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पानी बहुत है बचाना सीखिए
Posted on 15 Jun, 2014 03:08 PM पूरे देश को सामने रखकर देखें तो हमारे यहां पानी की कोई कमी नहीं है। कहीं कम और कहीं ज्यादा मानसून खूब पानी बरसाता है पर हमारी सरकारें उसे सहेज कर नहीं रख पातीं। न बांधों में जमा रख पाती हैं और ना ही धरती के भीतर डालकर जलस्तर को बढ़ाने का काम कर पाती हैं। वे तो पानी को बहने का आसान रास्ता देने के लिए नालियां बनाती हैं। इसका नतीजा देश में 'डार्कजोन' बढ़ते जाते हैं। गांव तो गांव शहर तक पीने के पान
उत्तराखंड के नवनिर्माण में मीडिया की भूमिका
Posted on 10 Jun, 2014 03:21 PM पहाड़ के जो हित हैं या फिर इकोलाॅजी, संस्कृति और पर्यावरण से जुड़े
उत्तराखण्ड
ਜਲ ਥਲ ਮਲ
Posted on 06 May, 2014 02:31 PM ਵਿਅੰਗ ਨਾਲ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਤੁਸੀਂ ਸ਼ਾਇਦ ਪੜਿਆ ਵੀ ਹੋਵੇ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਟਾਇਲਟ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮੋਬਾਇਲ ਫ਼ੋਨ ਹਨ। ਜੇਕਰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਕੋਲ ਮਲ ਤਿਆਗਣ ਦੇ ਲਈ ਟਾਇਲਟ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਕਿਵੇਂ ਰਹੇ?
ਅਲਸੀ
Posted on 04 May, 2014 05:56 PM ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਹ ਕਹਾਵਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਰਹੀ ਹੈ ਕਿ ਭੋਜਨ ਹੀ ਦਵਾਈ ਹੈ। ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਅੰਦਰ ਭੋਜਨ ਨੂੰ ਦਵਾਈ ਵਜੋਂ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਨ ਦੀ ਪਰੰਪਰਾ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਚੱਲੀ ਆ ਰਹੀ ਹੈ। ਪਰ ਅਜੋਕੀ ਭੱਜ-ਦੌੜ ਭਰੀ ਜਿੰਦਗੀ ਦੇ ਚਲਦਿਆਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਇਸ ਅਮੀਰ ਸਮਝ ਅਤੇ ਪਰੰਪਰਾਂ ਤੋਂ ਵਿਰਵੇ ਹੋ ਚੱਲੇ ਹਾਂ। ਅੱਜ ਅਸੀਂ ਅਲਸੀ ਬਾਰੇ ਗੱਲ ਕਰਾਂਗੇ।
ਉਤਪਾਦਕਤਾ ਦੀ ਹਿੰਸਕ ਭੂਮੀ
Posted on 11 Apr, 2014 10:10 PM ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲੀ ਖਾਦ ਨੇ ਅਨਾਜ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਤਾਂ ਵਧਾਇਆ ਹੀ ਪਰ ਨਾਲ ਹੀ ਉਸਨੇ ਇੱਕ ਹੋਰ ਹਿੰਸਕ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਲਿਆ। ਹਿੰਸਾ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਵੀ ਉਸਨੇ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਕੁੱਝ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੀ ਉਪਜਾਊ ਬਣਾ ਦਿੱਤੀ ਹੈ।
तुम किस नदी से हो
Posted on 05 Apr, 2014 03:40 PM

1958 की फरवरी में बनारस में दिया गया भाषण


हमारे देश की कुल चालीस करोड़ की आबादी में से तकरीबन एक या दो करोड़ लोग प्रतिदिन नदियों में डुबकी लगाते हैं और पचास से साठ लाख लोग नदी का पानी पीते हैं। उनके दिल और दिमाग नदियों से जुड़े हुए हैं। लेकिन नदियां शहरों से गिरने वाले मल और अवजल से प्रदूषित हो गई हैं। गंदा पानी ज्यादातर फैक्ट्रियों का होता है और कानपुर में ज्यादातर फ़ैक्टरियां चमड़े की हैं जो पानी को और भी नुकसानदेह बना रही हैं। फिर भी हजारों लोग यही पानी पीते हैं, इसी से नहाते हैं। साल भर पहले इस दिक्कत पर कानपुर में मैं बोला भी था।...अब मैं ऐसे मुद्दे पर बोलना चाहता हूं जिसका संबंध आमतौर पर धर्माचारियों से है लेकिन जब से वे अनावश्यक और बेकार बातों में लिप्त हो गए हैं, इससे विरत हैं। जहां तक मेरा सवाल है, यह साफ कर दूं कि मैं एक नास्तिक हूं। किसी को यह भ्रम न हो कि मैं ईश्वर पर विश्वास करने लगा हूं। आज के और अतीत के भी भारत की जीवन-पद्धति, दुनिया के दूसरे देशों की ही तरह, लेकिन और बड़े पैमाने पर, किसी न किसी नदी से जुड़ी रही हैं।

राजनीति की बजाए अगर मैं अध्यापन के पेशे में होता तो इस जुड़ाव की गहन जांच करता। राम की अयोध्या सरयू के किनारे बसी थी। कुरू, मौर्य और गुप्त साम्राज्य गंगा के किनारे पर फले-फुले, मुगल और शौरसेनी रियासतें और राजधानियां यमुना के किनारे पर स्थित थीं। साल भर पानी की जरूरत हो सकती है, लेकिन कुछ सांस्कृतिक वजहें भी हो सकती हैं।

एक बार मैं महेश्वर नाम की जगह में था जहां कुछ समय के लिए अहिल्या ने एक शक्तिशाली शासन स्थापित किया था।
Nadi
नदी घाटी निवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक पहल
Posted on 15 Mar, 2014 10:21 AM पूर्वोत्तर राज्यों में अरूणाचल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा एवं सिक्किम राज्य शामिल हैं। पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। यहां 70 से 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है। लेकिन यहां की खेती बरसात पर निर्भर होने के कारण असमान है। जैव-विविधता की दृष्टि से भी पूर्वोत्तर बहुत समृ़द्ध है।
नदी घाटी निवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक पहल
वर्षा: बुन्देली लोकगीत
Posted on 13 Mar, 2014 10:44 PM कन्हैया तोरी चितवन लागे प्यारी।

सावन गरजे भादों बरसे

बिजुरी चमके न्यारी (कन्हैया)

मोर जो नाचे पपीहा बोले

कोयल कूके प्यारी (प्यारी)

नन्हीं-नन्हीं बुंदिया मेहा बरसे

छाई घटा अंधियारी (कन्हैया)

सब सखियां मिल गाना गाए

नाचे दे दे तारी (कन्हैया)

2 राते बरस गओ पानी
केंचुवा खाद - वर्मी कम्पोस्ट
Posted on 12 Mar, 2014 10:49 PM

1.वर्मी कम्पोस्ट क्या है:-


मृदा पर उपलब्ध सभी जैविक घटकों को हम ह्यूमस में परिवर्तन करने का महत्वपूर्ण कार्य एक छोटे से जीव द्वारा हैं। जिसे अर्थवर्म/ केंचुआ/ गिंडोला कहते हैं। इससे तैयार उत्पाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। अर्थात केचुओं की विष्टा को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है।

2. वर्मी कल्चर क्या है:-

यदि पानी हुआ बर्बाद - तो हम कैसे होंगे आबाद
Posted on 10 Mar, 2014 11:46 PM जल जीवन है, जीवन जल ।
जल पर निर्भर, अपना कल ।।

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