Posted on 26 Mar, 2010 10:59 AM प्रात समै खटिया स उठिकै, पीवै ठंडा पानी। ता घर वैद कबौ नहीं आवै, बात घाघ की मानी।।
भावार्थ- घाघ का मानना है कि जो व्यक्ति प्रातः काल खाट से उठते ही ठंडा पानी पीता है उसका स्वास्थ्य इतना अच्छा रहता है कि कभी डॉक्टर या वैद्य की जरूरत नहीं पड़ती।
Posted on 26 Mar, 2010 10:58 AM जाको मारा चाहिए, बिन लाठी बिन घाव। वाको यही बताइए, घुइयाँ पूरी खाव।।
भावार्थ- यदि किसी व्यक्ति को बिना लाठी या बिना हथियार के मारना चाहते हो तो उसे धुइयाँ (अरुई) और पूड़ी खाने की सलाह दो क्योंकि घुइयाँ और पूड़ी स्वास्थ्य के लिए हानिकारिक होती हैं।
Posted on 26 Mar, 2010 10:49 AM खाइ कै मूतै सूतै बाउँ। काहै के बैद बसावै गाउँ।
भावार्थ- यदि व्यक्ति खाना खाने के पश्चत् पेशाब करके बायें करवट सो जाए, तो उसे अपने गाँव में वैद्य बसाने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ेगी अर्थात् ऐसा करने वाला व्यक्ति सदैव स्वस्थ रहता है।
Posted on 26 Mar, 2010 10:48 AM ऊँचे चढ़िके बोला मँडुवा। सब नाजों का मैं हूँ भँडुवा।। आठ दिना मुझको जो खाय। भले मर्द से उठा न जाय।।
भावार्थ- मँडुआ नामक अन्न ऊँचे खड़े होकर कहता है कि मैं सब अन्नों में भँडुआ (निर्लज्ज) हूँ। यदि मुझे आठ दिन खा ले तो वह कितना भी शक्तिशाली मर्द हो निर्बल हो जायेगा और उठकर चल नहीं पायेगा।
Posted on 26 Mar, 2010 10:25 AM अँतरे खोंतरे डंडै करै। ताल नहाय ओस माँ परै।।
दैव न मारै अपुवइ मरै।
भावार्थ- जो व्यक्ति कभी-कभी (दूसरे-चौथे) व्यायाम करता है अर्थात् नियमित नहीं करता, तालाब में स्नान करता है और ओस में सोता है, उसे भगवान या भाग्य नहीं मारता स्वयं अपनी मूर्खता से मरता है।