देह अपना समय लेती ही है
निपटाने वाले चाहे जितनी जल्दी में हों
भीतर का पानी लड़ रहा बाहरी आग से
घी जौ चन्दन आदि साथ दे रहे हैं आग का
पानी देह का साथ दे रहा है
यह वही पानी था जो अंजुरी में रखते ही
खुद-ब खुद छिरा जाता था बूंद-बूंद
यह देह की दीर्घ संगत का आंतरिक सखा-भाव था
जो देर तक लड़ रहा था देह के पक्ष में
बाहर नदियां है भीतर लहू है
लेकिन केवल ढलान की तरफ भागता हुआ नहीं
बाहर समुद्र है नमकीन
भीतर आंखे है
जहां गिरती नहीं नदियां,जहां से निकलती हैं
अलग-अलग रूपाकारों में दौड़ रहा है पानी
बाहर लाल-लाल सेब झूम रहे हैं बगीचों में
गुलाल खिले हुए हैं
कोपलों की खेपें फूटी हुई हैं
बसन्त दिख रहा है पूरमपूर
जो नहीं दिख रहा इन सबके पीछे का
जड़ से शिराओं तक फैला हुआ है भीतर ही भीतर
उसी में बह रहे है रंग रूप स्वाद आकार
उसके न होने का मतलब ही
पतझड़ है
रेगिस्तान है
उसी को सबसे किफायती ढंग से बरतने का
नाम हो सकता है वुजू
संकलन/प्रस्तुति
नीलम श्रीवास्तव,महोबा उत्तर प्रदेश
निपटाने वाले चाहे जितनी जल्दी में हों
भीतर का पानी लड़ रहा बाहरी आग से
घी जौ चन्दन आदि साथ दे रहे हैं आग का
पानी देह का साथ दे रहा है
यह वही पानी था जो अंजुरी में रखते ही
खुद-ब खुद छिरा जाता था बूंद-बूंद
यह देह की दीर्घ संगत का आंतरिक सखा-भाव था
जो देर तक लड़ रहा था देह के पक्ष में
बाहर नदियां है भीतर लहू है
लेकिन केवल ढलान की तरफ भागता हुआ नहीं
बाहर समुद्र है नमकीन
भीतर आंखे है
जहां गिरती नहीं नदियां,जहां से निकलती हैं
अलग-अलग रूपाकारों में दौड़ रहा है पानी
बाहर लाल-लाल सेब झूम रहे हैं बगीचों में
गुलाल खिले हुए हैं
कोपलों की खेपें फूटी हुई हैं
बसन्त दिख रहा है पूरमपूर
जो नहीं दिख रहा इन सबके पीछे का
जड़ से शिराओं तक फैला हुआ है भीतर ही भीतर
उसी में बह रहे है रंग रूप स्वाद आकार
उसके न होने का मतलब ही
पतझड़ है
रेगिस्तान है
उसी को सबसे किफायती ढंग से बरतने का
नाम हो सकता है वुजू
संकलन/प्रस्तुति
नीलम श्रीवास्तव,महोबा उत्तर प्रदेश
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Post By: pankajbagwan