हरीशचन्द्र पाण्डे

हरीशचन्द्र पाण्डे
पानी
Posted on 19 Jan, 2014 04:35 PM
देह अपना समय लेती ही है

निपटाने वाले चाहे जितनी जल्दी में हों

भीतर का पानी लड़ रहा बाहरी आग से

घी जौ चन्दन आदि साथ दे रहे हैं आग का

पानी देह का साथ दे रहा है

यह वही पानी था जो अंजुरी में रखते ही

खुद-ब खुद छिरा जाता था बूंद-बूंद

यह देह की दीर्घ संगत का आंतरिक सखा-भाव था
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