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प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन
Posted on 31 Jan, 2014 12:26 PM

प्राकृतिक संसाधन

भौतिक जगत के समस्त प्राणियों की उत्पत्ति एवं सृजन पंच महाभूतों यथाक्षिति, जल, पावक, गगन, समीर से हुई है। इन पंच महाभूतों को ही ‘‘भगवान‘‘ की संज्ञा भी दी जा सकती है, क्योंकि भगवान शब्द चार व्यंजन एवं एक स्वर के योग से बना है। यथा भ-भूमि, ग-गगन, व-वायु, अ-अग्नि एवं न-नीर। इन पंचतत्वों में जीवन के मुख्य आधार भूमि, जल एवं वनस्पति को प्रमुखता देते हुये मनीषियों ने इसे प्रथम ती
सूखे की त्रासदी से हौसले परास्त
Posted on 29 Jan, 2014 01:44 PM 28 जनवरी 2014 बुन्देलखण्ड में बहुतेरे गांव के किसानों को सूखे की त्रासदी ने उनके हौसलों को परस्त करके रख दिया है। किसान सोंचे भी तो क्या जब भी कोई योजना अपनी खेती को संवारने की बनाता है तो पैसा आड़े आता है। बैंको की गिरफ्त में फंसे किसानों को कर्ज से उबरने का कोई जरिया ही नहीं दिख रहा।
महोबा में जैव विविधता संरक्षण एवं संवर्धन संगोष्ठी
Posted on 26 Jan, 2014 02:11 AM 25 जनवरी 2014 उत्तर प्रदेश बुन्देलखण्डद्ध के महोबा जनपद में जैव विविधता के संरक्षण एवं संब़र्द्धन विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया जाना तय हुआ है।
ऐतिहासिक मदन सागर के सुन्दरीकरण का रास्ता साफ
Posted on 26 Jan, 2014 02:04 AM

61.21 करोड़ की एनआरसीडी योजना

75 लाख वर्ष पुराने वृक्ष का जीवाश्म मिला
Posted on 25 Jan, 2014 08:46 AM नैनीताल (एजेंसी) उत्तराखंड को शिवालिक पर्वत श्रृंखला में वैज्ञानिकों ने 75 लाख वर्ष पुराने अवसादी चट्टान से घिरे एक वृक्ष के जीवाश्म का पता लगाया है, जिनके अध्ययन से जलवायु परिवर्तन के रुझान का सटीक विश्लेषण किया जा सकेगा और उसके आधार पर भविष्य में होने वाले परिवर्तन का संकेत भी प्राप्त किया जा सकेगा ।
बारिश और सपने
Posted on 19 Jan, 2014 05:03 PM सागर की लहरों पर

छलांग लगाता है एक लड़का

और लहर-संगीत से खुलती है

सागर तट पर

स्वप्निल एक खिड़की

खिड़की के जगमग फ्रेम में जड़ी

अपनी छत के नीचे खड़ी

भीगती है एक लड़की

दूर सागर पर गिरती बूंदों से

सरोबार भीगने का

सुख उसका उसका अपना है

खिड़की से सागर तक तिरती
चुल्लू की आत्मकथा
Posted on 19 Jan, 2014 04:41 PM मैं न झील न ताल न तलैया,न बादल न समुद्र

मैं यहां फंसा हूँ इस गढै़या में

चुल्लू भर आत्मा लिए,सड़क के बीचों-बीच

मुझ में भी झलकता है आसमान

चमकते हैं सूर्य सितारे चांद

दिखते हैं चील कौवे और तीतर

मुझे भी हिला देती है हवा

मुझ में भी पड़कर सड़ सकती है

फूल-पत्तों सहित हरियाली की आत्मा
पानी
Posted on 19 Jan, 2014 04:35 PM देह अपना समय लेती ही है

निपटाने वाले चाहे जितनी जल्दी में हों

भीतर का पानी लड़ रहा बाहरी आग से

घी जौ चन्दन आदि साथ दे रहे हैं आग का

पानी देह का साथ दे रहा है

यह वही पानी था जो अंजुरी में रखते ही

खुद-ब खुद छिरा जाता था बूंद-बूंद

यह देह की दीर्घ संगत का आंतरिक सखा-भाव था
आकार लेता हूँ
Posted on 19 Jan, 2014 03:36 PM मै जल

उस पात्र का आकार लेता हूं

जिसमें होता हूँ

चक्र और गोल

मिट्टी का घड़ा बन जाता हूँ

लम्बी और पतली

बोतल सी देह में ढल जाता हूँ

अथवा मेज पर पडा़ गिलास

जिस पात्र में प्रवेश

वही वर्ण,वही वेश

मै हूँ कि देखी तुमने पारदर्शिता

मैं हूं कि दृश्यमान हुई तरलता
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