Posted on 15 Jun, 2014 03:08 PMपूरे देश को सामने रखकर देखें तो हमारे यहां पानी की कोई कमी नहीं है। कहीं कम और कहीं ज्यादा मानसून खूब पानी बरसाता है पर हमारी सरकारें उसे सहेज कर नहीं रख पातीं। न बांधों में जमा रख पाती हैं और ना ही धरती के भीतर डालकर जलस्तर को बढ़ाने का काम कर पाती हैं। वे तो पानी को बहने का आसान रास्ता देने के लिए नालियां बनाती हैं। इसका नतीजा देश में 'डार्कजोन' बढ़ते जाते हैं। गांव तो गांव शहर तक पीने के पान
हमारे देश की कुल चालीस करोड़ की आबादी में से तकरीबन एक या दो करोड़ लोग प्रतिदिन नदियों में डुबकी लगाते हैं और पचास से साठ लाख लोग नदी का पानी पीते हैं। उनके दिल और दिमाग नदियों से जुड़े हुए हैं। लेकिन नदियां शहरों से गिरने वाले मल और अवजल से प्रदूषित हो गई हैं। गंदा पानी ज्यादातर फैक्ट्रियों का होता है और कानपुर में ज्यादातर फ़ैक्टरियां चमड़े की हैं जो पानी को और भी नुकसानदेह बना रही हैं। फिर भी हजारों लोग यही पानी पीते हैं, इसी से नहाते हैं। साल भर पहले इस दिक्कत पर कानपुर में मैं बोला भी था।...अब मैं ऐसे मुद्दे पर बोलना चाहता हूं जिसका संबंध आमतौर पर धर्माचारियों से है लेकिन जब से वे अनावश्यक और बेकार बातों में लिप्त हो गए हैं, इससे विरत हैं। जहां तक मेरा सवाल है, यह साफ कर दूं कि मैं एक नास्तिक हूं। किसी को यह भ्रम न हो कि मैं ईश्वर पर विश्वास करने लगा हूं। आज के और अतीत के भी भारत की जीवन-पद्धति, दुनिया के दूसरे देशों की ही तरह, लेकिन और बड़े पैमाने पर, किसी न किसी नदी से जुड़ी रही हैं।
राजनीति की बजाए अगर मैं अध्यापन के पेशे में होता तो इस जुड़ाव की गहन जांच करता। राम की अयोध्या सरयू के किनारे बसी थी। कुरू, मौर्य और गुप्त साम्राज्य गंगा के किनारे पर फले-फुले, मुगल और शौरसेनी रियासतें और राजधानियां यमुना के किनारे पर स्थित थीं। साल भर पानी की जरूरत हो सकती है, लेकिन कुछ सांस्कृतिक वजहें भी हो सकती हैं।
एक बार मैं महेश्वर नाम की जगह में था जहां कुछ समय के लिए अहिल्या ने एक शक्तिशाली शासन स्थापित किया था।
Posted on 15 Mar, 2014 10:21 AMपूर्वोत्तर राज्यों में अरूणाचल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा एवं सिक्किम राज्य शामिल हैं। पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। यहां 70 से 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है। लेकिन यहां की खेती बरसात पर निर्भर होने के कारण असमान है। जैव-विविधता की दृष्टि से भी पूर्वोत्तर बहुत समृ़द्ध है।
मृदा पर उपलब्ध सभी जैविक घटकों को हम ह्यूमस में परिवर्तन करने का महत्वपूर्ण कार्य एक छोटे से जीव द्वारा हैं। जिसे अर्थवर्म/ केंचुआ/ गिंडोला कहते हैं। इससे तैयार उत्पाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। अर्थात केचुओं की विष्टा को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है।