भारत

Term Path Alias

/regions/india

बारिश और सपने
Posted on 19 Jan, 2014 05:03 PM सागर की लहरों पर

छलांग लगाता है एक लड़का

और लहर-संगीत से खुलती है

सागर तट पर

स्वप्निल एक खिड़की

खिड़की के जगमग फ्रेम में जड़ी

अपनी छत के नीचे खड़ी

भीगती है एक लड़की

दूर सागर पर गिरती बूंदों से

सरोबार भीगने का

सुख उसका उसका अपना है

खिड़की से सागर तक तिरती
चुल्लू की आत्मकथा
Posted on 19 Jan, 2014 04:41 PM मैं न झील न ताल न तलैया,न बादल न समुद्र

मैं यहां फंसा हूँ इस गढै़या में

चुल्लू भर आत्मा लिए,सड़क के बीचों-बीच

मुझ में भी झलकता है आसमान

चमकते हैं सूर्य सितारे चांद

दिखते हैं चील कौवे और तीतर

मुझे भी हिला देती है हवा

मुझ में भी पड़कर सड़ सकती है

फूल-पत्तों सहित हरियाली की आत्मा
पानी
Posted on 19 Jan, 2014 04:35 PM देह अपना समय लेती ही है

निपटाने वाले चाहे जितनी जल्दी में हों

भीतर का पानी लड़ रहा बाहरी आग से

घी जौ चन्दन आदि साथ दे रहे हैं आग का

पानी देह का साथ दे रहा है

यह वही पानी था जो अंजुरी में रखते ही

खुद-ब खुद छिरा जाता था बूंद-बूंद

यह देह की दीर्घ संगत का आंतरिक सखा-भाव था
आकार लेता हूँ
Posted on 19 Jan, 2014 03:36 PM मै जल

उस पात्र का आकार लेता हूं

जिसमें होता हूँ

चक्र और गोल

मिट्टी का घड़ा बन जाता हूँ

लम्बी और पतली

बोतल सी देह में ढल जाता हूँ

अथवा मेज पर पडा़ गिलास

जिस पात्र में प्रवेश

वही वर्ण,वही वेश

मै हूँ कि देखी तुमने पारदर्शिता

मैं हूं कि दृश्यमान हुई तरलता
गोकुल का तालाब बना तो बनने लगा आशियाना
Posted on 18 Jan, 2014 09:39 PM तालाब के नए अर्थशास्त्र को गांव के किसानों तक पहुंचाने का प्रयास अप
इन्हें पानी क्या मिला,सजाली पत्थरों में फसल
Posted on 18 Jan, 2014 09:34 PM किसान को पानी में फसल लेने के बहुतेरे अनुभव रहे हैं। इसीलिए उसे इस
पुरखों के दफन खजाने से बेखबर वारिस किसान
Posted on 16 Jan, 2014 07:00 PM 16 जनवरी/2014/बुन्देलखण्ड क्षेत्र उत्तरप्रदेश में जन्में जमीदार परिवार के वारिस किसान को अपने बाबा-परबाबा की अकूत सम्पति और उनकी जमीदारी के गांवों की फेहरिस्त मुंह जबानी याद है। एक जमाने में देश के सुदूर क्षेत्र से आकर इस इलाके के गांव कहरा के जमींदार की सम्पत्ति जमीदारी की देख-रेख बावत नियुक्ति होने का कारण इनके परदादा की शिक्षा-दिक्षा थी। कुछ समय बाद उस जमींदार परिवार के वारिस भी बनने का सौभाग्
सड़क पर अपना हक
Posted on 11 Jan, 2014 03:01 PM सन् 1995 के आसपास हमारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट ने वायु प्रदूषण के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू किया था। तब हमने जो कुछ भी किया वह लीक का काम था। इस आंदोलन ने ईंधन की गुणवत्ता को ठीक करने पर दबाव डाला। गाड़ियों से निकलने वाले बेहद जहरीले धुएँ को नियंत्रित करने के लिए नए कड़े नियम बनवाए। उनकी जांच-परख का नया ढांचा खड़ा करवाया और उस अभियान ने ईंधन का प्रकार तक बदलने का काम किया। यह लेख मैं अपने बिस्तरे से लिख रही हूं- एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल होने के बाद, हड्डियां टूटने के बाद मुझे ठीक होने तक इसी बिस्तर पर रहना है। मैं साइकिल चला रही थी। तेजी से आई एक मोटर गाड़ी ने मुझे अपनी चपेट में ले लिया था। टक्कर मारकर कार भाग गई। खून से लथपथ मैं सड़क पर थी।

ऐसी दुर्घटनाएँ बार-बार होती हैं हमारे यहां। हर शहर में होती हैं, हर सड़क पर होती हैं। यातायात की योजनाएं बनाते समय हमारा ध्यान पैदल चलने वालों और साइकिल चलाने वालों की सुरक्षा पर जाता ही नहीं। सड़क पर उनकी गिनती ही नहीं होती। ये लोग बिना कुछ किए, एकदम साधारण-सी बात में, बस सड़क पार करते हुए अपनी जान गँवा बैठते हैं। मैं इनसे ज्यादा भाग्यशाली थी। दुर्घटना के बाद दो गाड़ियाँ रुकीं, अनजान लोगों ने मुझे अस्पताल पहुंचाया। मेरा इलाज हो रहा है। मैं ठीक होकर फिर वापस इसी लड़ाई में लौटूंगी।
पहिया पानी
Posted on 27 Oct, 2013 04:26 PM

भारत के कई ग्रामीण इलाकों में पानी काफी दूर-दूर से लाना पड़ता है। घड़े, मटके और नए आए प्लास्टिक के घड़े भी महिलाओं को सिर पर उठाकर ही चलना पड़ता है। कई जगहों पर तो महिलाओं को 5-10 किलोमीटर दूर से भी जरूरत का पानी लाना पड़ता है। इस काम में उन्हें रोजमर्रा के कई-कई घंटे लगाने पड़ते हैं। घर की औरतों के अलावा बच्चियों को भी इस काम में लगाया जाता है। बच्चियों की शिक्षा-दिक्षा और स्वास्थ्य काफी प्

water wheel
नारीत्व की प्रतिष्ठा: माहवारी स्वच्छता प्रबंधन
Posted on 12 Apr, 2013 04:33 PM माहवारी स्वच्छता का निम्न स्तर मतलब कई अधिकारों को एक साथ नकारना; ग
MHM
×