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ਡਾ. ਨੀਲ ਰਤਨ ਧਰ: ਇੱਕ ਸੱਚਾ ਭੂਮੀ ਵਿਗਿਆਨੀ
Posted on 27 Aug, 2012 01:05 PM ਡਾ. ਨੀਲ ਰਤਨ ਧਰ 1919 ਤੋਂ 1952 ਤੱਕ 33 ਸਾਲ ਇਲਾਹਾਬਾਦ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਦੇ ਰਸਾਇਣ ਵਿਭਾਗ ਦੇ ਮੁੱਖੀ ਰਹੇ ਅਤੇ ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ 33 ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿੱਚ ਡੀ. ਐਸ. ਸੀ. ਅਤੇ ਡੀ. ਫਿਲ. ਦੀਆਂ ਡਿਗਰੀਆਂ ਨਾਲ ਖੋਜ਼ ਕਾਰਜ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ। ਦੇਸ ਆਜ਼ਾਦ ਹੋਣ ਉਪਰੰਤ ਇਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਦੇਸ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਅਹਿਮ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ। ਖੋਜ਼ ਕਰਤਾ ਤੋਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਡਾ.
ਰਹਿਮਨ ਪਾਣੀ ਰਾਖੀਏ…......
Posted on 11 Jul, 2012 10:12 AM ਮਹਾਭਾਰਤ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਤੋਂ ਅਰਜੁਨ ਨੂੰ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਦਵਾਰਿਕਾ ਜਾ ਰਹੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਰਥ ਮਰੂਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਪਾਰ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ। ਅੱਜ ਦੇ ਜੈਸਲਮੇਰ ਦੇ ਕੋਲ ਤ੍ਰਿਕੂਟ ਪਰਬਤ ਉੱਪਰ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਉਤੁੰਗ ਰਿਸ਼ੀ ਤਪੱਸਿਆ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਮਿਲੇ। ਸ਼੍ਰੀ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਣਾਮ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਫਿਰ ਵਰ ਮੰਗਣ ਲਈ ਕਿਹਾ। ਉਤੁੰਗ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਉੱਚਾ। ਸਚਮੁੱਚ ਰਿਸ਼ੀ ਉੱਚੇ ਸਨ। ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਲਈ ਕੁੱਝ ਨਹੀ ਮੰਗਿਆ। ਪ੍ਰਭੂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਰਥਨਾ ਕੀਤੀ ਕਿ ਜੇਕਰ ਮੇਰੇ ਕ
ਕੰਪਨੀਆਂ ਦਾ ਪਾਣੀ ਤੋਂ ਕਮਾਈ ਦਾ ਕਰੂਰ ਜਾਲ
Posted on 04 Jul, 2012 06:43 PM ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ, ਕਾਰਜ ਅਤੇ ਚਰਿੱਤਰ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦੇ ਲਈ 'ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਜਲ ਨੀਤੀ- 2012' ਇੱਕ ਪ੍ਰਮਾਣਿਕ ਦਸਤਾਵੇਜ਼ ਹੈ। ਇਸ ਦਸਤਾਵੇਜ਼ ਤੋਂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸਮਝ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਰਕਾਰ ਦੇਸ਼ ਹਿੱਤ ਵਿੱਚ ਨਹੀ, ਸਗੋਂ ਵੱਡੀਆਂ ਕੰਪਨੀਆਂ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਬਹੁਰਾਸ਼ਟਰੀ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੇ ਹਿੱਤਾਂ ਲਈ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸੰਪਦਾ ਦੀ ਅਸੀਮਿਤ ਲੁੱਟ ਬੜੀ ਕਰੂਰਤਾ ਨਾਲ ਚੱਲ ਰਹੀ ਹੈ। ਇਸ ਨੀਤੀ ਦੇ ਲਾਗੂ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆਮ ਆਦਮੀ ਪਾਣੀ ਜਿਹੀ ਮੂਲਭੂਤ ਜ਼ਰੂਰਤ ਦੇ ਲਈ ਤਰਸ ਜਾਏਗਾ। ਖ
सूखे से निपटती छोटी जल परियोजनाएं
Posted on 30 Jun, 2012 10:31 AM

बेलू वाटर नामक संस्थान ने कोरसीना बांध परियोजना के लिए 18 लाख रुपये का अनुदान देना स्वीकार कर लिया। इस छोटे बांध की योजना में न तो कोई विस्थापन है न पर्यावरण की क्षति। अनुदान की राशि का अधिकांश उपयोग गांववासियों को मजदूरी देने के लिए ही किया गया। मजदूरी समय पर मिली व कानूनी रेट पर मिली। इस तरह गांववासियों की आर्थिक जरूरतें भी पूरी हुईं तथा साथ ही ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में पानी रोकने का कार्य तेजी से आगे बढ़ने लगा।

जहां एक ओर बहुत महंगी व विशालकाय जल-परियोजनाओं के अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहे हैं, वहां दूसरी ओर स्थानीय लोगों की भागेदारी से कार्यान्वित अनेक छोटी परियोजनाओं से कम लागत में ही जल संरक्षण व संग्रहण का अधिक लाभ मिल रहा है।
पानी का अधिकार, किसी को कैसे दे सकती है सरकार
Posted on 27 Jun, 2012 02:12 PM पानी का असली मालिक कौन है? पानी किसका है? कौन तय कर सकता है कि पानी किसके कब्जे में रहे?
जंगल को बचाने का प्रयास
Posted on 23 May, 2012 12:28 PM प्रकृति की अद्भुत देन है जंगल। इन जंगलों की वजह से हमें फल-फूल, जलावन के लिए लकड़ी, हरियाली, आदि मिलती है। इन जंगलों को जहां कुछ माफिया लोग अपने फायदे के लिए उजाड़ रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी महापुरुष हैं जो इनको बचाने में लगे हुए हैं। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के इस दौर में भरत मंसाता, जादव और नारायण सिंह जैसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपने संकल्प से अकेले दम पर वीराने में बहार ला दी। इन अद्भुत प्रयास क
गिनती गिनिए कि वक्त कम है
Posted on 22 Apr, 2012 10:42 AM

22 अप्रैल पृथ्वी दिवस पर विशेष

Coral reef
क्या सीधे शोक प्रस्ताव ही पास करेगी सरकार ?
Posted on 20 Mar, 2012 10:28 AM क्या जीडी अग्रवाल की मौत के बाद ही जागेंगी हमारी संवेदनायें? क्या सरकार ने तय कर लिया है कि वह जीडी अग्रवाल की ’गंगा रक्षा मांग’ को मानने की बजाय उनकी मृत्यु पर सीधे शोक प्रस्ताव ही पास करेगी ? सरकार ने श्रीप्रकाश जायसवाल को बतौर प्रतिनिधि भेजा था। क्या जायसवाल जीडी अग्रवाल की मांग पर अंतिम निर्णय लेने में सक्षम थे ?
GD Agrawal
आसान नहीं है परस्पर नदियों को जोड़ना
Posted on 10 Mar, 2012 01:41 AM

वैसे ‘पानी हमारे संविधान में राज्यों के क्षेत्राधिकार में आता है। परंतु जो नदियां एक से अधिक राज्यों में बहती है

river linking map
नदी जोड़ने का नापाक फैसला
Posted on 08 Mar, 2012 02:14 AM नदी जोड़ परियोजना एक खतरनाक संकेतनदी जोड़ परियोजना एक खतरनाक संकेतनदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजनाओं को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी मिल गई है। 27 फरवरी को मुख्य न्यायाधीश एचएस कापडिया की खंडपीठ ने इस परियोजना को यह कहते हुए वैध करार दे दिया कि इससे आम आदमी को फायदा होगा। इसके साथ ही बहस का नया पिटारा खुल गया है। विरोध के स्वर को देखते हुए अब तक ये माना जा रहा था कि ये योजना देश-व्यापी नहीं रह जाएगी और ख़ास-ख़ास जगहों पर ही इसे आजमाना ज्यादा मुफीद रहेगा। ये उम्मीद की जा रही थी कि इस दौरान किसी विवाद में योजना विरोधियों की ओर से कोर्ट का दखल लिया जाएगा। ये विकल्प अब भी खुला है लेकिन कोर्ट के रूख ने साफ़ कर दिया है कि सरकारें अब तेजी दिखाएं। सरकारी कार्यप्रणाली समझने वाले मान रहे हैं कि ऐसे मेगा प्रोजेक्ल्ट्स के लिए फंड का रोना देखने को नहीं मिलेगा । खर्च जुटा ही लिया जाएगा। योजना के अमल में कमीशन की माया की पूजा होगी और अगले कई सालों तक राजनीतिक दलों को पार्टी चलाने के लिए पैसा आड़े नहीं आएगा।

नदी जोड़ परियोजना एक खतरनाक संकेत
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