ है, उसी का परिणाम पानी की समस्या के रूप में हमारे
गांव का पानी गांव में
Posted on 13 Jun, 2010 06:00 PM

खेत का पानी खेत में


मानसून आने को है, फसल के अलावा हमें साल भर के लिए पानी इकट्ठा कर लेना चाहिए। क्योंकि हमारे यहां पानी का ज्यादातर हिस्सा मानसून के दौरान ही प्राप्त होता है।
जैवविविधता से ही बचेगी मानवता
Posted on 03 Jun, 2010 03:07 PM

रेत की टीलों और रेगिस्तान की अलग ही छटा है। कहीं मीलों तक फैले हरे-भरे घास के मैदान हैं तो कही मीलों तक फैले मरुस्थल। जीवों की बात करें तो नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी। हवा में इठलाती फूलों पर मंडराती तितलियां। जमीन पर विचरने वाले जलचर और हवा में अठखेलियां करते नभचर। इसके अलावा बसने वाले लोग भी तरह-तरह के। जीव-जंतुओं की यही विविधता वैज्ञानिक शब्दावली में जैवविविधता कहलाती है।

हमारी पृथ्वी तो एक ही है। परंतु इस एकता में अनेकता के कई नजारे देखे जा सकते हैं। भांति-भांति के जंगल, पहाड़, नदी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और तरह-तरह के लोग। जंगल व पहाड़ भी एक जैसे नहीं। कई किस्मों के। जंगल की बात करें तो कहीं सदाबहार तो कुछ जगहों पर शुष्क पर्ण पाती। कहीं मिश्रित भी। बर्फ के पहाड़ भी हैं और नग्न तपती चट्टानों वाले पहाड़ भी।

रेत की टीलों और रेगिस्तान की अलग ही छटा है। कहीं मीलों तक फैले हरे-भरे घास के मैदान हैं तो कही मीलों तक फैले मरुस्थल। जीवों की बात करें तो नाना प्रकार के रंग-बिरंगे पक्षी। हवा में इठलाती फूलों पर मंडराती तितलियां। जमीन पर विचरने वाले जलचर और हवा में अठखेलियां करते नभचर।
प्रगति की होड़ से उठता विप्लव
Posted on 03 Jun, 2010 03:03 PM

मनुष्यों की संख्या जहां बहुत बढ़ गई है, वहीं दूसरी ओर उनके बीच विषमता और भी अधिक बढ़ गई है। उनमें से अनेक की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती हैं। अनेक लोग तरह-तरह के दुख-दर्द से त्रस्त हैं। आपसी संबंध अच्छे नहीं हैं। पारिवारिक संबंधों तक में टूटन व अन्याय है। जो थोड़े से लोग बहुत वैभव की जिंदगी जी रहे हैं, उनका जीवन दूसरों से छीना-छपटी व अन्याय पर आधारित है। इतना ही नहीं, सीमित संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर व ग्रीनहाऊस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन कर यह थोड़े से लोगों की जीवन-शैली भावी पीढ़ियों को खतरे में भी डाल रही हैं।

आज जहाँ एक ओर महानगरों की चमक-दमक बढ़ रही है व चंद लोगों के लिए भोग-विलास, आधुनिक सुख-सुविधाएं पराकाष्ठा पर पहंुच रही हैं, वहां दूसरी ओर बड़ी संख्या में लोग साफ हवा, पेयजल व अन्य बुनियादी जरूरतों से वंचित हो रहे हैं। पशु-पक्षी, कीट-पतंगे व अन्य जीव जितने खतरों से घिरे हैं उतने (डायनासोरों के लुप्त होने जैसे प्रलयकारी दौर को छोड़ दें तो) पहले कभी नहीं देखे गए। इस स्थिति में यह जानना बहुत जरूरी है कि प्रगति क्या है और विकास क्या है? इस पर गहराई से विचार किया जाए और उसके बाद ही सही दिशा तलाश कर आगे बढ़ा जाए।

उदाहरण के लिए 100 वर्ग किमी. के महानगरीय चमकदार क्षेत्रों के बारे में यदि हम जान सकें कि आज
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