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नदी घाटी निवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक पहल
Posted on 15 Mar, 2014 10:21 AM पूर्वोत्तर राज्यों में अरूणाचल, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा एवं सिक्किम राज्य शामिल हैं। पूर्वोत्तर राज्यों की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। यहां 70 से 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है। लेकिन यहां की खेती बरसात पर निर्भर होने के कारण असमान है। जैव-विविधता की दृष्टि से भी पूर्वोत्तर बहुत समृ़द्ध है।
नदी घाटी निवासियों के सशक्तिकरण की दिशा में सार्थक पहल
वर्षा: बुन्देली लोकगीत
Posted on 13 Mar, 2014 10:44 PM कन्हैया तोरी चितवन लागे प्यारी।

सावन गरजे भादों बरसे

बिजुरी चमके न्यारी (कन्हैया)

मोर जो नाचे पपीहा बोले

कोयल कूके प्यारी (प्यारी)

नन्हीं-नन्हीं बुंदिया मेहा बरसे

छाई घटा अंधियारी (कन्हैया)

सब सखियां मिल गाना गाए

नाचे दे दे तारी (कन्हैया)

2 राते बरस गओ पानी
केंचुवा खाद - वर्मी कम्पोस्ट
Posted on 12 Mar, 2014 10:49 PM

1.वर्मी कम्पोस्ट क्या है:-


मृदा पर उपलब्ध सभी जैविक घटकों को हम ह्यूमस में परिवर्तन करने का महत्वपूर्ण कार्य एक छोटे से जीव द्वारा हैं। जिसे अर्थवर्म/ केंचुआ/ गिंडोला कहते हैं। इससे तैयार उत्पाद को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं। अर्थात केचुओं की विष्टा को वर्मी कम्पोस्ट कहा जाता है।

2. वर्मी कल्चर क्या है:-

यदि पानी हुआ बर्बाद - तो हम कैसे होंगे आबाद
Posted on 10 Mar, 2014 11:46 PM जल जीवन है, जीवन जल ।
जल पर निर्भर, अपना कल ।।

वेटलैण्ड: क्या और क्यों
Posted on 09 Mar, 2014 06:48 PM आज के विकसित व आधुनिक युग में हमें स्वीकार करना चाहिए कि इस धरती पर सिर्फ हमारा ही अधिकार नहीं है अपितु इसके विभिन्न भागों मे विद्यमान करोडों प्रजातियों का भी इस पर उतना ही अधिकार है जितना हमारा। धरती पर हमारे अस्तित्व को बचाए रखने में समस्त प्रकार की जैव विविधता को बनाए रखना अपरिहार्य है। वेटलैंड एक विशिष्ट प्रकार का पारिस्थितिकीय तंत्र है तथा जैवविविधता का महत्वपूर्ण अंग है। भू-जल क्षेत्र का मि
नर्मदा के आसपास :विस्थापन
Posted on 19 Feb, 2014 10:07 PM डूब में आते हुए
हलके,इलाके, नदी पोखर,
हो सकूँगा समूचा में
इन्हें खोकर ?

बड़ी मछली के लिए
बाकायदा
छोटी समर्पित हों !
युगों की लम्बी पुरानी
कथा –यात्राएँ विसर्जित हो !
मुनादी हम सुन रहे चुप
चीख हा-हाकार होकर,
सुन रही गोचर जमीनें,
डूँगंरी डाँगें अगोचर,
पानी बिच मीन
Posted on 19 Feb, 2014 09:53 PM पानी बिच मीन पियासी
खेतों में भूख–उदासी
यह उलट बाँसियाँ नही कबीर –खालिस चाल सियासी !
पानी बिच मीन पियासी

लोहे का सर, पाँव काठ के,
बीस बरस में हुए साठ के
, मेरे ग्राम निवासी कबिरा-झोपडपट्टी वासी !
पानी बिच मीन पियासी

सोया बच्चा गाये लोरी,
पहरेदार करे है चोरी,
जुर्म करे है न्याय निवारण –न्याय चढ़े है फाँसी!
धरोहर
Posted on 19 Feb, 2014 09:35 PM नदी वो अपने अश्रु में आकाश को डुबोएगी
नदी के अंग कटेंगे तो नदी रोएगी
नदी को हंसने दो
नदी को बहने दो

छुरी के हाथ ही होते हैं, आँख कब होती
नदी में धुल गई होती तो बहुत रोती
मिलेगा उसको क्या, जो भी मिलेगा खोएगी
नदी के अंग कटेंगे रो नदी रोएगी
नदी को बहने दो

तुम्हारे काँपते चुल्लू में खून है जिसका
नवीकरण
Posted on 19 Feb, 2014 09:21 PM यह
एक लहर थी
जो ले गयी
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